शिवसेना बनाम शिवसेना: सुप्रीम कोर्ट ने मामले को बड़ी बेंच को भेजे जाने पर फैसला सुरक्षित रखा

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के संविधान पीठ ने ही 2016 के अरूणाचल प्रदेश फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा था कि ये बहुत पेचीदा संवैधानिक मसला है. जिसका हमें फैसला करना है.

विज्ञापन
Read Time: 25 mins
सुप्रीम कोर्ट में कल भी हुई थी मामले पर सुनवाई.
नई दिल्ली:

शिवसेना बनाम शिवसेना मामला: सुप्रीम कोर्ट ने मामले को बड़ी बेंच को भेजे जाने पर फैसला सुरक्षित रखा लिया है. 5 जजों की संविधान पीठ को ये तय करना है कि 2016 में संविधान पीठ के नेबाम रेबिया के फैसले को समीक्षा के लिए 7 जजों की बेंच में भेजा जाए या नहीं. दरअसल अरुणाचल प्रदेश मामले में दिए फैसले में कहा गया था कि स्पीकर तब तक किसी विधायक के खिलाफ अयोग्यता की कार्रवाई शुरू नहीं कर सकता है, जब खुद उसके खिलाफ पद से हटाए जाने की अर्जी लंबित हो.  

बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों के संविधान पीठ ने ही 2016 के अरूणाचल प्रदेश फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा था कि ये बहुत पेचीदा संवैधानिक मसला है. जिसका हमें फैसला करना है. नबाम रेबिया का फैसले में कुछ बदलाव की जरूरत है. हम ये नहीं कहेंगे कि 2016 का फैसला गलत था. लेकिन हम ये कह रहे हैं कि उसमें कुछ बदलाव कर मजबूत करने की जरूरत है. हालांकि सवाल ये है कि आखिरकार ये बदलाव पांच जजों का पीठ कर सकती है या फिर इसे बड़ी बेंच में भेजा जाना चाहिए. गुरुवार को भी सुनवाई जारी रहेगी. 

नामीबिया के बाद अब साउथ अफ्रीका से 12 चीते लाए जा रहे कूनो, सेना के कार्गो विमान में आएंगे

Advertisement

महाराष्ट्र विधान सभा में जारी राजनीतिक और संवैधानिक संकट पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के अगुआई कर रहे सीजेआई जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने टिप्पणी करते हुए कहा कि पीठ के सामने मसला यह है कि सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 2016 में नबाम रेबिया मामले में दिया गया निर्णय सही था या नहीं.

Advertisement

अरुणाचल प्रदेश के नबाम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर मामले में दिए फैसले में कहा गया था कि स्पीकर तब किसी विधायक के खिलाफ अयोग्यता की कार्रवाई शुरू नहीं कर सकता जब खुद उसके खिलाफ उसे ही हटाए जाने की अर्जी लंबित हो.  यदि आप नबाम रेबिया के फैसले को लेते हैं तो यह कहता है कि एक बार नोटिस जारी करने के कारण स्पीकर 
 का अस्तित्व ही संकट में आ जाता है. ऐसे में स्पीकर को अयोग्यता पर निर्णय नहीं लेना चाहिए जब तक कि उनकी खुद की निरंतरता सदन के अनुसमर्थन को पूरा नहीं करती. इसका परिणाम राजनीतिक दल से दूसरे में ह्यूमन कैपिटल के मुक्त प्रवाह की अनुमति देना है. जैसा कि आपने महाराष्ट्र में देखा है. लेकिन इसके विपरीत देखें तो यदि आप कहते हैं कि इस तथ्य के बावजूद कि नोटिस जारी करने से स्पीकर के पद पर बने रहने पर संकट आ गया है, वह अभी भी अयोग्यता के नोटिस का फैसला कर सकते हैं. इसका परिणाम अनिवार्य रूप से नेता है. जिस राजनीतिक दल ने अपने समर्थन को खो दिया है. वह तब उन्हें समूह में रोक सकता है.  हालांकि वास्तविक राजनीति के मामले में उसने समर्थन खो दिया है. तो, दूसरे चरण को अपनाने का मतलब होगा कि आप वास्तव में सुनिश्चित कर रहे हैं कि राजनीतिक यथास्थिति बनी रहे.
हालांकि नेता ने प्रभावी रूप से अपना नेतृत्व खो दिया है. वह दूसरा छोर है, अगर हम नबाम रेबिया को पूरी तरह से खत्म कर देते हैं.  लेकिन अगर हम नबाम रेबिया का उपयोग करते हैं तो इसके गंभीर परिणाम भी होते हैं, क्योंकि तब यह मुक्त प्रवाह है.

Advertisement

उद्धव ठाकरे गुट की ओर से कपिल सिब्बल ने उस फैसले पर नए सिरे से विचार करने का आग्रह कोर्ट से किया था. क्योंकि ये फैसला विधायकों को एक सामान्य नोटिस भेजकर अध्यक्ष के खिलाफ आरोप लगाकर अपने खिलाफ कार्रवाई रोकने का हथियार मिल जाएगा. दूसरी ओर एकनाथ शिंदे गुट के वकील हरीश साल्वे और नीरज किशन कौल ने कहा कि इस मामले में फिर से विचार किए जाने की जरूरत ही नहीं है.  क्योंकि जब खुद स्पीकर या डिप्टी स्पीकर पर ही अयोग्यता की कार्यवाही की तलवार लटक रही है तो वो अन्य विधायकों के खिलाफ किस नैतिकता के साथ कार्रवाई करेंगे?  ये तो अब एकेडमिक मामला हो गया है.

Advertisement
Featured Video Of The Day
Delhi Air Pollution: Gas Chamber बनी दिल्ली, AQI पहुंचा 500 पार, बाकी राज्यों में कितना है प्रदूषण?
Topics mentioned in this article