कश्मीर में अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के खिलाफ दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने दूसरे दिन भी कई सवाल खड़े किए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान एक जीवित दस्तावेज है. तो क्या हम ये कह सकते हैं कि सभी कश्मीरी भी चाहें तो 370 में संशोधन नहीं कर सकते? क्या संविधान की धारा 370 ने एक स्थायी सुविधा हासिल कर ली है, यह बहस का मुद्दा है. क्या हम कह सकते हैं कि अनुच्छेद 370 को हटाने के लिए कोई तंत्र नहीं है, भले ही पूरा कश्मीर ऐसा चाहता हो?
जस्टिस संजय किशन कौल ने सिब्बल से कहा कि आपके अनुसार न तो विधानसभा अनुच्छेद 370 को निरस्त कर सकती है न ही संसद ऐसा कर सकती है. तो आप जो कह रहे हैं वह यह है कि भारत के संविधान के अन्य प्रावधान एक प्रक्रिया द्वारा संशोधन करने में सक्षम हो सकते हैं.इसके अलावा यह बुनियादी ढांचे से प्रभावित है. यह एक ऐसा प्रावधान है जिसमें कभी भी संशोधन नहीं किया जा सकता है.स्थायित्व होने के कारण, पूरी अवधारणा यह है कि संविधान भी एक जीवित दस्तावेज है.किसी स्तर पर, क्या हम कह सकते हैं कि इसके लिए किसी भी तरह की कोई व्यवस्था नहीं है .क्या इसे तब भी नहीं बदला जा सकता जब हर कोई इसे बदलना चाहे और इससे बुनियादी ढांचे पर कोई असर न पड़े?
जस्टिस संजय किशन कौल ने सिब्बल से सवाल किया कि एक दलील है कि अनुच्छेद 370 ने संविधान की स्थायी विशेषता हासिल कर ली है जो एक बहस का मुद्दा है.अगला यह है कि मान लीजिए कि यह स्थायी नहीं है तो इसका तरीका क्या है? अनुच्छेद 370 को निरस्त करने में किस प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए?
जस्टिस कौल ने मामले के मुख्य दो मुद्दों पर प्रकाश डाला:
- क्या 1957 के बाद अस्थायी प्रावधान के रूप में बनाया गया अनुच्छेद 370 संविधान की स्थायी विशेषता बन गया?
- यदि नहीं तो क्या 2019 में इसे निरस्त करने की प्रक्रिया अपनाई गई?
CJI चंद्रचूड़ ने पूछा कि स्पष्टीकरण में राज्य सरकार का क्या मतलब है इसकी एक विस्तृत परिभाषा शामिल है.इसमें महाराजा शामिल नहीं हैं.इसमें कहा गया है कि राज्य सरकार का मतलब उस व्यक्ति से है जिसे कुछ समय के लिए राष्ट्रपति द्वारा महाराजा के रूप में मान्यता दी गई हो.क्या होगा जब जम्मू-कश्मीर में महाराजा के स्थान पर एक निर्वाचित सरकार आती है?क्या अनुच्छेद 370 की स्थायित्व जम्मू-कश्मीर के संविधान से उत्पन्न परिणाम हो सकता है?
कपिल सिब्बल ने क्या कहा?
कपिल सिब्बल ने कहा कि नहीं, नहीं. एक आवेदन आदेश द्वारा 370 को जम्मू-कश्मीर संविधान में लागू किया गया था.जस्टिस संजय किशन कौल ने कहा कि क्या जम्मू-कश्मीर का संविधान भारत के संविधान की धारा 370 को स्थायित्व दे सकता है?वहीं इनका उत्तर देते हुए याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि वहां कोई मंत्रिपरिषद नहीं है. कोई सरकार नहीं है.लेकिन राज्यपाल एक रिपोर्ट भेजते हैं कि राज्य का शासन नहीं चलाया जा सकता.कोई बातचीत नहीं, कोई संचार नहीं. उन्होंने कहा कि अब हम कुछ भी कर सकते हैं.और उन्होंने खुद से सिफारिश की. इसलिए उन्होंने दो हाथों से ताली बजाने के बजाय एक हाथ से ताली बजाई. ये अनोखा, अनसुना मामला है.यह प्रक्रिया कानून के लिए अज्ञात है. उन्होंने विधान सभा को संविधान सभा में बदल दिया.तब उन्होंने कहा कि 356 के कारण अब संसद उस शक्ति का प्रयोग कर रही है.अतः संसद एक विधायिका है.और क्योंकि विधायिका अब संविधान सभा है.हम अब संविधान सभा हैं.
दरअसल CJI ने कल कहा था कि संविधान कहता है कि धारा 370 अस्थायी, ट्रांजीशनल है. और पूछा था कि क्या संविधान सभा भंग होने के बाद भी यह जारी रह सकता है? CJI ने कहा था कि धारा 370 को निरस्त करने के लिए संविधान सभा की सिफारिश की आवश्यकता नहीं है. CJI ने कहा कि संविधान सभा एक स्थायी निकाय नहीं है. जम्मू-कश्मीर संविधान बनने के बाद इसका अस्तित्व समाप्त हो गया. इसलिए निरस्त करने से पहले संविधान सभा की सिफारिश को अनिवार्य बनाने वाले प्रावधान का अब कोई उपयोग नहीं है.सुनवाई अब 8 अगस्त को जारी रहेगी.
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