- कांग्रेस नेता शशि थरूर ने आपातकाल को भारत के इतिहास का एक काला अध्याय बताया और इसके कड़े सबक समझने पर जोर दिया है.
- उन्होंने 1975 से 1977 के बीच इंदिरा गांधी के शासनकाल में लागू आपातकाल के दौरान हुई जबरन नसबंदी और हिंसा की निंदा की है.
- थरूर ने कहा कि आज का भारत 1975 के भारत से अलग है और लोकतंत्र अब अधिक विकसित, आत्मविश्वासी तथा मजबूत हो चुका है.
कांग्रेस नेता शशि थरूर ने फिर एक बार ऐसा बयान दिया है, जो उनकी पार्टी के नेताओं को अच्छा न लगे. थरूर ने आपातकाल की निंदा की है और इसे भारत के इतिहास का एक काला अध्याय बताया है. शशि थरूर ने कहा कि कैसे आजादी खत्म की जाती है, ये 1975 में सभी ने देखा. लेकिन आज का भारत 1975 का भारत नहीं है. यह पहली बार नहीं है, इससे पहले भी शशि थरूर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की तारीफ कर चुके हैं. ऑपरेशन सिंदूर के बाद अन्य देशों में भारत का पक्ष रखने के लिए जो सांसदों की टीम बनाई गई थी, उसमें कांग्रेस सांसद शशि थरूर भी शामिल थे. शशि थरूर ने विदेशी धरती पर मोदी सरकार का जमकर समर्थन किया था.
'भारत के इतिहास का सिर्फ एक काले अध्याय ही नहीं'
शशि थरूर ने कहा है कि आपातकाल को भारत के इतिहास के एक काले अध्याय के रूप में ही याद नहीं किया जाना चाहिए, बल्कि इसके सबक को पूरी तरह से समझा जाना चाहिए. गुरुवार को मलयालम दैनिक दीपिका में आपातकाल पर प्रकाशित एक लेख में थरूर ने 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 के बीच प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा घोषित आपातकाल के काले दौर को याद किया और कहा कि अनुशासन और व्यवस्था के लिए किए गए प्रयास अक्सर क्रूरता के ऐसे कृत्यों में बदल जाते थे, जिन्हें उचित नहीं ठहराया जा सकता.
'संजय गांधी ने जबरन नसबंदी अभियान चलाया'
तिरुवनंतपुरम के सांसद ने लिखा, "इंदिरा गांधी के बेटे संजय गांधी ने जबरन नसबंदी अभियान चलाया, जो इसका एक कुख्यात उदाहरण बन गया. गरीब ग्रामीण इलाकों में, मनमाने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हिंसा और ज़बरदस्ती का इस्तेमाल किया गया. नई दिल्ली जैसे शहरों में, झुग्गियों को बेरहमी से ध्वस्त और साफ़ किया गया. हज़ारों लोग बेघर हो गए. उनके कल्याण पर ध्यान नहीं दिया गया."
'आज का भारत 1975 का भारत नहीं'
शशि थरूर ने कहा कि लोकतंत्र को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए. यह एक अनमोल विरासत है, जिसे निरंतर पोषित और संरक्षित किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, 'इसे हर जगह के लोगों के लिए एक स्थायी प्रेरणा स्रोत के रूप में काम करने दें." उन्होंने कहा कि आज का भारत 1975 का भारत नहीं है. आज हम अधिक आत्मविश्वासी, अधिक विकसित और कई मायनों में अधिक मज़बूत लोकतंत्र हैं. फिर भी आपातकाल के सबक चिंताजनक तरीकों से प्रासंगिक बने हुए हैं.
'लोकतंत्र के रक्षकों को हमेशा सतर्क रहना चाहिए'
थरूर ने चेतावनी दी कि सत्ता को केंद्रीकृत करने असहमति को दबाने और संवैधानिक सुरक्षा उपायों को दरकिनार करने का लालच कई रूपों में सामने आ सकता है. उन्होंने कहा, "अक्सर ऐसी प्रवृत्तियों को राष्ट्रीय हित या स्थिरता के नाम पर उचित ठहराया जाता है. इस लिहाज से आपातकाल एक कड़ी चेतावनी है. लोकतंत्र के रक्षकों को हमेशा सतर्क रहना चाहिए."
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