प्रो. नंदू राम ने दलित विमर्श को समाजशास्त्र के केंद्रीय विषय के रूप में स्थापित कराने का काम किया. उनकी किताब ने अनुसूचित जाति के सरकारी कर्मचारियों में सामाजिक गतिशीलता और नई पहचान की स्थिति का विश्लेषण किया. उन्होंने जाति को केवल पारंपरिक संरचना नहीं, बल्कि आधुनिकता के भीतर प्रभावशाली सामाजिक तत्व के रूप में समझाया.