सुप्रीम कोर्ट ने 28 साल से जेल में बंद मौत की सजा पाए व्यक्ति को फौरन रिहा करने का आदेश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने मान लिया है कि वारदात के समय याचिकाकर्ता की उम्र 12 साल ही थी यानी वो तब नाबालिग था. जस्टिस अनिरुद्ध बोस, जस्टिस केएम जोसफ और जस्टिस हृषिकेश रॉय ने दोषी ठहराकर 28 साल से जेल में कैद सजा ए मौत का इंतजार कर रहे नारायण चेतनराम चौधरी की नाबालिगता सिद्ध होने पर रिहा करने का आदेश दिया. मामले में पुणे में 1994 के दौरान राठी परिवार की हत्या की गई थी. मारे जाने वालों में एक गर्भवती महिला और दो बच्चे थे. चौधरी 28 सालों से जेल में बंद है.
इस सामूहिक हत्या कांड में चौधरी के अलावा मौत की सजा तय किए गए जितेंद्र नरसिंह गहलोत ने तो 2016 में तो राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका भी दाखिल कर दी थी. उसकी याचिका पर सजा ए मौत को उम्र कैद में तब्दील कर दिया गया था. हालांकि, चौधरी ने अपनी दया याचिका वापस लेकर नाबालिग होने की दलील पर 2015 में रिव्यू याचिका सुप्रीम कोर्ट में लगाई. स्वरूप चौधरी ने राजस्थान में अपने स्कूल रिकॉर्ड के दस्तावेज लगाए. उनसे चौधरी के नाबालिग होने की स्पष्ट पुष्टि हो गई. उसे सुप्रीम कोर्ट ने भी मान्यता दी. उससे पहले चौधरी के पास अपनी किशोरावस्था के प्रमाण के लिए कोई दस्तावेज नहीं था, क्योंकि महाराष्ट्र में वो नौवीं और दसवीं यानी सिर्फ डेढ़ साल ही पढ़ा था.
सुप्रीम कोर्ट ने चार साल पहले जनवरी 2019 में पुणे के प्रिंसिपल जिला और सत्र न्यायाधीश को कहा था कि चौधरी की उम्र का पता लगाकर बताएं. जज ने सीलबंद लिफाफे में अपनी पड़ताल रिपोर्ट दाखिल की. पांच महीने बाद मई 2019 में ग्रीष्मकालीन अवकाश पीठ के दौरान जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस संजीव खन्ना ने वो लिफाफा खोला तो चौधरी का दावा और दलील वही निकले, जो रिपोर्ट में था. अब सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की पीठ ने चौधरी की रिहाई के आदेश दिए हैं.
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