महाराष्ट्र में फिर से हो सकेगी बुल रेस, सुप्रीम कोर्ट ने 4 साल बाद दी सशर्त इजाजत

सुनवाई के दौरान जस्टिस ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि महाराष्ट्र संशोधनों की वैधता भी कर्नाटक और तमिलनाडु सरकारों के संशोधानों के साथ संविधान पीठ द्वारा तय की जाएगी. 

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2014 में जल्लीकट्टू, बुल-रेस और बैलगाड़ी दौड़ पर प्रतिबंध लगा था (प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली:

महाराष्ट्र में एक बार फिर से बुल रेस (Bull Race) हो सकेगी. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने चार साल के बाद बुल रेस की गुरुवार को सशर्त इजाजत दे दी. कोर्ट ने कहा कि उसे कर्नाटक और तमिलनाडु द्वारा पशु क्रूरता निवारण अधिनियम में संशोधन के तहत बनाए गए नियमों और शर्तों का ही पालन करना होगा. सुनवाई के दौरान जस्टिस खानविलकर ने मौखिक तौर पर कहा, "एक देश, एक दौड़, हमें एकरूपता की जरूरत है और एक नियम होना चाहिए. अगर अन्य राज्यों में दौड़ चल रही है तो महाराष्ट्र द्वारा इसकी अनुमति क्यों नहीं दी जानी चाहिए."

उन्होंने कहा, "यह एक पारंपरिक खेल है जो कई वर्षों से चल रहा है. फैसला आया इसे रोक दिया गया. संशोधन आया. एक विनियमित तरीके से अनुमति दी गई. यदि यह एक पारंपरिक खेल है और महाराष्ट्र को छोड़कर पूरे देश में चल रहा है, तो यह सामान्य ज्ञान के लिए अपील नहीं करता है.

महाराष्ट्र के मामले को भी कर्नाटक और तमिलनाडु मामलों के साथ जोड़ा गया है. दरअसल, कर्नाटक और तमिलनाडु द्वारा किए गए संशोधनों की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं  2018 से संविधान पीठ के सामने लंबित हैं. 

सुनवाई के दौरान जस्टिस ए एम खानविलकर की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि महाराष्ट्र संशोधनों की वैधता भी कर्नाटक और तमिलनाडु सरकारों के संशोधानों के साथ संविधान पीठ द्वारा तय की जाएगी. 

दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में जल्लीकट्टू, बुल-रेस और बैलगाड़ी दौड़ पर देशभर में प्रतिबंध लगा दिया था. अदालत ने यह स्वीकार किया था कि ये पशु क्रूरता निवारण कानून (PCA Act) के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं. हालांकि, कर्नाटक और TN ने बैल दौड़ की अनुमति देने के लिए पशु क्रूरता निवारण अधिनियम में संशोधन किया था. इसे भी चुनौती दी गई, जो तीन साल से लंबित है.
 

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