बहुत दुखद रिपोर्ट! उसे इस तरह जीने नहीं दे सकते: इच्छामृत्यु की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट

पीड़ित के अभिभावक की तरफ से कोर्ट में शख्स की जो तस्वीरें पेश की थी उसमें दिख रहा है कि बिस्तर पर पड़े पड़े उसे कई घाव हो गए हैं. इन तस्वीरों को देखने के बाद ही इसके बाद कोर्ट ने मामले की जांच एम्स द्वारा गठित सेकेंडरी मेडिकल बोर्ड से कराने का आदेश दिया था.

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इच्छामृत्यु पर सुप्रीम कोर्ट की बड़ी टिप्पणी
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  • SC ने 31 वर्षीय व्यक्ति के लिए इच्छामृत्यु की याचिका पर सुनवाई की, जो बीते 12 वर्षों से कोमा में है
  • AIIMS की मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार उस व्यक्ति के ठीक होने की संभावना लगभग शून्य बताई गई है
  • सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम निर्णय से पहले याचिकाकर्ता के वकीलों और मेडिकल बोर्ड की राय लेने के निर्देश दिए हैं
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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक बुजुर्ग माता-पिता की उस याचिका पर सुनवाई की जिसके तहत उन्होंने अपने 31 वर्षीय बेटे के लिए निष्क्रिय इच्छामृत्यु (पैसिव यूथोनेशिया) की मांग की थी. इस सुनवाई के दौरान कोर्ट ने 31 वर्षीय शख्स की मेडिकल रिपोर्ट भी देखी. कोर्ट ने मेडिकल रिपोर्ट देखने के बाद जो टिप्पणी की वो बेहद खास है. कोर्ट ने कहा कि  यह बेहद दुखद रिपोर्ट है और यह हमारे लिए भी बड़ी चुनौती होगी लेकिन हम लड़के को हमेशा ऐसे ही नहीं रख सकते.सुप्रीम कोर्ट ने जिस मेडिकल रिपोर्ट को देखा है उसे भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने तैयार की है.  इस रिपोर्ट में बताया गया है कि शख्स बीते 12 सालों से कोमा में है.शख्स के अभिभावक ने अपने बेटे की इस अवस्था को देखते हुएउसकी इच्छामृत्यु के लिए कोर्ट का रुख किया है. शख्स की मेडिकल रिपोर्ट के अनुसार उसके रिकवर होने की संभावना ना के बराबर है. 

सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को हुई सुनवाई में कहा कि वो 13 जनवरी को शख्स के माता-पिता से बात करेंगे. इससे पहले कोर्ट ने वकीलों से कहा है कि वो इस रिपोर्ट को स्टडी करें और कोर्ट को उसके बारे में बताएं ताकि कोर्ट को अंतिम आदेश देने में इससे मदद मिले. इससे पहले, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति केवी विश्वनाथन की पीठ ने अपने बेटे से सभी जीवनरक्षक उपचार हटाने की मांग करने वाले पिता की एम्स रिपोर्ट मांगी थी.

सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देशों के अनुसार कोर्ट को निष्क्रिय इच्छामृत्यु की अनुमति देने से पहले प्राथमिक और माध्यमिक मेडिकल बोर्ड की राय लेनी होगी.  आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने प्राइमरी मेडिकल बोर्ड का गठन किया था, जिसने बताया कि उस व्यक्ति के ठीक होने की संभावना नगण्य थी. बताया गया कि वह सांस लेने के लिए ट्रेकियोस्टोमी ट्यूब और दूध पिलाने के लिए गैस्ट्रोस्टोमी के साथ बिस्तर पर लेटे हुए हैं.

पीड़ित के अभिभावक की तरफ से कोर्ट में शख्स की जो तस्वीरें पेश की थी उसमें दिख रहा है कि बिस्तर पर पड़े पड़े उसे कई घाव हो गए हैं. इन तस्वीरों को देखने के बाद ही इसके बाद कोर्ट ने मामले की जांच एम्स द्वारा गठित सेकेंडरी मेडिकल बोर्ड से कराने का आदेश दिया था. आज एडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने बताया कि एम्स की रिपोर्ट आ गई है.रिपोर्ट पर गौर करते हुए न्यायमूर्ति पारदीवाला ने टिप्पणी की कि यह एक "दुखद रिपोर्ट" है और लड़का इस तरह जीवित नहीं रह सकता. चूंकि रिपोर्ट की प्रति याचिकाकर्ता के वकील, अधिवक्ता रश्मी नंदकुमार, साथ ही एएसजी भाटी के साथ साझा नहीं की गई थी, इसलिए अदालत ने निर्देश दिया कि रिपोर्ट उनके साथ साझा की जा सकती है.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हम उस चरण में पहुंच गए हैं जहां हमें अंतिम फैसला लेना होगा. अंतिम आदेश पारित करने में अदालत की सहायता के लिए वकीलों की मांग करते हुए अदालत ने कहा कि यह एक बहुत दुखद रिपोर्ट है और यह हमारे लिए भी एक बड़ी चुनौती होगी लेकिन हम लड़के को हमेशा ऐसे ही नहीं रख सकते.

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