राजनीतिक दलों द्वारा 'फ्रीबी' देने को लेकर सुप्रीम कोर्ट और सख्त, विशेषज्ञ पैनल बनाने की सिफारिश

CJI एन वी रमना ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है. मुफ्त उपहारों का एक पहलू यह है कि ये गरीबों और दलितों के कल्याण के लिए आवश्यक हैं. लेकिन आर्थिक पहलू पर भी ध्यान देने की जरूरत है.

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अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 अगस्त को होगी.
नई दिल्ली:

चुनावों के दौरान राजनीतिक पार्टियों द्वारा ‘ फ्री बी' देने के मामले में सुप्रीम कोर्ट और सख्त हुआ है और कोर्ट ने इससे निपटने के लिए एक विशेषज्ञ निकाय बनाने की वकालत की है. कोर्ट ने कहा, इसमें केंद्र, विपक्षी राजनीतिक दल, चुनाव आयोग, नीति आयोग, RBI  और अन्य हितधारकों को शामिल किया जाए. निकाय में फ्री बी पाने वाले और इसका विरोध करने वाले भी शामिल हों.  सुप्रीम कोर्ट ने कहा ये मुद्दा सीधे देश की इकोनॉमी पर असर डालता है. सुप्रीम कोर्ट ने एक हफ्ते के भीतर ऐसे विशेषज्ञ निकाय के लिए प्रपोजल मांगा है. अब इस मामले की अगली सुनवाई 11 अगस्त को होगी.

इस दौरान CJI एन वी रमना ने कहा कि यह एक गंभीर मुद्दा है. मुफ्त उपहारों का एक पहलू यह है कि ये गरीबों और दलितों के कल्याण के लिए आवश्यक हैं लेकिन आर्थिक पहलू पर भी ध्यान देने की जरूरत है. वहीं कपिल सिब्बल ने कहा, चुनाव आयोग को दूर रखें. यह एक आर्थिक मुद्दा है. इसे राजनीतिक मुद्दा न बनाएं. वित्त आयोग सुझाव दे सकता है.

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CJI ने कहा कि आपको लगता है कि संसद इस पर बहस करेगी?  कोई भी राजनीतिक दल इस पर चर्चा करने के लिए सहमत होगा. सभी दल मुफ्त चाहते हैं. लेकिन अंतत: करदाता की सोच महत्वपूर्ण है. वे चाहते हैं कि धन का उपयोग विकास के लिए किया जाए न कि केवल राजनीतिक दलों द्वारा उपयोग किया जाए. सभी को एक स्वतंत्र मंच पर बहस में भाग लेने दें.  सत्तारूढ़ दल, विपक्ष आदि सहित सभी हितधारकों को इस पर बहस करने दें. उन्हें सभी वर्गों के साथ बातचीत करने दें . मुफ्त के लाभार्थियों के साथ-साथ इसका विरोध करने वाले भी शामिल हों. 

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याचिकाकर्ता की ओर से वकील विकास सिंह ने कहा कि राजनीतिक दलों को फ्रीबीज  के लिए पैसा कहां से मिलता है .SG तुषार मेहता ने सुझाव दिया कि चुनाव आयोग को एक बार समीक्षा करने दिया जाए.  सोमवार को मामले पर सुनवाई की जाए. ये देश राज्य और जनता पर बोझ बढ़ाता है. 

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सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि सैद्धांतिक रूप से तो सरकार भी इस दलील से सहमत है.
इससे वोटर की अपनी राय डगमगाती है.  ऐसी प्रवृत्ति से हम आर्थिक विनाश की ओर बढ़ रहे हैं. CJI ने कहा, हमें दबे-कुचले लोगों के बारे में सोचना होगा.

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वकील विकास सिंह ने कहा कि चुनाव आयोग द्वारा घोषणा पत्र का एक आदर्श कोड है, लेकिन कोई भी इसका पालन नहीं करता है. CJI कहा कि इस घोषणापत्र का कभी भी पालन नहीं किया गया.  आदर्श आचार संहिता बिल्कुल भी काम नहीं करती है. मेरे अनुभव से यह काम नहीं करता. चार साल कुछ नहीं होता.  चुनाव से पहले आदर्श चुनाव संहिता लगा दी जाती है. 

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