सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने पांच जजों की पीठ द्वारा अयोध्या (Ayodhya) पर 9 नवंबर 2019 के फैसले में कुछ संदर्भ और शब्दों को हटाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई से इनकार किया है. इस मामले को लेकर CJI जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने स्पष्ट किया है कि सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ के इस फैसले में कुछ भी ऐसा नहीं लिखा गया है, जो याचिकाकर्ता के अधिकारों को प्रभावित करे.
सिख राष्ट्र संगठन ने फैसले के कुछ अंश पर जताई आपत्ति
दरअसल, सिख राष्ट्र संगठन के अध्यक्ष डॉ. मंजीत सिंह रंधावा की अध्यक्षता में अयोध्या मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के 9 नवंबर 2019 को दिए गए फैसले के कुछ अंश पर आपत्ति जताई गई थी. इसको लेकर याचिकाकर्ता की दलील थी कि फैसले में सिख धर्म का जिक्र करते समय पीठ ने "पंथ" शब्द लिखा है. इसे हटा कर धर्म किए जाने की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी.
डॉ. रंधावा ने अयोध्या मामले के फैसले में सिख धर्म को लेकर उल्लिखित तथ्यों को विकृत बताते हुए उन्हें फैसले से हटाने की भी मांग की थी. उनका दावा था कि याचिका में उन्होंने विभिन्न सिख विद्वानों के अलावा ऑक्सफोर्ड, कैम्ब्रिज, लॉन्गमैन, कॉलिन्स सहित प्रमुख शब्दकोशों से परामर्श करने के बाद तथ्य उल्लिखित किए गए थे. उन्होंने कहा था कि मैंने पाया कि 'पंथ' शब्द का इस्तेमाल अपमानजनक और मानहानिकारक अर्थों में किया गया था. इसलिए हम चाहते हैं कि इस शब्द को फैसले से हटा दिया जाए, क्योंकि इससे वैश्विक स्तर पर सिखों की साख और छवि को गंभीर नुकसान होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा - फैसले में अपमानजनक कुछ भी नहीं
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की पीठ के फैसले में ऐतिहासिक संदर्भ में एक जगह गुरु नानक साहिब की अयोध्या यात्रा और रामलला के दर्शन का जिक्र भी है. उसका हवाला देते हुए हिंदुओं के पक्ष में फैसला सुनाया गया था. हालांकि, कोर्ट ने याचिका के बारे में साफ कहा है कि फैसले में अपमानजनक कुछ भी नहीं है. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा है कि इससे किसी की मानहानि नहीं होती है.