देशद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से इस हफ्ते तक मांगा जवाब, 5 मई को होगी मामले की सुनवाई

इस मामले में अदालत ने कहा था कि कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है. कोर्ट ने कहा था कि राजद्रोह कानून एक औपनिवेशिक कानून है और इसका इस्तेमाल अंग्रेजों द्वारा और हमारी आजादी का गला घोंटने के लिए किया गया था. इसका इस्तेमाल महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ किया गया था. यह कहते हुए कि कोर्ट देशद्रोह कानून की वैधता की जांच करेगा, कोर्ट ने इस पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था.

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राजद्रोह कानून के गलत इस्तेमाल पर कोर्ट का केंद्र से सवाल
नई दिल्ली:

देशद्रोह कानून की संवैधानिक वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने इस हफ्ते तक केंद्र से जवाब दाखिल करने को कहा है. अब कोर्ट में इस मामले की सुनवाई 5 मई को होगी. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को कहा कि वो इस हफ्ते के अंत तक अपना जवाब दाखिल करें. इसके बाद याचिकाकर्ता अपना जवाबी हलफनामा दाखिल करेंगे. केंद्र की ओर से SG तुषार मेहता ने कहा कि केंद्र की ओर से जवाब लगभग तैयार है और दो- तीन दिन में हलफनामा दाखिल किया जाएगा अन्य याचिकाओं को भी इसमें शामिल किया जाएगा.

इस मामले की सुनवाई CJI एन वी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस हिमा कोहली की स्पेशल बेंच कर रही है. साथ ही एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और पूर्व सैन्य अधिकारी समेत अन्य याचिकाओं पर होगी सुनवाई. 15 जुलाई 2021 को हुई सुनवाई में अदालत ने इसे भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ इस्तेमाल किया जाने वाला औपनिवेशिक कानून करार देते हुए केंद्र सरकार से सवाल किया था.

अदालत ने कहा था कि इस कानून का गलत इस्तेमाल हो रहा है. कोर्ट ने कहा था कि राजद्रोह कानून एक औपनिवेशिक कानून है और इसका इस्तेमाल अंग्रेजों द्वारा और हमारी आजादी का गला घोंटने के लिए किया गया था. इसका इस्तेमाल महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक के खिलाफ किया गया था. यह कहते हुए कि कोर्ट देशद्रोह कानून की वैधता की जांच करेगा, कोर्ट ने इस पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था 

इस मामले में शीर्ष अदालत ने पूछा था कि क्या आजादी के 75 साल बाद भी इस कानून की जरूरत है?' अदालत ने कहा था कि कई याचिकाओं में देशद्रोह कानून को चुनौती दी है और सभी पर एक साथ सुनवाई होगी. अदालत ने कहा था कि हमारी चिंता कानून का दुरुपयोग पर है. दरअसल कोर्ट ने देशद्रोह संबंधी ‘औपनिवेशिक काल' के दंडात्मक कानून के दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त की और प्रावधान की वैधता को चुनौती देने वाली ‘एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया' की याचिका समेत याचिकाओं के समूह पर केंद्र से जवाब मांगा.

अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने प्रावधान की वैधता का बचाव करते हुए कहा कि कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए कुछ दिशानिर्देश बनाए जा सकते हैं. मुख्य न्यायाधीश CJI एनवी रमना ने कहा था कि सरकार पुराने कानूनों को क़ानून की किताबों से निकाल रही है तो इस कानून को हटाने  विचार क्यों नहीं किया गया? देशद्रोह कानून संस्थाओं के कामकाज के लिए गंभीर खतरा है. CJI रमना ने कहा था कि राजद्रोह का इस्तेमाल बढ़ई को लकड़ी का टुकड़ा काटने के लिए आरी देने जैसा है  और वह इसका इस्तेमाल पूरे जंगल को काटने के लिए करता है.

याचिका में कहा गया कि याचिकाकर्ता की दलील है कि सरकार के प्रति असहमति आदि की असंवैधानिक रूप से अस्पष्ट परिभाषाओं पर आधारित एक कानून अपराधीकरण अभिव्यक्ति, अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत गारंटीकृत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर एक अनुचित प्रतिबंध है और बोलने की आजादी पर संवैधानिक रूप से अस्वीकार्य डराने वाले प्रभाव का कारण बनता है.

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इसी के साथ याचिका में कहा गया कि राजद्रोह की धारा 124-ए को देखने से पहले, समय के आगे बढ़ने और कानून के विकास पर गौर करने की जरूरत है. हालांकि शीर्ष अदालत की एक अलग पीठ ने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली दो पत्रकारों किशोरचंद्र वांगखेमचा (मणिपुर) और कन्हैयालाल शुक्ल (छत्तीसगढ़) की याचिकाओं पर केंद्र से जवाब मांगा था.

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