सुप्रीम कोर्ट के कुछ हालिया फैसलों पर नाराजगी जताते हुए सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल द्वारा दिए गए बयान पर विवाद शुरू हो गया है. बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील नलिन कोहली ने उन पर निशाना साधा है. बताते चलें कि सिब्बल ने कहा था कि उन्हें इस संस्था (सुप्रीम कोर्ट) से कोई उम्मीद नहीं बची है. सिब्बल ने गुजरात दंगों में एसआईटी की क्लीन चिट को चुनौती देने वाली जकिया जाफरी की याचिका को खारिज करने और मनी लॉन्ड्रिंग रोकथाम अधिनियम के प्रावधानों को बरकरार रखने के फैसले की भी आलोचना की है. सिब्बल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में 50 साल तक प्रैक्टिस करने के बाद संस्थान में उनकी कोई उम्मीद नहीं बची है. उन्होंने कहा कि भले ही एक ऐतिहासिक फैसला पारित हो जाए, लेकिन इससे शायद ही कभी जमीनी हकीकत बदलती हो.
कपिल सिब्बल एक पीपुल्स ट्रिब्यूनल में बोल रहे थे जो 6 अगस्त 2022 को नई दिल्ली में न्यायिक जवाबदेही और सुधार अभियान ( CJAR), पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज ( PUCL) एंड नेशनल अलायंस ऑफ पीपल्स मूवमेंट्स ( NAPM) द्वारा "नागरिक स्वतंत्रता के न्यायिक रोलबैक" पर आयोजित किया गया था. बताते चलें कि ट्रिब्यूनल का फोकस गुजरात दंगों (2002) और छत्तीसगढ़ आदिवासियों के नरसंहार (2009) पर सुप्रीम कोर्ट के 2022 के फैसले पर था. सिब्बल ने कहा कि स्वतंत्रता तभी संभव है जब हम अपने अधिकारों के लिए खड़े हों और उस स्वतंत्रता की मांग करें.
नलिन कोहली ने कहा कि कपिल सिब्बल को लगता है कि एक जजमेंट से उनकी असहमति है तो वो अपने विचार जरूर रख सकते थे. लेकिन यह कहा से उचित है कि पूरी संस्था को ही आप नाकार दें. पूरी संस्था को ही आप कह दें कि मुझे कोई उम्मीद नहीं है.करोड़ों लोग इस देश में इन संस्थाओं की तरफ आशा भरी नजरों से देखते हैं. ऑल इंडिया बार एसोसिएशन के चेयरमैन आदिश अग्रवाल ने कहा है कि मुझे अफसोस है कि उन्होंने भारतीय न्यायपालिका से उम्मीद खो दिया है. उन्होंने कहा कि न्यायालय उनके सामने प्रस्तुत तथ्यों को लागू करके मामलों का फैसला करता है.
सिब्बल ने कहा कि स्वतंत्रता तभी संभव है जब हम अपने अधिकारों के लिए खड़े हों और उस स्वतंत्रता की मांग करें. सिब्बल ने कहा कि गुजरात दंगों में मारे गए गुजरात के कांग्रेस सांसद एहसान जाफरी की विधवा जकिया जाफरी अदालत में बहस करते हुए उन्होंने केवल सरकारी दस्तावेजों और आधिकारिक रिकॉर्डों को रिकॉर्ड किया. कोई निजी दस्तावेज नहीं रखा था. उन्होंने कहा कि दंगों के दौरान कई घर जला दिए गए थे. स्वाभाविक रूप से खुफिया एजेंसी इस तरह की आग को बुझाने के लिए फायर ब्रिगेड बुलाएगी. सिब्बल के अनुसार खुफिया एजेंसी के दस्तावेज या पत्राचार से पता चलता है कि किसी फायर ब्रिगेड ने फोन नहीं उठाया था.
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