ओ डाकिया बाबू, रजिस्‍ट्री आई क्‍या? 148 साल के किस्‍सों-यादों के साथ हो रही इस डाक सेवा की विदाई

Registered Post Nostalgia Story: हर छोटी बड़ी खुशखबरी अक्सर डाकिये की थैली में रजिस्ट्री की शक्ल में आती थी. खासकर सेना में बहाली की पहचान ही इसी रजिस्ट्री से जुड़ी थी. युवाओं को महीनों तक अपने पते पर इसी एक 'रजिस्ट्री' का बेसब्री से इंतजार रहता था.

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  • डाक विभाग ने 148 वर्ष पुरानी रजिस्ट्री सेवा 1 सितंबर से बंद कर स्पीड पोस्ट में विलय करने का निर्णय लिया है.
  • रजिस्ट्री सेवा दस्तावेजों की सुरक्षित डिलीवरी और कानूनी प्रमाण के रूप में कई दशकों तक महत्वपूर्ण रही है.
  • सेना, सरकारी भर्ती बोर्ड, बैंक जैसे संस्थान भर्ती पत्र, आदेश और नोटिस भेजने के लिए रजिस्ट्री का उपयोग करते थे_
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अच्‍छा सुनिए जरा! रेलगाड़ी की छुकछुक, स्‍कूल की छुट्टी वाली घंटी और डाकिये की साइकिल की टिन-टिन, इन आवाजों का अपना अलग ही रोमांच रहा है न! मोबाइल का दौर आने से पहले गांव-मुहल्‍ले में डाकिये का बेसब्री से इंतजार किया जाता रहा. खासतौर पर रजिस्‍टर्ड डाक का, जिसे आम तौर पर 'रजिस्‍ट्री' कहा जाता है. आज भले ही डाक विभाग ने 148 साल से ली आ रही 'रजिस्‍ट्री' सर्विस बंद करने का ऐलान कर दिया है और ये जल्‍द ही इतिहास बन जाएगी लेकिन उन दिनों रजिस्‍ट्री आने का मतलब ही होता था कि कोई महत्‍वपूर्ण चिट्ठी आई है. शायद कोई बड़ी खुशखबरी! 

NDTV से बातचीत के दौरान उन्‍हीं दिनों को याद करते हुए विभांशु सिंह कहते हैं, साल 1998 में यही रजिस्‍ट्री उनके घर-परिवार के लिए खुशखबरी लेकर आई. वो कोई मामूली रजिस्‍ट्री नहीं थी, भारतीय सेना का जॉइनिंग लेटर था. करगिल युद्ध लड़ चुके और बारामूला, पूंछ, उरी सेक्‍टर में पोस्‍टेड रहे विभांशु 2015 में नायक सूबेदार के पद से रिटायर हो चुके हैं और वर्तमान में आरपीएफ यानी रेलवे सुरक्षा बल में सेवा दे रहे हैं.

वे याद करते हैं कि उन दिनों रजिस्‍ट्री का कितना महत्‍व हुआ करता था. गांव में ग्रुप में लड़के सेना बहाली की तैयारी करते थे, रजिस्‍ट्री से ही आवेदन पोस्‍ट करते थे, शायद 22 रुपये का टिकट लगता था. अंदर एक जवाबी लिफाफा या पोस्‍टकार्ड भेजा करते थे, ताकि सेना हेडक्‍वार्टर से एक्‍नॉलेज/प्रूफ वापसी में आ जाए. 

उन्‍हीं के गांव मदरौनी से कंचन सिंह, सुजीत सिंह, कुमार समदर्शी के पास भी ऐसी ही कुछ यादें हैं. उन्‍हें भी जानकर 'कुछ अलग-सा, अजीब-सा' लगा कि भारतीय डाक की ये सेवा अब बंद हो रही है और इसका विलय स्‍पीड पोस्‍ट में किया जा रहा है. रौशन सिंह कहते हैं, स्‍पीड पोस्‍ट हालांकि समय रहते ही आ गया इसकी भरपाई करने, लेकिन 'रजिस्‍ट्री' की जगह ले पाना मुश्किल है. उसके साथ जो भावनाएं जुड़ी हैं, वे अनमोल हैं.   

