मध्यप्रदेश के कई जिलों में पारा 41 डिग्री के पार पहुंच चुका है. लोगों का गला थोड़ी-थोड़ी देर में सूख जा रहा है. इस तपती गर्मी में पानी के सहारे तो इंसान जैसे-तैसे वक्त काटता है. लेकिन एमपी में लोगों को पीने का साफ पानी तक नसीब नहीं हो हा. एक तरफ सरकार 2024 तक घरों में नल से पानी पहुंचाने की बात कर रही है लेकिन फिलहाल हालात ऐसे हैं कि राज्य के हजारों स्वास्थ्य केन्द्रों में खुद सरकारी रिपोर्ट कहती है कि लोगों के पास गोली तक गटकने का पानी नहीं है . रतलाम जिला अस्पताल में प्याऊ के नल टूटे हैं... टंकी सूखी पड़ी है,..बर्तन और कपड़े धोने वाले नल गर्म पानी उगल रहे हैं, मरीज़ गंदगी के बीच वही पानी पीने को मजबूर है या वो बाहर से पानी खरीदकर ला रहे हैं.
शमीम बानो, मरीज़ की रिश्तेदार की बात से ये बखूबी मालूम हो जाएगी कि लोगों को पीने का पानी तक नहीं मिल रहा है. बानो कहती है कि पानी की बहुत समस्या है हमारे लड़के बाहर से ला रहे हैं, लेट्रिन बाथरूम में भी बंद है. वहीं शामिया, मरीज़ के रिश्तेदार ने कहा कि यहां गंदगी है कपड़ा भी धोते हैं, क्या करेंगे मजबूरी है पीना पड़ता है पैसे हैं नहीं कहां से लाएंगें. जबकि समीर खान, मरीज जो कि 15 दिनों से भर्ती हैं, हड्डी टूटी है, लेकिन उन्हें पानी लेने के लिए बाहर जाना पड़ता है.
शहडोल के तो शासकीय बिरसा मुंडा मेडिकल कालेज में भर्ती मरीज और उनके परिजन इस गर्मी में पानी के लिए भटक रहे है. करोड़ों की लागत से बने मेडिकल कालेज के ओपीडी सहित वॉर्ड तक में एक भी वाटर कूलर नहीं लगा है, ये जिला आदिवासी बहुत माना जाता है. यहां तीमारदार प्रांगण में ही रोटी के लिये चूल्हा जलाते हैं दूर से पानी लाते हैं. मरीज के रिश्तेदार पन्ना लाल इन हालातों का जिक्र करते हुए कहते हैं कि हम लोग 15 दिन से आए हैं, लेकिन साफ पानी तक नहीं मिल रहा .
एक अन्य मरीज की तीमारदार ने कहा कि आरओ है ही नहीं गरम गंदा पानी आ रहा है आरओ कहां से मिलेगा. राज्य के चर्चित कमलनाथ विकास मॉडल यानी छिंदवाड़ा का भी सरकारी अस्पताल देख लीजिये. करोड़ों की लागत से 5 मंजिला बिल्डिंग बनी पानी के लिये या तो ग्राउंड फ्लोर का टूटा कूलर या कोतवाली या फिर. अनगढ़ हनुमान मंदिर का आसरा है. रीवा का जिला अस्पताल थोड़ा फैंसी है लेकिन पानी का इंतजाम यहां भी ऐसा ही है. आदिवासी बहुल डिंडोरी के जिला अस्पताल में पीने के पानी को लेकर बड़ी किल्लत है पानी का टैंक है लेकिन फोटो सेशन टाइप्स.
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बड़े अस्पतालों में कमी की बात सरकार मानती नहीं तो हमने तस्वीर दिखा दी, छोटे अस्पताल यानी प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्र में तो खुद स्वास्थ्य विभाग की एक रिपोर्ट बताती है कि 2228 अस्पताल जलसंकट से जूझ रहे हैं. इनमें आदिवासी क्षेत्रों की हालत सबसे ज्यादा खराब है. छिंदवाड़ा में सबसे ज्यादा 290, सिवनी में 129, डिंडोरी में 188, बड़वानी में 168, मंदसौर में 160, रतलाम में 151 अस्पताल पानी की परेशानी का सामना कर रहे हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिले सीहोर में 106 अस्पतालों में पानी का संकट है.