राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहा विपक्ष

राज्यसभा में विपक्ष सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी भी कर रहा है. विपक्ष सांसद संविधान के आर्टिकल 67 (B) के तहत सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएंगे.

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विपक्ष के हंगामे के बाद राज्यसभा की कार्यवाही पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी गई है.
नई दिल्ली:

संसद के शीतकालीन सत्र में गर्मागर्मी का दौर जारी है. सोमवार को बीजेपी फ्रंटफुट पर नजर आई और जॉर्ज सोरोस के मुद्दे पर कांग्रेस की घेरेबंदी की. दोनों सदनों में अमेरिकी अरबपति सोरोस से गांधी परिवार के कनेक्शन को लेकर जमकर हंगामा हुआ. इस बीच राज्यसभा में विपक्ष सभापति जगदीप धनखड़ के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी कर रहा है. विपक्ष सांसद संविधान के आर्टिकल 67 (B) के तहत सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाएंगे. इसके लिए प्रस्ताव पर विपक्ष के कई सांसदों ने साइन भी कर दिए हैं. BJP ने संसद में कैसे पलटा सीन, पढ़िए

क्या कहता है अनुच्छेद 67 (B)

संविधान के अनुच्छेद 67(बी) में कहा गया कि उपराष्ट्रपति को राज्य सभा के एक प्रस्ताव, जो सभी सदस्यों के बहुमत से पारित किया गया हो और लोकसभा द्वारा सहमति दी गई हो, के जरिए उसके पद से हटाया जा सकता है. लेकिन कोई प्रस्ताव तब तक पेश नहीं किया जाएगा, जब तक कि कम से कम चौदह दिनों का नोटिस नहीं दिया गया हो, जिसमें यह बताया गया हो ऐसा प्रस्ताव लाने का इरादा है.

क्या है विपक्ष का प्लान?

सूत्रों के मुताबिक, तृणमूल कांग्रेस के सांसद भी राज्यसभा के सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के पक्ष में हैं. TMC के वरिष्ठ सांसद ने कहा कि बेहतर होगा कि कांग्रेस इस पहल को आगे बढ़ाए. राज्यसभा के सभापति को हटाने के लिए प्रस्ताव 50 सदस्यों के हस्ताक्षर की जरूरत होती है. विपक्ष की ओर से सभापति को हटाने के लिए प्रस्ताव लाए जाने की चर्चा संसद के पिछले मॉनसून सत्र के दौरान भी थी, लेकिन बाद में विपक्ष ने अपने पैर पीछे खींच लिए थे.

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सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के सदस्यों ने कांग्रेस और उसके नेताओं पर विदेशी संगठनों और लोगों के माध्यम से देश की सरकार, अर्थव्यवस्था को अस्थिर करने की कोशिश का आरोप लगाया. NDA के सांसदों ने इस मुद्दे पर चर्चा कराने की मांग की. वहीं, कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष ने प्रधानमंत्री मोदी और सरकार के खिलाफ नारेबाजी की.

तीन बार के स्थगन के बाद दोपहर 3 बजे उच्च सदन की बैठक शुरू होने पर भी सदन में हंगामा जारी रहा. विपक्षी सदस्यों ने सरकार के खिलाफ नारेबाजी की. इस दौरान विपक्ष के कुछ सदस्य सीट से आगे आकर नारेबाजी करने लगे.

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हंगामे के बाद नड्डा और खरगे के साथ की मीटिंग
सदन में हंगामा जारी रहने के बीच सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि उनके कक्ष में सदन के नता जेपी नड्डा और नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ उनकी बैठक हुई. इस दौरान कई अन्य वरिष्ठ सदस्य भी मौजूद थे. उन्होंने कहा कि कल मंगलवार को सुबह उनके कक्ष में इन नेताओं की एक और बैठक होगी.

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सभापति ने सदस्यों से की आत्मचिंतन की अपील
सभापति ने सदस्यों से आत्मचिंतन करने का आह्वान करते हुए सदन को सुचारू रूप से चलने देने की अपील की. हालांकि, सदन में शोरशराबा जारी रहा. जिसके बाद आखिरकार सभापति ने दोपहर 3:10 बजे सदन की कार्यवाही पूरे दिन के लिए स्थगित कर दी.

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राज्यसभा का पदेन सभापति होता है उपराष्ट्रपति 
उपराष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है. वह लाभ का कोई अन्य पद धारण नहीं करता है. जिस किसी ऐसी अवधि के दौरान उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है या राष्ट्रपति के कर्तव्यों का निर्वहन करता है, उस अवधि के दौरान वह राज्यसभा के सभापति के पद के कर्तव्यों का पालन नहीं करता है. इस दौरान वह राज्यसभा के सभापति के रूप में किसी वेतन या भत्ते का हकदार नहीं होता.

सभापति के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव क्यों लाना चाहती है विपक्ष?
कांग्रेस और INDIA गठबंधन के अन्य घटक दलों ने सोमवार को आरोप लगाया कि राज्यसभा में सभापति जगदीप धनखड़ का रवैया पक्षपातपूर्ण दिखाई देता है. हालत यह है कि नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को बोलने नहीं दिया जाता और उनका माइक बंद कर दिया जाता है. विपक्ष के दल चाहते हैं कि सदन नियमों और परंपरा के अनुसार चले. साथ ही सदस्यों के खिलाफ व्यक्तिगत टिप्पणियां अस्वीकार्य हैं. 

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क्या कहता है संविधान का अनुच्छेद 67 बी?
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 67 बी कहता है कि उपराष्ट्रपति को तभी हटाया जा सकता है, जब राज्यसभा के सभी सदस्यों की ओर से प्रस्ताव पारित हो. लोकसभा भी उस प्रस्ताव पर सहमत हो. इसके लिए 14 दिन का नोटिस देना होता है. अनुच्छेद 67 में लिखा है कि उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पांच साल का होता है. उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति को एक लेटर लिख उस पर दस्तखत कर अपना पद त्याग सकता है. अगर उसके पद की अवधि खत्म भी हो गई है, तो उसके उत्ताधिकारी के पद ग्रहण करने तक वह उस पद पर बना रहेगा. 

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