सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट (Places of Worship Act) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अब जुलाई में सुनवाई करेगा. CJI डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस जेबी पादरीवाला की बेंच ने आज सुनवाई के दौरान नोट किया कि केंद्र सरकार की ओर से इस मामले में अभी तक अपना जवाब दाखिल नहीं किया गया है. सुप्रीम कोर्ट ने 9 जनवरी को केंद्र का पक्ष पूछा था और उसे जवाब दाखिल करने के लिए फरवरी के आखिर तक का वक्त दिया था.
इस मामले में मुस्लिम पक्षकारों ने कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं का विरोध करते हुए कहा है कि इस कानून को चुनौती नहीं दी जा सकती है. साथ ही कहा कि केंद्र द्वारा जवाब में देरी के चलते ज्ञानवापी और मथुरा में यथास्थिति से छेड़छाड़ की कोशिश हो रही है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वो याचिका के सुनवाई योग्य होने पर प्रारंभिक आपत्ति पर सुनवाई के दौरान विचार करेगा.
9 सितंबर 2022 को प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट की वैधता को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को नोटिस जारी किया था और 31 अक्तूबर तक जवाब दाखिल करने को कहा था. बाद में 12 दिसंबर तक जवाब देने को कहा था.
याचिकाओं में कहा गया है यह कानून संविधान द्वारा दिए गए न्यायिक समीक्षा के अधिकार पर रोक लगाता है. कानून के प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत दिए गए अदालत जाने के मौलिक अधिकार के चलते निष्प्रभावी हो जाते हैं. साथ ही याचिकाओं में कहा गया कि यह एक्ट समानता, जीने के अधिकार और पूजा के अधिकार का हनन करता है.
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2021 में 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट (पूजा स्थल कानून) की वैधता का परीक्षण करने पर सहमति जताई थी. अदालत ने इस मामले में भारत सरकार को नोटिस जारी कर उसका जवाब मांगा था. बीजेपी नेता और वकील अश्विनी उपाध्याय ने अपनी जनहित याचिका में कहा कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट को खत्म किए जाने की मांग की है, जिससे इतिहास की गलतियों को सुधारा जाए और अतीत में इस्लामी शासकों द्वारा अन्य धर्मों के जिन-जिन पूजा स्थलों और तीर्थ स्थलों का विध्वंस करके उन पर इस्लामिक ढांचे बना दिए गए हैं, उन्हें उनके असली हकदारों को सौंपा जा सके.
दरअसल, देश की तत्कालीन नरसिम्हा राव सरकार ने 1991 में प्लेसेज ऑफ वर्शिप ऐक्ट यानी उपासना स्थल कानून बनाया था. कानून लाने का मकसद अयोध्या रामजन्मभूमि आंदोलन को बढ़ती तीव्रता और उग्रता को शांत करना था. सरकार ने कानून में यह प्रावधान किया गया कि अयोध्या की बाबरी मस्जिद के सिवा देश की किसी भी अन्य जगह पर किसी भी पूजा स्थल पर दूसरे धर्म के लोगों के दावे को स्वीकार नहीं किया जाएगा.
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