त्योहारों में लेजर बीम और लाउडस्पीकर के लिए नियम बनाने के निर्देश वाली याचिका SC ने सुनने से किया इनकार

CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदी वाला और जस्टिस मनोज कुमार मिश्र की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि लेजर बीम लाइट के इस्तेमाल को नियमित करने वाला कोई कानून नहीं है. CJI ने कहा कि हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को संबंधित अधिकारियों के समक्ष अपना पक्ष रखने की अनुमति दी है तो आप वहीं जाएं.

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नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को त्योहारों के दौरान  सार्वजनिक स्थानों, समारोहों में लेजर बीम और लाउडस्पीकरों के उपयोग पर नियम बनाने का निर्देश  जारी किए जाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई  से इनकार कर दिया. याचिकाकर्ता ने बॉम्बे हाई कोर्ट के 20 अप्रैल के आदेश को चुनौती देते हुए ये याचिका सुप्रीम कोर्ट में दायर की थी.

CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदी वाला और जस्टिस मनोज कुमार मिश्र की पीठ के समक्ष याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि लेजर बीम लाइट के इस्तेमाल को नियमित करने वाला कोई कानून नहीं है. CJI ने कहा कि हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता को संबंधित अधिकारियों के समक्ष अपना पक्ष रखने की अनुमति दी है तो आप वहीं जाएं.

अपने आदेश में, पीठ ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता भारतीय न्याय संहिता, 2023 में किसी भी प्रासंगिक प्रावधान के तहत   पुलिस को सूचित कर सकता है. यदि तथ्य उचित हों तो वो सक्षम सरकारी विभाग या अधिकारी के पास शिकायत भी दर्ज करा सकता है.

याचिकाकर्ता के लिए यह खुला होगा कि वह पुलिस अधिकारियों के ध्यान में भारतीय न्याय संहिता, 2023 की धारा 125 या किसी अन्य प्रासंगिक प्रावधान की जानकारी दे. ध्वनि प्रदूषण के संबंध में, अदालत ने पाया कि याचिकाकर्ता ने पिछले दो वर्षों से ध्वनि प्रदूषण की शिकायतों और ऐसी शिकायतों पर की गई कार्रवाई पर रिपोर्ट और डेटा के लिए राहत मांगी है.

इसने कहा कि ऐसी प्रार्थनाएं और लगातार चलती अंतहीन जांच का कोई नतीजा नहीं निकलता. कोर्ट ने कहा कि पहले तो याचिकाकर्ता को स्वतंत्र रूप से प्रथम दृष्टया मामला स्थापित करना जरूरी है. ⁠वह इस न्यायालय से रिकॉर्ड तलब करने का आदेश देने का आग्रह नहीं कर सकता है. दरअसल बॉम्बे हाईकोर्ट ने  आदेश में धार्मिक जुलूसों और अन्य समारोहों के दौरान लेजर बीम और तेज ध्वनि  के इस्तेमाल के खिलाफ जनहित याचिका का निपटारा करते हुए  कोई ठोस निर्देश देने से इनकार कर दिया था. ⁠कोर्ट का कहना था कि पीड़ित व्यक्ति अधिकारियों के समक्ष इस बाबत शिकायत दर्ज करा सकते हैं.
 

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