सूखा राहत फंड जारी ना करने को लेकर केंद्र और कर्नाटक सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. जहां कर्नाटक सरकार की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से दो हफ्ते में जवाब मांगा है. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि विभिन्न राज्य सरकारें अब अदालत अब अदालत आ रही हैं. केंद्र और राज्य सरकार के बीच कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होनी चाहिए. पीठ कर्नाटक सरकार की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें आरोप लगाया गया था कि केंद्र सरकार कुछ क्षेत्रों में सूखे की स्थिति से निपटने के लिए राज्य को वित्तीय सहायता नहीं दे रही है.
राज्य सरकार ने अपनी याचिका में कहा है कि वह शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए बाध्य है क्योंकि केंद्र सरकार की कथित मनमानी कार्रवाइयों के परिणामस्वरूप कर्नाटक के लोगों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन हुआ है. इसमें आरोप लगाया गया है कि केंद्र सरकार ने लगभग छह महीने से आपदा पर अंतर-मंत्रालयी केंद्रीय टीम की रिपोर्ट पर अभी तक कार्रवाई नहीं की है. राज्य को राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (NDRF) के लाभों को रोकने के कारण हालत और खराब हो गई है. केंद्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कर्नाटक सरकार पर ही सवाल उठाए.
उन्होंने कहा कि जनहित याचिका दायर करने के बजाय, राज्य सरकार केंद्र के साथ संवाद कर सकती थी. उन्होंने लोकसभा चुनाव से पहले जनहित याचिका के समय पर भी सवाल उठाया. हम इन याचिकाओं का समय जानते हैं. भले ही अदालत नोटिस जारी न करें, यह भी एक खबर बन जाएगी. इसके बाद, अदालत ने एसजी मेहता के साथ-साथ अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, को दो सप्ताह के भीतर निर्देशों के साथ वापस आने के लिए कहा.
इससे पहले तमिलनाडु सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है और आरोप लगाया कि केंद्र सरकार प्राकृतिक आपदाओं से हुए नुकसान के लिए राहत राशि जारी नहीं कर रही है.
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