सुप्रीम कोर्ट ने एयरपोर्ट्स द्वारा कार्गो और ग्राउंड हैंडलिंग शुल्क तय करने के खिलाफ हवाई अड्डा आर्थिक विनियामक प्राधिकरण (AERA) की याचिका पर सुनवाई करने का फैसला किया है. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि AERA की याचिका सुनवाई योग्य है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु एयरपोर्ट की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें AERA की याचिका को प्रारंभिक तौर पर खारिज करने की मांग की गई थी.
क्या है मामला
सुप्रीम कोर्ट ने गैर-वैमानिक सेवाओं के लिए शुल्कों को विनियमित करने के लिए हवाई अड्डा आर्थिक विनियामक प्राधिकरण (AERA) की शक्तियों पर अपना फैसला सुनाया है. यह फैसला यात्रियों द्वारा हवाई अड्डे की सुविधाओं और उसके बाद उड़ान के लिए भुगतान किए जाने वाले शुल्क को प्रभावित करेगा. यह मामला AERA के अधिकार क्षेत्र के इर्द-गिर्द घूमता है, जो सीधे उड़ान से संबंधित नहीं सेवाओं के लिए शुल्क पर है. जिसमें हवाई अड्डों पर पार्किंग, खुदरा और ग्राउंड हैंडलिंग संचालन शामिल हैं. इस फैसले का देशभर में यात्रियों और हवाई अड्डे के संचालकों दोनों पर व्यापक प्रभाव पड़ने की संभावना है, क्योंकि इससे विभिन्न हवाई अड्डे की सुविधाओं की लागत संरचना में बदलाव हो सकता है.
AERA एक्ट 2008 के तहत TDSAT के आदेशों के खिलाफ एयरपोर्ट आर्थिक विनियामक प्राधिकरण (AERA) द्वारा अपने समक्ष दायर अपील के सुनवाई योग्य होने के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने 24 सितंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था.
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच जिसमें जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल थे, दूरसंचार विवाद निपटान और अपीलीय ट्रिब्यूनल के फैसले को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इसमें कहा गया था कि AERA के पास स्पेसिफिक सिटी एयरपोर्ट हैंडलिंग कंपनियों (जैसे दिल्ली/मुंबई इंटरनेशनल एयरपोर्ट लिमिटेड) या उनके ठेकेदारों द्वारा संचालित ग्राउंड हैंडलिंग सर्विसेज (जीएचएस) और कार्गो हैंडलिंग सर्विसेज (सीएचएस) पर टैरिफ लगाने का अधिकार नहीं है .
ट्रिब्यूनल ने यह भी माना कि AERA अधिनियम 2008 के तहत जीएचएस और सीएचएस को 'गैर-वैमानिकी सेवाएं' माना जाना चाहिए और इस प्रकार वे एईआरए की टैरिफ लगाने की शक्तियों से परे हैं.
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