मुस्लिमों में प्रचलित तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-अहसन पर सुप्रीम कोर्ट ने मांगी राय, तीन तलाक के बाद बड़ा कदम

इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक या तलाक-ए-बिदत या एक बार में तीन बार तलाक कहने को असंवैधानिक करार दिया था. सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई नवंबर के तीसरे सप्ताह में करेगा.

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तलाक-ए-हसन एक ऐसी प्रथा है जिसमें तीन महीने तक हर महीने एक बार तलाक कहा जाता है.
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  • सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों में प्रचलित तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-अहसन, तलाक-ए-किनाया, तलाक-ए-बाईन पर राय मांगी है
  • तीन तलाक को समाप्त करने के बाद भी मुसलमानों में तलाक की यह प्रथा जारी है.
  • तलाक-ए-हसन में तीन महीने तक हर महीने एक बार तलाक कहा जाता है, जिससे तलाक की प्रक्रिया पूरी होती है.
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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने मुसलमानों में प्रचलित तलाक-ए-हसन, तलाक-ए-अहसन, तलाक-ए-किनाया, तलाक-ए-बाईन को लेकर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय महिला आयोग और बाल अधिकार आयोग (NCPCR) से राय मांगी है.  सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन तलाक को समाप्त करने के बाद से मुसलमानों में तलाक की यह आम प्रथा अभी भी जारी है. एक तलाक पीड़िता बेनज़ीर हिना द्वारा दायर एक याचिका पर, सुप्रीम कोर्ट ने आज राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, महिला आयोग और बाल अधिकार आयोग से प्रभावित महिलाओं और विवाहेतर संबंधों से पैदा हुए बच्चों पर तलाक-ए-हसन के प्रभाव की जांच करने के लिए राय मांगी.

तलाक-ए-हसन एक ऐसी प्रथा है जिसमें तीन महीने तक हर महीने एक बार तलाक कहा जाता है और इस तरह तीन तलाक की प्रक्रिया पूरी हो जाती है. इससे पहले, सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक या तलाक-ए-बिदत या एक बार में तीन बार तलाक कहने को असंवैधानिक करार दिया था. सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई नवंबर के तीसरे सप्ताह में करेगा.

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