मुंबई के दादर में रहने वाली कियारा बंसल (बदला हुआ नाम) मासिक धर्म की दवाएं ले रही थीं, क्योंकि उन्हें 9 साल की उम्र में मासिक धर्म आ गया था. लड़की को भारी रक्तस्त्राव हो रहा था, जिसके वजह से एक साल से अधिक समय से उसके पेट में असहनीय दर्द हो रहा था. लड़की में कोई अन्य लक्षण दिखाई नहीं दे रहे थे. जैसे की, उल्टी, लूज मोशन और वजन कम होना. लड़की की बिगड़ती सेहत को देखकर परिवार वालों ने उसे स्थानिक डॉक्टरों को दिखाया. डॉक्टरों के सलाह से की गई वैद्यकीय जांच में मरीज को मेसेन्टेरिक लिम्फैडेनाइटिस का पता चला. लड़की को आगे के इलाज के लिए वाडिया अस्पताल दाखिल कराया गया.
लड़की को ट्रिकोटिलोमेनिया था...
बाई जेरबाई वाडिया हॉस्पिटल फॉर चिल्ड्रन के पीडियाट्रिक सर्जन डॉ. पराग करकेरा ने कहा, "क्लीनिकल जांच में हमें पेट में गांठ महसूस हुई. ऐसी स्थिति में मरीज को तुरंत अस्पताल दाखिल कराया गया. पेट में दर्द के कारण कई मरीज इलाज के लिए अस्पताल आते हैं, लेकिन उनमें कोई गांठ नहीं होती हैं. हमने एक सीटी स्कैन किया, जिसमें एक ट्राइकोबीजोर दिखाया गया, जो पेट में बालों का एक द्रव्यमान है. इस लड़की को बाल खाने की आदत थी. इस कारण पेट में बालो का गुच्छा बन गया था. बच्चों में ऐसा कम ही देखने को मिलता है. इस मरीज को ट्रिकोटिलोमेनिया था (ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति को अपने बाल खुद खींचने की प्रबल इच्छा होती है). वह ट्राइकोपागिया से भी पीड़ित थी, एक ऐसी स्थिति जिसमें व्यक्ति अपने बाल खुद ही खाते हैं. इस बारे में माता-पिता को भी कुछ पता नहीं था.
हो सकता था पेट की दीवार में छेद...
डॉ. करकेरा ने आगे कहा कि मरीज पर की गैस्ट्रोनोमी प्रक्रिया कराई गई. यह प्रक्रिया लगभग 2 घंटे तक चली जिसके बाद 100 ग्राम हेयरबॉल को हटा दिया गया. ऑपरेशन के 7 वे दिन बा उन्हें छुट्टी दे दी गई. समय रहते इलाज न करने से आंतों में रुकावट, पेट की दीवार में छेद और छोटी आंत जैसी जटिलताएं हो सकती थीं, लेकिन अब सर्जरी के बाद मरीज की सेहत में सुधार हो रहा हैं.”
पीडि़ता की मां अमिता बंसल (बदला हुआ नाम) ने कहा, "मेरी बेटी को पेट में असहनीय दर्द होता था, समय के साथ-साथ उसकी सेहत और बिगड़ने लगी थी. दवाएं लेने के बावजूद दर्द कम नहीं हो रहा था. हमने काफी डॉक्टर की सलाह ली, लेकिन हमारी बेटी की सेहत में सुधार नहीं हुआ. उसके पेट में बालों को जानकर हम काफी चौंक गई थे. बेटी का तुरंत इलाज करके उसकी जान बचाने के लिए हम डॉक्टरों को धन्यवाद देते हैं.
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