RSS से संबद्ध ट्रेड यूनियन और वामपंथी समूह की केंद्र की मॉनेटाइजेशन योजना पर तीखी प्रतिक्रिया

नेशनल मॉनेटाइजेशन पाइपलाइन : बीएमएस ने इसको पारिवार के गहने बेचने जैसा बताया, सीटू ने इस कदम को विनाशकारी बताया

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केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण (फाइल फोटो).
नई दिल्ली:

केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन (National Monetisation Pipeline) योजना की घोषणा करने के एक दिन बाद आरएसएस से जुड़े भारतीय मजदूर संघ (BMS) और भारतीय ट्रेड यूनियनों के वाम समर्थित ग्रुप (CITU) ने आज केंद्र की 6 लाख करोड़ रुपये की इस योजना के खिलाफ जोरदार आवाज उठाई. अलग-अलग विचारधारा वाले दो ट्रेड यूनियनों ने आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की योजना पर अपना विरोध व्यक्त करते हुए कहा कि यह देश और श्रमिकों के हितों के खिलाफ है.

नीति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कल एक मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि मुद्रीकरण योजना के तहत रेल, सड़क और बिजली क्षेत्रों में छह लाख करोड़ रुपये की राष्ट्रीय अवसंरचना संपत्ति का मुद्रीकरण चार वर्षों में किया जाएगा. सीतारमण ने कहा है कि यह ब्राउनफील्ड परिसंपत्तियों से संबंधित है, जहां निवेश पहले से ही किया जा रहा है. यह संपत्तियां या तो खराब हो रही हैं या पूरी तरह से मुद्रीकृत न होने से इनका कम उपयोग किया गया है.

बीएमएस के महासचिव बिनय कुमार सिन्हा ने इस कदम पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, "यह पारिवारिक आभूषण बेचने जैसा है." बीएमएस उस राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की ट्रेड यूनियन विंग है, जो सत्तारूढ़ भाजपा की वैचारिक मातृ संस्था है.

वैचारिक स्तर पर दूसरे छोर पर रहने वाली संस्था सीटू के महासचिव तपन सेन ने कहा कि "सरकारी संपत्ति बेचने" का निर्णय एक "बहुत विनाशकारी निर्णय" है. सेन ने कहा, "यह एक मजदूर विरोधी फैसला है. उनके अधिकार और कमजोर होंगे... यह देश के पक्ष में नहीं है और सरकारी कर्मचारियों के खिलाफ है."

उधर सरकार ने इन आरोपों को बेबुनियाद करार दिया है. सरकार की दलील है कि कोरोना के दौर में कमज़ोर पड़ी अर्थव्यवस्था में निवेश बढ़ाने के लिए खाली पड़ी संपत्ति सीमित समय के लिए PPP के ज़रिए निजी क्षेत्र को सौपने का फैसला देश हित में है. सरकार की योजना में दो राष्ट्रीय स्टेडियम शामिल हैं.

सरकार का मानना है कि नेशनल स्टेडियम जैसे एसेट्स तैयार करने में करोड़ों रुपये खर्च होते हैं लेकिन इनका बहुत ही सीमित इस्तेमाल हो पता है. नेशनल स्टेडियम के मॉनेटाइजेशन से अतिरिक्त वित्तीय संसाधन जुटाना संभव हो सकेगा.  

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निर्मला सीतारमण ने कल इस बात पर जोर दिया था कि राष्ट्रीय मुद्रीकरण पाइपलाइन में "जमीनों को बेचना" शामिल नहीं होगा. यह ब्राउनफ़ील्ड परिसंपत्तियों के बारे में है "जिन्हें बेहतर मुद्रीकृत करने की आवश्यकता है." इनका स्वामित्व केंद्र के पास रहेगा.

निजी प्रतिभागियों को पूर्व निर्धारित अवधि के बाद सरकार को संपत्ति वापस करनी होगी. मुद्रीकरण एक्सरसाइज के माध्यम से प्राप्त धन को योजना के अनुसार बुनियादी ढांचे के निर्माण में लगाया जाएगा.

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नीति आयोग के वाइस चेयरमेन राजीव कुमार ने NDTV से कहा कि ''नेशनल मॉनेटाइजेशन पाइपलाइन के जरिए हमें उम्मीद है कि बड़ी संख्या में भारतीय और अंतरराष्ट्रीय निवेशक भारत में निवेश करने के लिए आएंगे. कल ही कई देशों के जो (उनके) पेंशन फंड्स हैं और सॉवरेन वेल्थ फंड हैं, उन्होंने इंटरेस्ट जाहिर किया है ... इन्हें लॉन्ग टर्म एसेट्स में इनवेस्ट करने में दिलचस्पी होती है, जिसमें लंबे समय तक रिटर्न मिलता है.'' 

अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में जुटीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण

ट्रेड यूनियनों की ओर से किए जा रहे विरोध को लेकर उन्होंने कहा कि, ''ट्रेड यूनियन ने जो सवाल उठाए हैं, वह बेबुनियाद हैं. हम सरकारी संपत्ति की ऑनरशिप नहीं बदल रहे हैं. सरकारी संपत्ति पर सरकार का स्वामित्व बना रहेगा. सरकारी संपत्ति के बेहतर इस्तेमाल से वित्तीय संसाधन मिलेंगे जिनका इंफ्रास्ट्रक्चर में निवेश होगा जो राष्ट्र हित में होगा.

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