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रजिस्‍ट्री: डाकिये की थैली में बड़ी खुशखबरी 

आने वाले 1 सितंबर 2025 के बाद, भारतीय डाक की रजिस्ट्री सेवा इतिहास का हिस्सा बन जाएगी. रिटायर्ड डाक अधीक्षक एसकेपी सिन्‍हा कहते हैं कि इस भरोसेमंद सेवा की बात ही कुछ और रही है. उनके दौर में ये कभी किसी की नौकरी की खुशखबरी लाती थी, कभी कोर्ट समन या लीगल नोटिस की चिंता भी. किस्से, यादें, डर, मोह... रजिस्ट्री के साथ काफी कुछ जुड़ा रहा है. NDTV से बातचीत में वो कहते हैं, 'अभी हम और आप वॉट्सएप कॉल पर जुड़े हैं, मोबाइल और इंटरनेट का युग है, लेकिन 20-25 साल पहले का दौर याद करें, जब इंटरनेट शहरों में भी बमुश्किल ही पहुंच रहा था.' 

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आगे वो कहते हैं, 'उस दौर में भारतीय सेना, यूपीएससी, एसएससी या अन्‍य सरकारी भर्ती बोर्ड, विश्वविद्यालय, बैंक, बीमा एजेंसी... और ऐसी ही तमाम संस्‍थाएं रजिस्‍टर्ड डाक का ही तो इस्‍तेमाल किया करती थीं. किसी परीक्षा का एडमिट कार्ड, कोई नियुक्ति पत्र, ट्रांसफर आदेश, प्रमोशन की चिठ्ठी या किसी तरह की नोटिस... सबकुछ रजिस्‍टर्ड डाक से ही भेजे जाते थे. 

सिन्‍हा कहते हैं, 'हर छोटी बड़ी खुशखबरी अक्सर डाकिये की थैली में रजिस्ट्री की शक्ल में आती थी. खासकर सेना में बहाली की पहचान ही इसी रजिस्ट्री से जुड़ी थी. बहाली में शामिल होने वाले युवाओं को महीनों तक अपने पते पर आने वाली इसी एक 'रजिस्ट्री' का बेसब्री से इंतजार रहता था. वो सधी हुई रसीद, डॉक्यूमेंट का पक्‍का सबूत और नौकरी का प्रमाण. लोग सचमुच मानते थे कि 'जब तक रजिस्ट्री नहीं आयी, सिलेक्शन केवल एक अफवाह है.' रजिस्‍ट्री पहुंचाने वाले डाकिये को कहीं मिठाई नसीब होता तो कहीं मिठाई के लिए कुछ पैसे. और इसे 'अवैध' भी नहीं माना जाता था, बल्कि 'खुशवक्‍ती' या 'बख्‍शीश' बताया जाता था. 

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डर की तीसरी घंटी भी थी रजिस्‍ट्री 

रजिस्ट्री, खुशखबरियों का जितना वाहक रही, कई बार 'डर की घंटी' बजाते हुए भी आती रही. करीब 35 वर्ष तक कानपुर में वकालत कर चुके एडवोकेट योगेंद्र मिश्र, जो इन दिनों प्रैक्टिस छोड़ दिल्‍ली में बेटे के साथ रह रहे हैं, वो बताते हैं कि मिडिल क्लास परिवारों में लोग किसी से डरें, न डरें, 'रजिस्ट्री' के कवर से खौफ भी खाते थे. खासतौर पर जिनके घर कोई कानूनी झगड़ा-झंझट चला आ रहा हो.

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जैसे किसी के नाम कोर्ट का समन, बैंक का ओवरड्यू नोटिस, लीगल नोटिस या टैक्स की तल्ख यादहानी… सब कुछ रजिस्टर्ड पोस्ट से ही आता था. ये सब इतने 'ऑथराइज्ड फील' के साथ हुआ करता था कि डाकिया भी उसके बारे में कुछ बोलने से बचता.' ऐसे में रजिस्ट्री में बंद सुर्ख या सादी चिट्ठी घर का माहौल ही बदल देती थी.  

डाकिये से कॉमन सवाल- 'रजिस्ट्री आई क्या?' 

साल 2000 के पहले तक रजिस्‍ट्री का गोल्‍डन पीरियड रहा. गांव के टोले से लेकर शहर के किसी मोहल्‍ले तक... डाकिये से एक कॉमन सवाल किया जाता रहा- 'अरे ओ डाकिया बाबू! कोई रजिस्‍ट्री आई क्‍या? बुजुर्ग घर के बच्चों को समझाते थे, 'अरे लाओ इधर, वैसे मत करो, फट जाएगा, गिर जाएगा.... ऐसे, जैसे रजिस्‍ट्री नहीं, कोई हीरा-मोती जैसी चीज हो! 

आप अपने घर-परिवार के ही किसी बुजुर्ग से बात करके देखिए न, वे बताएंगे कि रजिस्‍ट्री कैसे कभी किसी के कामयाबी का सबूत हुआ करता था, तो कभी कोर्ट-कचहरी का डर.

