बिहार में दलित आईएएस अधिकारी जी कृष्णैया (IAS G Krishnaiah Murder) की पीट-पीटकर हत्या के मामले में दोषी पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह (Anand Mohan Singh) की रिहाई को लेकर सियासत जारी है. इस बीच 5 दिसंबर 1994 की वो वारदात भी ताजा हो गई है, जब गोपालगंज के डीएम जी कृष्णैया को भीड़ ने मार डाला था. जी कृष्णैया की बर्बर हत्या के गवाह उनके ड्राइवर थे. ड्राइवर दीपक कुमार ने NDTV से एक्सक्लूसिव बातचीत में उस खौफनाक शाम के एक-एक पलों का जिक्र किया है.
दीपक कुमार NDTV से कहा, "अगर उस शाम डीएम साहेब ने अपने बॉडीगार्ड को बचाने के लिए कार रोकने को नहीं कहा होता, तो शायद आज वो जिंदा होते."
'साहेब की बात नहीं माननी चाहिए थी'
5 दिसंबर 1994 में हुई वारदात को याद करते हुए दीपक कुमार बताते हैं, "शायद मुझे उस दिन साहेब की बात नहीं माननी चाहिए थी." उन्होंने कहा, "हम 1994 में एक बैठक के बाद हाजीपुर से वापस आ रहे थे. तभी भीड़ ने हम पर हमला किया. यह जानना मुश्किल है कि इसमें कौन-कौन थे. भीड़ ने सबसे पहले एम्बेसडर कार से कृष्णैया सर के बॉडीगार्ड को बाहर खींच लिया. मैंने कार नहीं रोकी और भीड़ से आगे बढ़ने की कोशिश की, लेकिन सर ने मुझे कार रोकने के लिए कहा, क्योंकि वह अपने बॉडीगार्ड को बचाना चाहते थे, जो पीछे छूट गए थे."
कार रोकते ही भीड़ ने किया हमला
दीपक कुमार ने कहा, "जैसे ही मैंने कार रोकी, भीड़ ने हम पर हमला कर दिया. उन्होंने मुझे इतनी बुरी तरह पीटा कि मैं सुनने में अक्षम हो गया. आखिरी बार मैंने कृष्णैया सर को तभी देखा था." उन्होंने आगे कहा, "मैं अपनी जान बचाने में कामयाब रहा. कुछ देर बाद जब मैं वापस आया, तो मैंने सर को गड्ढे में बेजान पड़ा देखा. चारों तरफ खून था. हम उन्हें अस्पताल ले गए." उन्होंने कहा, "कृष्णैया सर हमेशा हमलोगों के बारे में सोचते थे."
छोटन शुक्ला के समर्थकों ने किया था प्रदर्शन
आनंद मोहन की पार्टी के एक अन्य गैंगस्टर-राजनीतिज्ञ छोटन शुक्ला के शव के साथ प्रदर्शन कर रही भीड़ ने मुजफ्फरपुर शहर के बाहरी इलाके के एक गांव में 5 दिसंबर 1994 की शाम को आईएएस अधिकारी पर हमला किया था. छोटन शुक्ला की घटना के एक दिन पहले हत्या कर दी गई थी.
दीपक कुमार ने दी थी गवाही
5 दिसंबर को भीड़ के हमले में ही कृष्णैया की मौत हो गई थी. दीपक कुमार ने कोर्ट में गवाही दी थी. परिणामस्वरूप आनंद मोहन सिंह को दोषी ठहराया गया था. हालांकि, सिंह को अब रिहा किया जा रहा है. इसके लिए बिहार सरकार ने जेल मैनुअल में कुछ बदलाव किए हैं. आलोचकों का कहना है कि यह उनके समुदाय के मतदाताओं को लुभाने का एक प्रयास है.
निचली अदालत ने सुनाई थी मौत की सजा
आनंद मोहन सिंह 2007 में एक निचली अदालत ने मौत की सजा सुनाई थी, लेकिन पटना हाईकोर्ट ने बाद में इस सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया था. वह 15 साल से जेल में हैं. आनंद मोहन सिंह के बेटे लालू यादव की पार्टी आरजेडी से विधायक हैं. आनंद सिंह मोहन नीतीश कुमार की अगुवाई वाली बिहार सरकार द्वारा जेल नियमों में बदलाव के बाद रिहा किए जाने वाले 27 कैदियों में शामिल हैं
आईएएस की पत्नी ने किया विरोध
आनंद मोहन सिंह की रिहाई के फैसले का दिवंगत आईएएस जी. कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने विरोध किया है. उन्होंने नीतीश सरकार की मंशा पर सवाल उठाते हुए इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से हस्तक्षेप करने की मांग की है.
ये भी पढ़ें:-
बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन ने 'बिलकिस बानो' केस के दोषियों को लेकर BJP पर साधा निशाना