भारत में हिंदुओं की आबादी घटी तो मुसलमानों की बढ़ी, बांग्लादेश और पाकिस्तान का है यह हाल

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्ययन के मुताबिक देश में बहुसंख्यकर हिंदुओं की आबादी 7.82 फीसदी घटी है. इस अध्ययन में 1950 और 2015 को आधार वर्ष बनाया गया.वहीं इस दौरान मुसलमानों की आबादी में 43.15 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है.

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नई दिल्ली:

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (Economic Advisory Council of Prime Minister) ने देश और दुनिया में बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक आबादी को लेकर एक अध्ययन किया है. इस अध्ययन के मुताबिक देश में बहुसंख्यकर हिंदुओं (Hindu)की आबादी 7.82 फीसदी घटी है. इस अध्ययन में 1950 और 2015 को आधार वर्ष बनाया गया.इसके मुताबिक देश में 1950 में हिंदुओं की आबादी 84.68 फीसदी थी, जो 2015 में घटकर 78.06 फीसदी रह गई. 

इस अध्ययन में प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद की सदस्य शमिका रवि, कंसल्लटेंट अपूर्व कुमार मिश्र, अब्राहम जोस शामिल थे. 

भारत में कितनी बढ़ी मुसलमानों की आबादी?

अध्ययन के मुताबिक इस दौरान मुसलमानों की आबादी में 43.15 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है. यह 1950 में 9.84 फीसदी थी. यह 2015 तक बढ़कर 14.09 फीसदी हो गई.वहीं इस दौरान ईसाइयों की आबादी में 5.38 फीसदी का उछाल देखा गया. यह 2.24 फीसदी से 2.36 फीसदी हो गई.

सिखों की आबादी में भी 6.58 फीसदी बढोतरी दर्ज की गई है.देश में सिखों की आबादी 1.24 फीसदी थी, जो 2015 में बढ़कर 1.85 फीसदी हो गई है. इसी तरह से बौद्धों की आबादी में भी बढोतरी दर्ज की गई है. अध्ययन के मुताबिक बौद्धों की आबादी 0.05 फीसदी से बढ़कर 0.81 फीसदी हो गई है. 

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भारत में किस धर्म के लोगों की आबादी हुई कम?

वहीं दूसरी ओर इस दौरान धार्मिक अल्पसंख्यक समुदाय जैनों की आबादी में कही देखी गई है. भारत में 1950 में जैनों की आबादी 0.45 फीसदी थी, जो 2015 में घटकर 0.36 फीसदी ही रह गई.इसी तरह से पारसियों की आबादी में गिरावट दर्ज की गई है. यह गिरावट करीब 85 फीसदी की है. देश में 1950 में पारसियों की संख्या 0.03 फीसदी थी. यह 2015 में गिरकर 0.004 फीसदी रह गई थी.

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भारत में जनसंख्या के आंकड़े जनगणना से आते हैं. अंग्रेज राज में संपूर्ण जनगणना 1931 में हुई थी. उसके बाद विश्वयुद्ध की वजह से जनगणना पूरी नहीं हो पाई थी. आजाद भारत की पहली जनगणना 1951 में की गई थी. भारत में पिछली जनगणना 2011 में की गई थी. अगली जनगणना 2021 में प्रस्तावित थी, लेकिन कोरोना महामारी की वजह से उसे स्थगित कर दिया गया. 

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बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक आबादी में आए उतार-चढ़ाव के अंतरराष्ट्रीय ट्रेंड का पता लगाने के लिए इस अध्ययन में 167 देशों को शामिल किया गया. अध्ययन के मुताबिक भारतीय उपमहाद्वीप में मुस्लिम आबादी की बहुलता वाले देशों में मालदीव को छोड़कर सभी देशों में बहुसंख्यक आबादी में बढ़ोतरी देखी गई.मालदीव में बहुसंख्यक शैफी सुन्नी की आबादी में 1.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. 

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पाकिस्तान और बांग्लादेश में मुसलमानों का क्या है हाल?

वहीं बांग्लादेश में धार्मिक बहुसंख्यक आबादी में 18 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई.यह बढोतरी भारतीय उपमहाद्वीप में  सबसे अधिक थी.वहीं अगर भारत के पड़ोसी पाकिस्तान की बात करें तो वहां बहुसंख्यक धार्मिक हनफी मुस्लिम की आबादी में 3.75 फीसदी की बढ़ोतरी देखी गई. वहीं पूरी मुसलमान आबादी में 10 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई. ऐसा तब हुआ जब 1971 में पाकिस्तान के बंटवारे के बाद बाग्लादेश बन गया.

वहीं गैर मुस्लिम बहुसंख्यक आबादी वाले देशों म्यांमार, भारत और नेपाल में बहुसंख्यक धार्मिक आबादी में गिरावट देखी गई.वहीं म्यांमार में थेरवाद बौद्ध की आबादी में 10 फीसदी की गिरावट देखी गई. यह इस इलाके में बहुसंख्यक धार्मिक समूह की सबसे बड़ी गिरावट है. नेपाल में बहुसंख्यक हिंदू आबादी में चार फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. वहीं बौद्धों की आबादी में तीन फीसदी की गिरावट आई तो मुस्लिम आबादी में इस दौरान दो फीसदी की बढोतरी दर्ज की गई. 

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