"पार्टी के भीतर मतभेद फ्लोर टेस्ट बुलाने का आधार नहीं हो सकता" : शिवसेना Vs शिवसेना मामले में Governor से SC

CJI ने राज्यपाल से कहा कि धारणा शिवसेना के भीतर आंतरिक मतभेदों को अधिक महत्व देने की है. एक तो पार्टी के भीतर असंतोष और दूसरा सदन के पटल पर विश्वास की कमी. ये एक-दूसरे का सूचक नहीं है.

विज्ञापन
Read Time: 21 mins
शिवसेना बनाम शिवसेना मामले में आज सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई.
नई दिल्ली:

शिवसेना बनाम शिवसेना मामले में भारत के प्रधान न्यायाधीश (CJI) ने महाराष्ट्र के राज्यपाल से कहा कि उन्हें इस तरह विश्वास मत नहीं बुलाना चाहिए था. उनको खुद ये पूछना चाहिए था कि तीन साल की सुखद शादी के बाद क्या हुआ? राज्यपाल ने कैसे अंदाजा लगाया कि आगे क्या होने वाला है ? CJI ने राज्यपाल से आगे पूछा- क्या फ्लोर टेस्ट बुलाने के लिए पर्याप्त आधार था? आप जानते हैं कि कांग्रेस (INC) और एनसीपी (NCP) एक ठोस ब्लॉक हैं. इस मामले पर आज शाम को करीब चार बजे तक सुनवाई चली. कल उद्धव ठाकरे गुट की तरफ से कपिल सिब्बल की बहस जारी रहेगी.

आज CJI ने राज्यपाल से कहा कि धारणा शिवसेना के भीतर आंतरिक मतभेदों को अधिक महत्व देने की है. एक तो पार्टी के भीतर असंतोष और दूसरा सदन के पटल पर विश्वास की कमी. ये एक-दूसरे का सूचक नहीं है. किस बात ने राज्यपाल को आश्वस्त किया कि सरकार सदन का विश्वास खो चुकी है. हम राज्यपाल के पक्ष में सभी धारणाएं बनाएंगे. राज्यपाल को इन सभी 34 विधायकों को शिवसेना का हिस्सा मानना चाहिए तो फिर फ्लोर टेस्ट क्यों बुलाया गया. राज्यपाल के सामने तथ्य यह है कि 34 विधायक शिवसेना का हिस्सा थे. अगर ऐसा है तो राज्यपाल ने फ्लोर टेस्ट क्यों बुलाया. इसका एक ठोस कारण बताना चाहिए.

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल से कहा कि आप सिर्फ इसलिए विश्वास मत नहीं बुला सकते क्योंकि किसी पार्टी के भीतर मतभेद है. पार्टी के भीतर मतभेद फ्लोर टेस्ट बुलाने की आधार नहीं हो सकता. आप विश्वास मत नहीं मांग सकते. नया राजनीतिक नेता चुनने के लिए फ्लोर टेस्ट नहीं हो सकता. पार्टी का मुखिया कोई और बन सकता है. जब तक कि गठबंधन में संख्या समान है, राज्यपाल का वहां कोई काम नहीं. ये सब पार्टी के अंदरुनी अनुशासन के मामले हैं. इनमें राज्यपाल के दखल की जरूरत नहीं है.

Advertisement

राज्यपाल की ओर से SG तुषार मेहता ने कहा कि 47 सदस्यों ने चिट्ठी लिखी थी. इनमें दो दूसरी पार्टी के विधायक भी थे.  सदस्य कह रहे हैं कि उन्हें पार्टी पर भरोसा नही है. ऐसा नहीं है कि विधायक दल के सदस्य राजनीतिक दल से अलग हो रहे हैं. यहां वे अपना समर्थन वापस ले रहे हैं और यही अंतर है. दूसरे गुट के विधायक धमकी दे रहे हैं. क्या ऐसे में राज्यपाल का यह राय बनाना उचित नहीं होगा कि वास्तव में सरकार ने बहुमत खो दिया है. क्या शक्ति परीक्षण नहीं किया जा सकता? वह कौन सी सामग्री हो सकती है, जो राज्यपाल के निर्णय का आधार बने. ऐसे में राज्यपाल मूकदर्शक बने नहीं रह सकते हैं. ऐसे हालात में राज्यपाल का फ्लोर टेस्ट बुलाना संवैधानिक दायित्व है.

Advertisement

यह भी पढ़ें-
दिल्ली एम्स के डॉक्टरों ने गर्भ के अंदर बच्चे की जोखिम भरी हार्ट सर्जरी की
मुंबई : प्लास्टिक बैग में मिली महिला की सड़ी लाश, बेटी पर हत्या कर महीनों शव रखने का आरोप

Advertisement
Featured Video Of The Day
Himachal Cloudburst: बह गए पेड़, 5 मंजिला इमारत और दीवारें धराशायी..फिर भी टिकी रही Pandav Shila
Topics mentioned in this article