संविधान दिवस पर सुप्रीम कोर्ट में आयोजित समारोह में राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मु के जेलों में बंद गरीब व लाचार लोगों पर मार्मिक टिप्पणी के बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने उन लोगों के बारे में चिंता व्यक्त की है जिन्हें जमानत मिल गई है, लेकिन वे जमानत बांड भरने या अदालत के समक्ष ज़मानत पेश करने में सक्षम नहीं हैं, जिसके चलते वो जेल से बाहर नहीं निकल पा रहे हैं. बेंच ने कहा कि यह एक नियमित घटना है जहां अभियुक्तों को जमानत दी जाती है, लेकिन वे जमानत बांड या स्थानीय ज़मानत देने में सक्षम नहीं होते हैं. यह उचित होगा कि जिला कानूनी सेवा प्राधिकरण इसका कोई उपाय निकाले. जमानत की शर्त पूरा करने में असमर्थ होने की वजह से अरसे से जेल में बंद विचाराधीन कैदियों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किया है.
जस्टिस संजय किशन कौल की अध्यक्षता वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने निर्देश जारी करते हुए कहा कि राज्य ऐसे कैदियों का डेटा 15 दिन के भीतर एक चार्ट के रूप में दें. साथ ही NALSA को कहा कि वो कानूनी सहायता सहित सभी सहायता प्रदान करेगा. कोर्ट ने कहा कि सभी जेल ऐसे विचाराधीन कैदियों की सूची विस्तृत जानकारी के साथ एक सारणी के रूप में राज्य सरकार और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण के पास भेजेंगे. राज्य सरकार और राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण पूरी तरतीब के साथ आपस में बातचीत कर नीति बनाएंगे. कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल से कहा कि वो राज्यों से एक निश्चित प्रारूप में सारणी मंगवाएं. इस सारणी में आरोपी कैदी का नाम, अपराध का आरोप, जमानत पर रिहा करने का आदेश की तारीख, शर्तें जो पूरी करने में आरोपी असमर्थ रहा, तब से अब तक कितनी अवधि बीत गई आदि चीजें जरूर होनी चाहिए.
इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने सजायाफ्ता कैदियों के लिए भी सजा अवधि पूरी होने से पहले रिहाई की संभावनाएं और शर्तें तैयार करने का निर्देश भी दिया. कोर्ट ने अपने आदेश में इसका भी जिक्र किया है. आदेश में कहा गया है कि आजादी के अमृत महोत्सव के दौरान भी सजा की अवधि पूरी होने से पहले रिहाई की योजना शुरू की गई थी लेकिन उस पर अमल पूरी तरह से कारगर नहीं हुआ. अब राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) और केन्द्रीय गृह मंत्रालय उम्र कैदियों के भी सजा अवधि पूरी होने से पहले रिहाई की संभावनाओं पर विचार कर उसे भी इस योजना में शामिल करें.
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