राजनीतिक लड़ाई अदालत के बाहर लड़ें... कर्नाटक सरकार में मंत्री को CJI की खरी-खरी 

यह विवाद 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों से पहले एक रैली के दौरान यतनाल द्वारा दिए गए कथित मानहानिकारक बयानों से उत्पन्न हुआ. पाटिल ने बीएनएसएस की धारा 223 के तहत आपराधिक मानहानि की कार्रवाई शुरू की थी.

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  • सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार के मंत्री शिवानंद एस पाटिल की मानहानि मामले की अपील खारिज कर दी है.
  • मामले में कर्नाटक हाईकोर्ट ने भाजपा विधायक बसनगौड़ा आर पाटिल यतनाल के खिलाफ मानहानि मामला रद्द किया था.
  • हाईकोर्ट ने पाया कि मजिस्ट्रेट ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता की प्रक्रिया का उचित पालन नहीं किया था.
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नई दिल्‍ली:

सुप्रीम कोर्ट ने कर्नाटक सरकार में मंत्री शिवानंद एस पाटिल की अपील खारिज कर दी जिसमें उन्होंने कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी. उस आदेश में भाजपा विधायक बसनगौड़ा आर पाटिल यतनाल के खिलाफ मानहानि का मामला खारिज कर दिया गया था. CJI भूषण रामकृष्ण गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने मामले की सुनवाई की. जस्टिस गवई ने सुनवाई के दौरान कहा, 'मैं हमेशा आप सभी से कहता हूं कि राजनीतिक लड़ाई अदालत के बाहर लड़ें, यहां नहीं.' 

हाई कोर्ट के आदेश की आलोचना 

वकील ने कर्नाटक हाईकोर्ट के 28 सितंबर, 2024 के आदेश की आलोचना करते हुए कहा कि उसने भारतीय  नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) के तहत प्रक्रिया का पालन नहीं किए जाने के कारण यतनाल के खिलाफ मानहानि मामला रद्द कर दिया था. वकील का कहना था कि वह कैबिनेट स्तर के मंत्री रह चुके हैं तो क्या हुआ? उनके खिलाफ मामला 25,000 रुपये जुर्माने के साथ खारिज कर दिया गया. CJI ने कहा और बाद में उसे एक करोड़ रुपये तक बढ़ा दिया. बाद में बेंच ने वकील की गुहार पर जुर्माना माफ कर दिया और अपील भी वापस लेने की अनुमति दे दी.  

क्‍या है सारा मामला 

दरअसल यह विवाद 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों से पहले एक रैली के दौरान यतनाल द्वारा दिए गए कथित मानहानिकारक बयानों से उत्पन्न हुआ. पाटिल ने बीएनएसएस की धारा 223 के तहत आपराधिक मानहानि की कार्रवाई शुरू की थी. उन्होंने तर्क दिया था कि इन टिप्पणियों से उनकी प्रतिष्ठा को ठेस पहुंची है. हालांकि, हाईकोर्ट ने यतनाल की याचिका स्वीकार करते हुए पाया कि मजिस्ट्रेट ने शिकायत का संज्ञान लेने के तरीके में प्रक्रियागत खामियां पाईं. 

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क्‍या था हाई कोर्ट का फैसला 

हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि मजिस्ट्रेट बीएनएसएस प्रावधानों का उचित रूप से पालन करने में विफल रहे. इसके अनुसार संज्ञान लेने से पहले मजिस्ट्रेट को शिकायतकर्ता और गवाहों की शपथ के तहत जांच करनी चाहिए और आरोपी को नोटिस जारी करके सुनवाई का अवसर देना चाहिए. इसने निष्कर्ष निकाला कि मजिस्ट्रेट ने प्रक्रियात्मक चरणों को पार कर लिया था और तदनुसार मानहानि का मामला रद्द कर दिया. 

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