जांच एजेंसियों की चार्जशीट सार्वजनिक प्लेटफार्म पर अपलोड करने की मांग वाली याचिका SC में खारिज

आरटीआई कार्यकर्ता व पत्रकार सौरव दास ने ये याचिका दायर की थी. दाखिले की सुनवाई के दौरान जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने इस विचार के बारे में कुछ आपत्तियां जताईं.

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नई दिल्ली:

पुलिस, CBI और ED जैसी जांच एजेंसियों की चार्जशीट सार्वजनिक प्लेटफार्म पर अपलोड करने की मांग वाली याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस और जांच एजेंसियों जैसे CBI और ED आदि को आम जनता की आसान पहुंच के लिए सार्वजनिक मंच पर चार्जशीट अपलोड करने का निर्देश नहीं दिया जा सकता. चार्जशीट कोई पब्लिक डाक्यूमेंट नहीं है. चार्जशीट अपलोड करने का निर्देश सीआरपीसी यानी दंड प्रक्रिया संहिता की योजना के विपरीत होगा. इससे आरोपियों के साथ-साथ पीड़ित, या यहां तक कि जांच एजेंसी के अधिकारों का भी उल्लंघन हो सकता है. 

दुरुपयोग की सम्भावना

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि FIR अपलोड करने के फैसले को चार्जशीट तक नहीं बढ़ाया जा सकता है. जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने यह कहते हुए आरटीआई कार्यकर्ता और पत्रकार सौरव दास की याचिका खारिज कर दी.  9 जनवरी को SC ने याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रखा था. हालांकि, कोर्ट ने याचिका पर सवाल उठाते हुए कहा था कि अगर केस से जुड़े लोगों के अलावा दूसरों को चार्जशीट मिलती है तो उसके दुरुपयोग की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता. 

ECIR किसी FIR के समान नहीं

आरटीआई कार्यकर्ता व पत्रकार सौरव दास ने ये याचिका दायर की थी. दाखिले की सुनवाई के दौरान जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने इस विचार के बारे में कुछ आपत्तियां व्यक्त कीं थी. बेंच ने टिप्पणी की कि अगर चार्जशीट जनता के लिए उपलब्ध कराई जाती है, तो उनका दुरुपयोग होने की संभावना है. जस्टिस शाह ने कहा कि अगर मामले से असंबद्ध लोगों को एफआईआर दी जाती है, तो इसका दुरुपयोग हो सकता है. जस्टिस सीटी रविकुमार ने कहा था कि PMLA मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहा गया था कि ECIR किसी FIR के समान नहीं है और इसलिए अभियुक्त इसकी कॉपी का हकदार नहीं है. ऐसे में क्या ईडी को सार्वजनिक रूप से चार्जशीट अपलोड करने का निर्देश जारी किया जा सकता है ? 

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हर किसी को नहीं दी जा सकती

जस्टिस शाह ने कहा था कि चार्जशीट हर किसी को नहीं दी जा सकती है. याचिकाकर्ता की ओर से, एडवोकेट प्रशांत भूषण ने यूथ बार एसोसिएशन ऑफ इंडिया में 2016 के एक फैसले पर भरोसा किया, जिसमें अदालत ने पुलिस या राज्य सरकार की वेबसाइट पर 24 घंटे के भीतर पहली सूचना रिपोर्ट को प्रकाशित करने का निर्देश दिया था, जब तक कि अपराध प्रकृति में संवेदनशील न हों.

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