SIR में ज्यादा दखल नहीं देगा सुप्रीम कोर्ट, CJI ने किया साफ- 'माइक्रो मैनेज' नहीं करेंगे

मतदाता सूची की जांच की स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कोई वार्षिक प्रक्रिया नहीं है और अदालत को इसमें हस्तक्षेप करते समय सतर्क रहना चाहिए.

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CJI ने SIR के खिलाफ दायर याचिकाओं पर बड़ी टिप्पणी की है.
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  • निर्वाचन आयोग भारत के कई राज्यों में मतदाता सूची की स्पेशल इंटेंसिव रिविजन प्रक्रिया बीस साल बाद कर रहा है.
  • सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि SIR कोई वार्षिक प्रक्रिया नहीं है और इसमें अदालत को ज्यादा हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए.
  • विपक्षी पक्ष का दावा है कि SIR के जरिए विपक्षी समर्थकों के नाम हटाए जा रहे हैं लेकिन इसे प्रमाणित नहीं किया.
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नई दिल्ली:

Supreme Court on SIR: बिहार के बाद निर्वाचन आयोग भारत के कई राज्यों में मतदाता सूची की गहन जांच करवा रहा है.  स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) की इस प्रक्रिया पर कई विपक्षी दल सवाल उठा रहे हैं. इस प्रक्रिया के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में भी कई याचिकाएं दाखिल की गई हैं. विपक्षी दलों का दावा है कि इस प्रक्रिया के जरिए दूसरे दलों के समर्थकों का नाम काटा जा रहा है. लेकिन इसे प्रमाणिक तौर पर साबित नहीं किया गया है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने संकेत दिया है कि सर्वोच्च अदालत SIR में ज्यादा दखल नहीं देगा. बुधवार को SIR के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सीजेआई सूर्यकांत ने कहा- यह हर साल होने वाली कोई प्रक्रिया नहीं है. चुनाव आयोग इसे 20 साल बाद कर रहा है. ऐसे में इसे माइक्रो मैनेज नहीं कर सकते. 

मतदाता सूची की जांच की स्पेशल इंटेंसिव रिविजन (SIR) के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह कोई वार्षिक प्रक्रिया नहीं है और अदालत को इसमें हस्तक्षेप करते समय सतर्क रहना चाहिए. 

सीजेआई और जस्टिस बागची की पीठ ने क्या कहा?

मुख्य न्यायाधीश सूर्य कांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि चुनाव आयोग लगभग 20 साल बाद यह अभ्यास कर रहा है, इसलिए कोर्ट इस प्रक्रिया को “माइक्रो-मैनेज” नहीं कर सकती. पीठ उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें नौ राज्यों और तीन केंद्रशासित प्रदेशों में चुनाव आयोग द्वारा शुरू किए गए SIR अभियान को चुनौती दी गई है. 

याचिकाकर्ताओं के वकील ने क्या दिए दलील

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील राजू रामचंद्रन ने तर्क दिया कि आयोग ने बिहार में SIR शुरू करने के जो कारण बताए- तेज़ शहरीकरण, आव्रजन, युवा मतदाताओं का जुड़ना, मौतों की रिपोर्ट न होना और विदेशी अवैध प्रवासियों का शामिल होना... उनका उस प्रक्रिया से कोई तार्किक संबंध नहीं है. जिसके तहत मतदाताओं से दस्तावेज़ मांगे जा रहे हैं. 

'BLO द्वारा किसी का नाम हटाना नागरिकता निलंबित करने जैसा'

उन्होंने कहा कि बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLO) द्वारा संदेह के आधार पर किसी व्यक्ति का नाम हटाना “व्यवहार में उसकी नागरिकता निलंबित करने” जैसा है. “नागरिकता का निर्धारण संसद द्वारा बनाए गए कानून—Citizenship Act—के तहत ही हो सकता है. ECI के BLO किसी व्यक्ति की नागरिकता पर संदेह नहीं कर सकते है. 

रामचंद्रन ने यह भी कहा कि ROPA (Representation of the People Act) के तहत ही संदेह या जांच का तरीका तय है, और BLO को स्वतंत्र संदेह जताने का कोई अधिकार नहीं दिया गया. 

माइग्रेशन की दलील पर जजों ने दिए उदाहरण

जब वरिष्ठ वकील ने तर्क दिया कि आयोग का “माइग्रेशन” वाला कारण कई राज्यों में लागू नहीं होता, तो जस्टिस बागची ने कहा कि माइग्रेशन शब्द केवल घरेलू प्रवास तक सीमित नहीं है. उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल से IT पेशेवर दक्षिण भारत जा रहे हैं. 

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CJI कांत ने भी कहा कि पंजाब में किसानों के बीच भी दशकों से बड़े पैमाने पर प्रवास हुआ है. कुछ लोग दूसरे राज्यों से आए हैं, जबकि पंजाब का युवावर्ग विदेश जा रहा है. 

वकील ने कहा- राज्यवार कारण नहीं दिया

रामचंद्रन ने तर्क दिया कि आयोग ने ROPA की धारा 21(3) के तहत कोई राज्यवार कारण नहीं दिया. एक ही कारण—शहरीकरण और माइग्रेशन—पश्चिम बंगाल, केरल, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, राजस्थान और लक्षद्वीप, अंडमान-निकोबार व पुडुचेरी पर समान रूप से लागू कर दिया गया.   

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उन्होंने सवाल उठाया कि लक्षद्वीप या अंडमान जैसे क्षेत्रों में “तेज़ शहरीकरण या बड़े पैमाने पर माइग्रेशन” कैसे माना जा सकता है? इसे उन्होंने “सरल, सतही और आलसी अनुमान” बताया 

सीजेआई ने कहा- हम इसमें बहुत ज्यादा हस्तक्षेप नहीं कर सकते

  • CJI ने हालांकि कहा कि अंडमान जैसे क्षेत्रों में भी दशकों से व्यापक प्रवास देखा गया है और जनसंख्या संरचना बदली है. CJI ने संकेत दिया कि अदालत इस प्रक्रिया का माइक्रो-मैनेज नहीं करेगी. 
  • उन्होंने कहा,SIR कोई वार्षिक प्रक्रिया नहीं है. हम इसमें बहुत ज़्यादा हस्तक्षेप नहीं कर सकते, वरना यह सालाना अभ्यास बन जाएगा. आयोग बीस साल बाद यह कर रहा है.

रामचंद्रन ने जवाब दिया कि ठीक इसी कारण आयोग को और स्पष्ट, गंभीर और राज्यवार कारण देने चाहिए थे, जो उसके नोटिफिकेशन में नहीं दिखते. सुनवाई अगली मंगलवार को जारी रहेगी. 

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