सु्प्रीम कोर्ट ने 1985 के हत्या के एक मामले में पिछले 35 साल के कार्यवाही का सामना कर रहे दो व्यक्तियों को संदेह का लाभ दिया है. शीर्ष अदालत ने मामले में इन दोनों की दोषसिद्धि की पुष्टि वाले इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया है. जस्टिस रविंद्र भट और दीपांकर दत्ता की बेंच ने 29 जनवरी 1986 के ट्रायल कोर्ट और 9 जुलाई 2014 के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया. SC ने कहा, "इस कोर्ट का विचार है कि अपीलकर्ताओं ने नारायण की हत्या की, यह कहा नहीं जा सकता और एक उचित संदेह से परे साबित नहीं किया जा सकता है, इसलिए वे संदेह के लाभ के हकदार थे और हैं."कोर्ट ने कहा कि अपीलकर्ता जो अपीलीय निर्णय और आदेश दिए जाने के बाद से सुधार गृह में बंद हैं, अगर किसी अन्य मामले में वांछित नहीं हैं तो उन्हें तुरंत रिहा कर दिया जाएगा.
यह है मामला
दो शख्स मुन्ना और श्योलाल को 29 जनवरी 1986 को यूपी के शाहजहांपुर एडीशनल सेशन जज ने नारायण की हत्या के मामले में दोषी ठहराया था जिसकी इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 9 जुलाई 2014 को पुष्टि की थी. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ इन दोनों ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. दरअसल, रामविलास के पिता नारायण की 5 सितंबर 1985 की सुबह यूपी के शाहजहांपुर जिले के एक गांव में हत्या कर दी गई थी. इसके बाद रामविलास द्वारा IPC की धारा 302 के तहत FIR दर्ज कराने के लिए एक लिखित शिकायत दी गई, जिसमें मुन्ना लाल, शिव लाल, बाबू राम और कालिका पर हत्या का आरोप लगाया गया था. विवेचना पूरी होने पर चारों आरोपियों में से प्रत्येक के खिलाफ संबंधित कोर्ट में धारा 302 के तहत आरोप पत्र दाखिल किया गया. मामले के लंबित रहने के दौरान कालिका और बाबू राम की मौत हो गई थी. मृतक नारायण के बेटे रामविलास ने कहा था कि जिस दिन अपराध हुआ उस दिन वह अपने पिता (नारायण) के साथ खेल जोतकर एक अन्य खेत में पहुंचा था, इसी दौरान हथियारों से लैस चारों आरोपी अचानक आ गए. वे अपशब्द कहते हुए नारायण को जान से मारने की धमकी दे रहे थे. मुन्ना लाल और बाबू राम ने नारायण को गोली मारी, जबकि शिव लाल और कालिका ने कांटा और लाठी से उस पर प्रहार किया.
कोर्ट ने कहा, "केवल जांच प्रक्रिया में त्रुटि ही बरी होने का आधार नहीं बन सकती, न्यायालय का यह कानूनी दायित्व है कि वह हर मामले में सावधानीपूर्वक जांच करे. कोर्ट ने आगे कहा कि कानून में स्थिति के प्रति जागरूक होने और आपराधिक न्याय के प्रशासन (Administration of criminal justice)में लोगों के विश्वास और विश्वास को कम होने से बचाने के लिए इस अदालत ने अभियोजन पक्ष के नेतृत्व में दिए गए सबूतों की बारीकी से जांच की है और जांच अधिकारी के साथ-साथ जांच अधिकारी की लापरवाही को महत्व देने से परहेज किया है. चूक उसके द्वारा की गई सतही जांच के परिणामस्वरूप हुई.
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