वैक्सीन लगाने के लिए लोगों को विवश करने पर रोक की याचिका पर SC का केंद्र को नोटिस

शीर्ष अदालत ने कहा कि वैक्सीन की अनिवार्यता पर अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट समेत कई विदेशी अदालतों के आदेश हैं. आप इस तरह पब्लिक हेल्थ के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकते. 100 साल में हमने ऐसी महामारी नहीं देखी.

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(प्रतीकात्मक तस्वीर)
नई दिल्ली:

लोगों को वैक्सीन लगाने (Vaccination) के लिए विवश करने और ट्रायल डेटा सार्वजनिक करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने केंद्र सरकार को सोमवार को नोटिस जारी किया. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने वैक्सीन लगाने के लिए विवश करने पर अंतरिम रोक लगाने से इनकार किया. शीर्ष न्यायालय ने कहा कि वैक्सीन के लिए विवश करने के मामले में फिलहाल आदेश जारी नहीं कर सकते. अदालत को दूसरे पक्ष की बात सुननी होगी. याचिकाकर्ता का कहना था कि कई सेवाओं में वैक्सीन को अनिवार्य बनाया गया है. इसे बंद किया जाए. क्योंकि वैक्सीन लगवाना अनिवार्य नहीं स्वैच्छिक है

जस्टिस एल नागेश्वर रॉव ने सुनवाई करते हुए कहा कि देश में 50 करोड़ लोगों को वैक्सीन लगाई जा चुकी है. आप क्या चाहते हैं कि वैक्सीनेशन कार्यक्रम को बंद कर दिया जाए. देश में पहले ही वैक्सीन हेसिसटेंसी चल रही है. WHO ने भी कहा है कि वैक्सीन हेसिसटेंसी ने बहुत नुकसान किया है. क्या आपको लगता है कि यह बड़े जनहित में है. जब तक हम नहीं पाते कि निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा कुछ गंभीर रूप से गलत किया गया है. हम वैक्सीन हैसिसटेंसी से लड़ रहे हैं तो ऐसी याचिकाएं लोगों के मन में संदेह पैदा नहीं कर रही हैं. हमें कुछ आशंका है कि एक बार जब हम इस याचिका पर विचार करते हैं तो यह संकेत नहीं देना चाहिए कि हम वैक्सीन हिचकिचाहट को बढ़ावा दे रहे हैं. 

शीर्ष अदालत ने कहा कि वैक्सीन की अनिवार्यता पर अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट समेत कई विदेशी अदालतों के आदेश हैं. आप इस तरह पब्लिक हेल्थ के साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकते. 100 साल में हमने ऐसी महामारी नहीं देखी, इसलिए इमरजेंसी में वैक्सीन को लेकर संतुलन बनाना जरूरी है.

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याचिकाकर्ता की ओर से प्रशांत भूषण ने कहा, "सीरो रिपोर्ट के मुताबिक 2/3 लोग कोविड संक्रमित हो चुके हैं. ऐसे में कोरोना की वैक्सीन से एंटीबॉडी ज्यादा कारगर है. अब पॉलिसी बनाई गई हैं कि वैक्सीन नहीं लगाई गई तो यात्रा नहीं कर सकते. कई प्रतिबंध लगाए गए हैं. सरकार क्लीनिकल डेटा को सार्वजनिक नहीं कर रही है. चूंकि वैक्सीन स्वैच्छिक है तो अगर कोई वैक्सीन नहीं लगवाता है तो उसे किसी सुविधा से वंचित नहीं किया जाए. 

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सुप्रीम कोर्ट में टीकाकरण के राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार ग्रुप के पूर्व मेंबर जैकब पुलियेल की ओर से अर्जी दाखिल की गई है. याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने अर्जी दाखिल कर कहा है कि वैक्सीनेशन के क्लिनिकल ट्रायल के साथ-साथ वैक्सीन के विपरीत प्रभाव के बारे में डेटा सार्वजनिक किया जाए क्योंकि वैक्सीन की इमरजेंसी इस्तेमाल की इजाजत दी गई है. 

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याचिका में टीकाकरण के विपरीत प्रभाव के बारे में डिटेल पब्लिक करने के लिए केंद्र सरकार को निर्देश देने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि केंद्र को निर्देश दिया जाए कि जिन लोगों ने कोरोना से बचाव के लिए टीका लिया है उनमें कितने लोग संक्रमित हुए हैं, इनमें कितने लोगों को अस्पताल में भर्ती करना पड़ा और टीकाकरण के कारण कितनों की मौत हुई, इसकी जानकारी सार्वजनिक की जाए. 

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याचिकाकर्ता ने कहा कि जो भी प्रतिकूल प्रभाव का डाटा है उसे टोल फ्री नंबर पर लोगों को बताया जाए. साथ ही ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए कि अगर कोई टीकाकरण करवा रहा है और प्रतिकूल प्रभाव हुआ है तो वह इस बारे में शिकायत कर सके . सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में वैक्सीन के इस्तेमाल को जिस तरह से मंजूरी दी गई है उस पर सवाल किया गया और कहा गया कि वैक्सीन लेने वालों की निगरानी होनी चाहिए. इस तरह की निगरानी से दुनियां के कई देशों में वैक्सीन लेने वालों पर हुए विपरीत प्रभाव जैसे खून का जमना आदि को कंट्रोल करने में हेल्प हुई है. डेनमार्क में एस्ट्राजेनेका वैक्सीन के इस्तेमाल पर रोक है.  कई देशों में वैक्सीन देना बंद किया गया है और वह उसका आंकलन कर रहे हैं.

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