सुप्रीम कोर्ट ने ने बिहार सरकार को आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया की हत्या के मामले में पूर्व सांसद आनंद मोहन को दी गई छूट से जुड़े वास्तविक रिकॉर्ड पेश करने के निर्देश दिए हैं. जी कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने आनंद मोहन को समय से पहले रिहा करने के बिहार सरकार के फैसले को सुप्री कोर्ट में चुनौती दी है. उमा कृष्णैया की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील सिद्धार्थ लूथरा ने कहा कि राज्य सरकार ने पूर्व निर्धारित नीति में बदलाव किया है और मामले में उन्हें रिहा कर दिया है. उन्होंने पीठ से आग्रह किया कि राज्य को आनंद मोहन के आपराधिक इतिहास के पूरे रिकॉर्ड पेश करने का निर्देश दिया जाए और मामले को अगस्त के महीने में सूचीबद्ध करने की मांग की.
मामले की पिछली सुनवाई में 8 मई को सुप्रीम कोर्ट ने आनंद मोहन की जल्द रिहाई को लेकर केंद्र और बिहार सरकार को नोटिस जारी किया था. बिहार की जेल नियमावली में संशोधन के बाद आनंद मोहन को 27 अप्रैल को सहरसा जेल से रिहा कर दिया गया था. जी. कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने अपनी याचिका में दलील दी है कि गैंगस्टर से नेता बने आनंद मोहन को सुनाई गई उम्रकैद की सजा उसके पूरे जीवनकाल के लिए है और इसकी व्याख्या महज 14 वर्ष की कैद की सजा के रूप में नहीं जा सकती.
उमा कृष्णैया ने सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में कहा है, "जब मृत्यु दंड की जगह उम्रकैद की सजा सुनाई जाती है, तब उसका सख्ती से पालन करना होता है, जैसा कि न्यायालय का निर्देश है और इसमें कटौती नहीं की जा सकती." आनंद मोहन का नाम उन 20 कैदियों में शामिल है, जिन्हें जेल से रिहा करने के लिए राज्य के कानून विभाग ने इस हफ्ते की शुरूआत में एक अधिसूचना जारी की थी, क्योंकि वे जेल में 14 वर्षों से अधिक समय बिता चुका है.
बिहार जेल नियमावली में राज्य की महागठबंधन सरकार द्वारा 10 अप्रैल को संशोधन किये जाने के बाद आनंद मोहन की सजा घटा दी गई, जबकि ड्यूटी पर मौजूद लोकसेवक की हत्या में संलिप्त दोषियों की समय पूर्व रिहाई पर पहले पाबंदी थी. बता दें कि तेलंगाना के रहने वाले जी. कृष्णैया की 1994 में एक भीड़ ने उस समय पीट-पीटकर हत्या कर दी थी, जब उनके वाहन ने मुजफ्फरपुर जिले में गैंगस्टर छोटन शुक्ला की शवयात्रा से आगे निकलने की कोशिश की थी. तब आनंद मोहन विधायक था और शवयात्रा में शामिल था.
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