जैसे कि मेरे एक चाचा (प्रो नागेंद्र भगत) ने मुझे बताया कि सालों तक कोई सरकारी-वित्तीय विवाद में 'रजिस्ट्री' की रसीद ही सबसे बड़ा हथियार हुआ करती थी. उन्‍होंने बताया कि सरकारी विभाग, बैंक, कोर्ट... हर जगह रजिस्ट्री ही 'डिफॉल्ट प्रूफ' बन जाती थी. कोर्ट में सामान्‍य डाक या बड़े से बड़े कूरियर सर्विस की कोई वैल्‍यू नहीं, जबकि रजिस्‍ट्री की रसीद को कानूनी प्रमाण का दर्जा प्राप्‍त है. 

रजिस्ट्री के कई सारे किस्से, हर किसी के घर-परिवार में रहे हैं. अपने घर में बड़े-बुजुर्गों से चर्चा छेड़ने भर की देर है, बीसेक (20) किस्‍से तो सुना ही देंगे. आज ही ऐसा कर के देखिए न! पिताजी की नौकरी का ज्‍वाइनिंग लेटर, चाचा का प्रमोशन लेटर आया, कोई एडमिट कार्ड, बुआ जी का बीमा क्लेम... कोई न कोई किस्‍सा जरूर सामने होगा.  

क्‍यों हमेशा से खास रही रजिस्‍ट्री सर्विस?

भारतीय डाक विभाग की शुरुआत 1854 में हुई, जब ब्रिटिश शासन ने डाक सेवाओं का केंद्रीकरण किया था और भारत में पहली बार डाक टिकट जारी किया गया. इसके दो दशक से भी ज्‍यादा समय बाद 1877 में रजिस्ट्री पोस्ट सेवा (Registered Post) की शुरुआत हुई, वीपीपी (Value Payable Post) और पार्सल सेवा के साथ. रजिस्‍ट्री एक विशेष सेवा रही है, जो डॉक्यूमेंट की सुरक्षित डिलीवरी, ट्रैकिंग और प्रूफ ऑफ डिलीवरी के लिए शुरू हुई. रजिस्‍ट्री यानी खत पहुंचने की पक्‍की गारंटी.  

  • भेजने वाले को रसीद, यानी 'मैंने भेजा है- ये रहा प्रमाण' वाला अधिकार.  
  • प्राप्त करने वाले के दस्तखत पर ही डाकघर डिलीवरी करता, जिससे कानूनी मान्यता हासिल होती.
  • भेजी गई चिट्ठी/पार्सल सरकार, कोर्ट, बैंक, बीमा, यूनिवर्सिटी, हर जगह वैध सबूत की तरह पेश की जा सकती थी.
  • डिग्री, पॉलिसी, बैंक चेक जैसे जरूरी डॉक्‍युमेंट 'रजिस्‍ट्री' से ही भेजने का रिवाज रहा.  
  • शिकायत की सुविधा भी- गुम होने या देरी होने की स्थिति में जवाबदेही.

अब 'रजिस्ट्री' की विदाई बेला 

148 साल पुरानी सेवा 'रजिस्‍ट्री' के अब आखिरी दिन चल रहे हैं. भारतीय डाक विभाग ने अब फैसला लिया है कि 1 सितंबर से रजिस्टर्ड पोस्ट सेवा को अब स्पीड पोस्ट के साथ मर्ज कर दिया जाएगा. यानी स्‍टैंडअलोन सर्विस के तौर पर रजिस्‍ट्री सेवा अस्तित्‍व में नहीं रहेगी. 'रजिस्टर्ड पोस्ट' शब्द को भी अब सरकारी, न्यायिक, वित्तीय, शैक्षणिक सभी दस्तावेजों, प्रोसेस और रिकॉर्ड्स से हटाया जाएगा, यानी अब लिफाफों पर 'रजिस्टर्ड पोस्ट' नहीं दिखाई देगा. डाक विभाग का दावा है कि इस फैसले के बाद पोस्ट सर्विस तेज और आधुनिक बनेगी. 

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दिन-ब-दिन बदलती टेक्‍नोलॉजी के दौर में रजिस्‍ट्री की विदाई हो रही है. 'रजिस्ट्री की रसीद' अब किताबों और फाइलों में यादों और मुस्कराहट के साथ सहेज ली जाएगी. आइए, लाखों परिवारों की पिछली कई पीढ़ियों की बड़ी यादों का हिस्सा रही इस सर्विस को 'शुभ विदा' कहा जाए. 

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