मोदी सरकार क्यों चाहती है 'वन नेशन, वन इलेक्शन'? ये कितना प्रैक्टिकल? एक साथ चुनाव में क्या हैं चुनौतियां

एक देश, एक विधान, एक निशान तो आपने सुना ही होगा. अब उसके साथ एक चुनाव भी जोड़ने की तैयारी है. यानी वन नेशन वन इलेक्शन. ये वो मुद्दा है, जो BJP के चुनावी घोषणा पत्र में प्रमुखता से रहा. PM मोदी कई मौकों पर कह चुके हैं कि बार-बार चुनाव कराने से देश की प्रगति में बाधा आती है.

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नई दिल्ली:

मोदी कैबिनेट ने बुधवार (18 सितंबर) को वन नेशन वन इलेक्शन के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. इसके तहत लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाने का प्रस्ताव है. जबकि इसके 100 दिन के अंदर ही स्थानीय निकाय चुनाव भी कराए जाने का प्रावधान है. पीएम मोदी ने 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से 'वन नेशन वन इलेक्शन' को भारत की जरूरत बताया था. मोदी ने कहा था कि हर कुछ महीने में कहीं न कहीं चुनाव हो रहे हैं. इससे विकास कार्यों पर प्रभाव पड़ता है. अब कैबिनेट से मंजूरी मिलने के बाद सरकार नवंबर-दिसंबर में होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में वन नेशन वन इलेक्शन का बिल पेश करेगी. सरकार इसे 2029 से लागू करने की कोशिश में है. 

आइए समझते हैं कि क्या है वन नेशन वन इलेक्शन? अगर ये कानून बना, तो इसे लागू करना कितना आसान और कितना मुश्किल होगा? वन नेशन वन इलेक्शन के क्या फायदे और नुकसान हैं:-

क्या है वन नेशन वन इलेक्शन?
वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराए जाए. यानी वोटर्स लोकसभा और विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन में अपना वोट डालेंगे.

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एक चुनाव का कानून बना और लागू हुआ तो क्या-क्या होगा?
-वन नेशन, वन इलेक्शन की ओर बढ़ने के लिए सरकार को एक बार ही एक बड़ा कदम उठाना होगा.
-इसके तहत केंद्र सरकार लोकसभा चुनाव 2029 के बाद एक तारीख तय करेगी. 
-इस तारीख पर ही सभी राज्यों की विधानसभाएं भंग हो जाएंगी. 
-इसके बाद पहले फेज में लोकसभा के टर्म के हिसाब से सभी विधानसभाओं के चुनाव कराए जाएंगे.
-इसके 100 दिन के अंदर दूसरे फेज में नगर निकाय और पंचायत चुनाव कराए जाएंगे.
-इन सभी चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट होगी. 
-लोकतंत्र में कोई सरकार गिर भी सकती है. ऐसे में अविश्वास प्रस्ताव के कारण लोकसभा या किसी विधानसभा के भंग होने पर ये सुझाव दिया गया है कि नए चुनाव उतने ही समय के लिए कराए जाएं, जितना समय सदन का बचा हुआ है. 
- इसके बाद लोकसभा के साथ फिर नए सिरे से चुनाव कराए जाएं. 
-इस कानून को पास कराने के लिए 18 संवैधानिक संशोधन ज़रूरी होंगे. ज़्यादातर संशोधनों में राज्यों की मंज़ूरी जरूरी नहीं है.
-इस प्रस्ताव पर आगे बढ़ने से पहले देश भर में जनता और अलग-अलग नागरिक संगठनों की राय ली जाएगी.

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कोविंद कमेटी ने वन नेशन वन इलेक्शन पर क्या दिया सुझाव?
-कोविंद कमेटी ने सुझाव दिया कि सभी राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल अगले लोकसभा चुनाव यानी 2029 तक बढ़ाया जाए.
-पहले फेज में लोकसभा-विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जा सकते हैं. दूसरे फेज में 100 दिनों के अंदर निकाय चुनाव कराए जा सकते हैं.
-हंग असेंबली, नो कॉन्फिडेंस मोशन होने पर बाकी 5 साल के कार्यकाल के लिए नए सिरे से चुनाव कराए जा सकते हैं.
-इलेक्शन कमीशन लोकसभा, विधानसभा, स्थानीय निकाय चुनावों के लिए राज्य चुनाव अधिकारियों की सलाह से सिंगल वोटर लिस्ट और वोटर आई कार्ड तैयार कर सकता है.
-कोविंद पैनल ने एकसाथ चुनाव कराने के लिए डिवाइसों, मैन पावर और सिक्योरिटी फोर्स की एडवांस प्लानिंग की सिफारिश भी की है.

