बिहार सरकार ने पदोन्नति में आरक्षण मामले में SC से जल्द सुनवाई की मांग की

बिहार सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील पीएस पटवालिया ने कोर्ट से कहा कि प्रोन्नति में आरक्षण नहीं होने के चलते बिहार सरकार के 17 से 18 हजार पद खाली हैं.

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बिहार में अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) को पदोन्नति में आरक्षण का मामले में सुप्रीम कोर्ट में बिहार सरकार ने याचिका पर जल्द सुनवाई की मांग की है. बिहार सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील पीएस पटवालिया ने कोर्ट से कहा कि प्रोन्नति में आरक्षण नहीं होने के चलते बिहार सरकार के 17 से 18 हजार पद खाली हैं. कोर्ट ने बिहार सरकार की अर्जी पर जल्द सुनवाई से इंकार किया है. कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सुनवाई जनवरी 2024 में की जाएगी.

दरअसल, बिहार में एससी-एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण देने का 21 अगस्त 2012 का प्रस्ताव और उसके बाद राज्य सरकार द्वारा जारी किया गया आदेश पटना हाईकोर्ट की सिंगल बेंच ने चार मई 2015 को रद्द कर दिया था. इसके बाद बिहार सरकार ने हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच में अपील की थी, जिसे 30 जुलाई 2015 को खारिज कर दिया गया था, जिसके बाद बिहार सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी.

बिहार सरकार के वकील पीएस पटवालिया ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि प्रोन्नति में आरक्षण नहीं होने के चलते बिहार सरकार के 17 से 18 हजार पद खाली पड़े हैं. अर्जी के मुताबिक- कुल 44 महकमों में 26 हजार पदों में से 21 हजार 275 पद खाली पड़े हैं, जिनको पदोन्नति में आरक्षण की नीति के तहत भरना है. इनमें 17109 सामान्य कोटे के हैं जबकि 3957 अनुसूचित जाति और 209 पद अनुसूचित जनजाति के लोगों से भरे जाने हैं. कोर्ट ने 15 अप्रैल 2019 को यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था. इस आदेश को भी करीब सवा चार साल हो गए हैं. 

सुप्रीम कोर्ट ने बिहार सरकार की अर्जी पर जल्द सुनवाई से  इंकार करते हुए कहा कि इस मामले में सुनवाई अगले साल यानी जनवरी 2024 में की जाएगी. दरअसल, बिहार में एससी- एसटी के अधिकारियों- कर्मचारियों को प्रोन्नति में आरक्षण देने के लिए 21 अगस्त 2012 का प्रस्ताव और उसके बाद राज्य सरकार द्वारा जारी किया गया आदेश पटना हाईकोर्ट की एकल जज पीठ ने चार मई 2015 को रद्द कर दिया था. इसके बाद बिहार सरकार ने हाई कोर्ट की खंडपीठ के समक्ष अपील की थी. खंडपीठ ने भी 30 जुलाई 2015 को सरकार की अर्जी खारिज कर दी थी. इसके बाद बिहार सरकार ने इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सुप्रीम कोर्ट ने 15 अप्रैल 2019 को इस मामले में यथास्थिति बनाए रखने जा आदेश दिया था.

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