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क्या देश में पहले एक साथ हो चुके इलेक्शन?
भारत की आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए गए थे. हालांकि, 1968 और 1969 में कई राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल समय से पहले खत्म कर दिया गया. 1970 में इंदिरा गांधी ने पांच साल का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही लोकसभा को भंग करने का सुझाव दिया. इससे उन्होंने भारत में एक साथ चुनाव कराने की परंपरा को भी तोड़ दिया. जबकि मूल रूप से 1972 में लोकसभा के चुनाव होने थे. अब मोदी सरकार फिर से इसे लागू करने की कोशिश में है.

किन पार्टियों ने किया वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन?
केंद्रीय कैबिनेट ने सर्वसम्मति से ये प्रस्ताव पास किया है. इसका मतलब ये है कि NDA में शामिल दल इसके पक्ष में है. यानी सरकार ने प्रस्ताव पास करने से पहले ही सबको विश्वास में ले लिया. वन नेशन वन इलेक्शन का BJP, JDU, AIADMK, NPP, BJD, अकाली दल, LJP(R), अपना दल (सोनेलाल), ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन, असम गण परिषद और शिवसेना (शिंदे गुट) ने समर्थन किया है. खास बात ये है कि बहुजन समाज पार्टी की चीफ मायावती ने भी X पर पोस्ट करते वन नेशन वन इलेक्शन का सपोर्ट किया है. मायावती ने इसे पार्टी का पॉजिटिव स्टैंड बताया है.

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विपक्ष में किन पार्टियों ने किया विरोध?
वन नेशन वन इलेक्शन का विरोध करने वाली सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस है. इसके अलावा समाजवादी पार्टी (SP), आम आदमी पार्टी (AAP), सीपीएम (CPM), CPI, TMC, DMK, AIMIM और CPI-ML समेत 15 दल इसके खिलाफ थे. जबकि झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM), इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग (IUML) समेत 15 दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन पर कोई जवाब नहीं दिया.

कोविंद कमेटी में कौन-कौन?
वन नेशन वन इलेक्शन पर विचार के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में 2 सितंबर 2023 को कमेटी बनाई गई थी. कोविंद की कमेटी में गृह मंत्री अमित शाह, पूर्व सांसद गुलाम नबी आजाद, जाने माने वकील हरीश साल्वे, कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी, 15वें वित्त आयोग के पूर्व अध्यक्ष एनके सिंह, पॉलिटिकल साइंटिस्ट सुभाष कश्यप, पूर्व केंद्रीय सतर्कता आयुक्त(CVC) संजय कोठारी समेत 8 मेंबर हैं. केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल कमेटी के स्पेशल मेंबर बनाए गए हैं.

कैसे तैयार हुई रिपोर्ट?
कमेटी ने इसके लिए 62 राजनीतिक पार्टियों से संपर्क किया. इनमें से 32 पार्टियों ने वन नेशन वन इलेक्शन का समर्थन किया. वहीं, 15 दलों ने इसका विरोध किया था. जबकि 15 ऐसी पार्टियां भी थीं, जिन्होंने कोई जवाब नहीं दिया. 191 दिन की रिसर्च के बाद कमेटी ने 14 मार्च को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपी. कमेटी की रिपोर्ट 18 हजार 626 पेज की है.

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किन देशों में होते हैं एक साथ चुनाव?
-वैसे कई देशों में पहले ही एस तरह एक साथ चुनाव होते हैं. दक्षिण अफ्रीका में राष्ट्रीय और प्रांतीय चुनाव हर 5 साल पर एक साथ होते हैं. स्थानीय निकाय चुनाव दो साल बाद होते हैं.
-स्वीडन में राष्ट्रीय, प्रांतीय और स्थानीय चुनाव हर चार साल पर एक साथ होते हैं.
-इंग्लैंड में भी Fixed-term Parliaments Act, 2011 के तहत चुनाव का एक निश्चित कार्यक्रम है.
-जर्मनी और जापान की बात करें, तो यहां पहले पीएम का सिलेक्शन होता है, फिर बाकी चुनाव होते हैं. 
-इसी तरह इंडोनेशिया में भी राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव साथ में होते हैं.

वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर सरकार ने दिए कौन से तर्क?
-सरकार ने कहा कि वन नेशन वन इलेक्शन से सरकार का कामकाज आसान हो जाएगा. 
-बार-बार होने वाले चुनावों से सरकार का ध्यान अपने काम से भटकता है. 
-एक ही बार चुनाव होंगे, तो सरकार नीति निर्माण और उसके अमल पर ज़्यादा ध्यान दे पाएगी.
-एक बार चुनाव कराने से लागत कम होगी और संसाधन भी कम लगेंगे.
-आज के दौर में चुनाव बहुत महंगे हो चुके हैं. 2019 के ही चुनाव में करीब 60 हज़ार करोड़ की लागत आई थी. 
-उसके अलावा विधानसभा चुनावों में सरकार, उम्मीदवारों और पार्टियों अलग-अलग खर्चा होता है. वो सब कम हो जाएगा.
-एक साथ चुनाव कराने से वोटर्स के रजिस्ट्रेशन और वोटर लिस्ट तैयार करने का काम आसान हो जाएगा. एक ही बार में ठीक से इस काम को अंजाम दिया जा सकेगा
-कम चुनाव होने से राज्यों पर भी वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा. वोटों के लिए रेवड़ी बांटने का काम कम हो जाएगा.

वन नेशन वन इलेक्शन की क्या होंगी चुनौतियां?
-वन नेशन वन इलेक्शन के रास्ते में सबसे पहले तो संसद में ही चुनौती आएगी. एक देश एक चुनाव के लिए कई संवैधानिक संशोधनों की ज़रूरत होगी. इसके लिए संसद के दोनों ही सदनों में सरकार के सामने दो-तिहाई बहुमत जुटाने की चुनौती है. 

-राज्यसभा में सरकार के पास पूर्ण बहुमत नहीं है. 245 सीटों में से NDA को 112 सीटें ही हासिल हैं, जबकि दो-तिहाई बहुमत का आंकड़ा 164 पर होगा. 

-लोकसभा में भी 543 सीटों में से दो-तिहाई बहुमत का आंकड़ा 362 है, जबकि NDA के पास 292 सीटें ही हैं. हालांकि, दो-तिहाई बहुमत का फैसला वोटिंग में हिस्सा लेने वाले सदस्यों की संख्या के आधार पर तय होता है.

-वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर संघवाद की चिंता भी है. कुछ जानकारों का कहना है कि इससे भारत की राजनीतिक व्यवस्था के संघीय ढांचे पर असर पड़ेगा. राज्य सरकारों की स्वायत्तता कम होगी. विधि आयोग भी मौजूदा संवैधानिक व्यवस्था में एक साथ चुनाव की व्यावहारिकता पर सवाल उठा चुका है.

-व्यावहारिक तौर पर देखा जाए तो एक साथ चुनाव कराने में भारी मात्रा में संसाधनों की ज़रूरत पड़ेगी, जिसका इंतजाम करना चुनाव आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती है. एक साथ चुनाव कराने के लिए बड़ी मात्रा में EVM और ट्रेंड लोगों की ज़रूरत पड़ेगी. ताकि, पूरी चुनावी प्रक्रिया ठीक से पूरी की जा सके.

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-वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर लोकतांत्रिक प्रतिनिधित्व का भी सवाल है. अक्सर होने वाले चुनावों के ज़रिए जनता समय-समय पर अपनी पसंद तय कर सकती है, लेकिन अगर सिर्फ 5 साल बाद ऐसा होगा, तो जनता की इस पसंद को ज़ाहिर करने में दिक्कत आएगी.

-इससे एक पार्टी के प्रभुत्व का ख़तरा बढ़ जाएगा. कई अध्ययन बताते हैं कि जब भी एक साथ चुनाव होते हैं, तो एक ही पार्टी के राष्ट्रीय और राज्य चुनावों के जीतने की संभावना बढ़ जाती है. जिससे स्थानीय और राष्ट्रीय मुद्दों में घालमेल हो जाता है. 

-वन नेशन वन इलेक्शन को लेकर कई कानूनी पेचीदगियां हैं. कई जानकारों का कहना है कि एक देश एक चुनाव के कानून को कई संवैधानिक सिद्धांतों पर भी खरा उतरना पड़ेगा.

2009 से अब तक कितनी बार हो चुकी चुनावी प्रक्रिया?
2009 से अब तक लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए निर्वाचन आयोग 34 बार चुनाव प्रक्रिया पूरी कर चुका है. इनमें से कई बार लोकसभा और कई विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए हैं या कई बार अलग-अलग कराए गए हैं. इन दिनों ही हरियाणा और जम्मू-कश्मीर की चुनाव प्रक्रिया एक साथ हो रही है. अगर एक देश, एक चुनाव होता है तो ये चुनाव प्रक्रिया पांच साल में एक ही बार होगी या फिर बीच में कुछ विधानसभाएं भंग हुईं, तो उतनी बार चुनाव होंगे.