MP गजब है! भर्ती कर भूली सरकार, कॉन्स्टेबल 12 साल घर बैठे पाता रहा पगार

इस पूरे मामले पर एसीपी अंकिता खतेड़कर ने कहा अब यह भी जांचा जाएगा कि उस समय के अधिकारी और कर्मचारी कैसे इसकी अनुपस्थिति पर ध्यान नहीं दे पाए. यह गलती कहां हुई और किसकी जिम्मेदारी थी. यह भी हो सकता है कि ऐसे और लोग हों जो घर बैठे वेतन ले रहे हों.

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साल 2011 में अभिषेक उपाध्याय की भर्ती मध्य प्रदेश पुलिस में हुई थी.
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  • मध्य प्रदेश के पुलिसकर्मी अभिषेक उपाध्याय ने 12 साल तक बिना काम किए वेतन लिया.
  • अभिषेक साल 2011 में भर्ती हुआ था. लेकिन कभी ट्रेनिंग नहीं ली और काम पर नहीं गया.
  • उपाध्याय ने अपनी गलती स्वीकार कर ली है और 1 लाख रुपये लौटा दिए हैं.
  • अभिषेक ने कहा है कि वो धीरे-धीरे करके सारे पैसे वापस कर देगा.
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विदिशा:

मध्य प्रदेश में 'भूत कर्मचारियों' का पर्दाफाश NDTV ने कुछ समय पहले ही किया था. लगभग 50,000 सरकारी कर्मचारी, जिनका रिकॉर्ड सिस्टम में है, लेकिन दिसंबर 2024 से उन्होंने वेतन ही नहीं निकाला. लेकिन अब इसी सिस्टम की एक और हैरान करने वाली परत खुली है और यह मामला एकदम उलटा है. जहां हजारों कर्मचारी वेतन नहीं ले रहे हैं, वहीं एक पुलिसकर्मी बिना एक दिन काम किए 12 साल तक वेतन उठाता रहा. मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में तैनात सिपाही अभिषेक उपाध्याय ने 12 साल में करीब 28 लाख रुपये वेतन के तौर पर लिए हैं. जबकि न तो उसने कभी ट्रेनिंग की और न ही ड्यूटी पर गए.

नौकरी लगी, लेकिन ट्रेनिंग सेंटर पहुंचे ही नहीं

साल 2011 में अभिषेक उपाध्याय की भर्ती मध्य प्रदेश पुलिस में हुई थी. उसे सबसे पहले भोपाल पुलिस लाइन में तैनात किया गया और वहां से पुलिस ट्रेनिंग के लिए सागर भेजा गया. यह उस बैच के लिए सामान्य प्रक्रिया थी. लेकिन अभिषेक न तो सागर ट्रेनिंग सेंटर पहुंचे और न ही किसी को सूचना दी. वे सीधा अपने घर विदिशा लौट गए. उन्होंने न छुट्टी के लिए आवेदन किया, न कोई मेडिकल पेपर जमा किया.

जो किया, वह यह... उन्होंने अपनी सर्विस फाइल स्पीड पोस्ट से भोपाल भेज दी. जिसमें लिखा की तबीयत खराब हो गई थी. हैरान करने वाली बात यह रही कि सिस्टम में कहीं कोई अलार्म नहीं बजा. भोपाल ऑफिस ने मान लिया की उसकी ट्रेनिंग शुरू हो गई है. वहीं सागर सेंटर को जानकारी ही नहीं थी कि अभिषेक नहीं पहुंचे. इस तरह, 12 साल तक उन्हें हर महीने वेतन मिलता रहा.

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10 साल बाद उठा पर्दा

एसीपी अंकिता खतेड़कर जो इस मामले की जांच कर रही उन्होंने NDTV को बताया 'यह मामला विदिशा जिले के निवासी एक पुलिस आरक्षक से जुड़ा है. जिसे 2011 में मध्य प्रदेश पुलिस में भर्ती किया गया था. भर्ती के बाद उसे भोपाल पुलिस लाइन में पोस्ट किया गया और फिर सागर ट्रेनिंग सेंटर के लिए भेजा गया था. हालांकि, जब पूरे बैच को ट्रेनिंग के लिए सागर भेजा गया, तब यह छुट्टी पर था. इसलिए जब यह लौटा, तब इसे अलग से ट्रेनिंग के लिए भेजा गया. लेकिन यह ट्रेनिंग पर जाने के बजाय चुपचाप अपने घर विदिशा लौट गया. इसने न तो किसी अधिकारी को सूचित किया, न ही छुट्टी की अर्जी दी. बल्कि अपनी सर्विस फाइल स्पीड पोस्ट से भोपाल भेज दी. वह फाइल वहां पहुंच गई और बिना किसी जांच के स्वीकार भी कर ली गई. इसका कहना था कि मेरी तबीयत अचानक खराब हो गई थी, इसलिए मैं घर चला गया था. इसने विभाग को यह नहीं बताया कि वह ट्रेनिंग पर नहीं पहुंचा है. क्योंकि हमारे यहां से पत्र पहले ही सागर भेजा जा चुका था कि हम इस आरक्षक को भेज रहे हैं, तो जब यह वहां नहीं पहुंचा, तो सागर वालों के पास भी विभाग को सूचित करने का आधार नहीं था. जब हमारे यहां से कोई सूचना नहीं गई, तो हमें भी कोई जानकारी नहीं मिली.

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एसीपी अंकिता खतेड़कर ने आगे कहा, अब जब ट्रेनिंग पूरी कर छात्र लौटे, तो उनकी सूची आई. उसमें इस आरक्षक का नाम नहीं था, क्योंकि इसे अलग से भेजा गया था. इसलिए यह ध्यान में नहीं आया कि यह नहीं लौटा. उस समय जिन अधिकारियों और कर्मचारियों की जिम्मेदारी थी, वे ध्यान नहीं दे पाए. अब जब 10 साल बाद समयमान वेतनमान लागू होना था, तब सर्विस रिकॉर्ड की जांच (SR Check) की गई. उसमें इसके नाम के आगे न कोई पुरस्कार का जिक्र था, न ही कोई सजा, तब हमें शक हुआ. ऐसा नहीं हो सकता कि किसी के नाम के सामने कुछ भी उल्लेख न हो. इसके बाद स्थापना शाखा से इसे फोन किया गया कि आप कहां हैं, शाखा आइए. जब यह आया, तब पता चला कि यह कभी नौकरी पर था ही नहीं. इसने ड्यूटी की ही नहीं, यह घर पर ही बैठा था और आराम से वेतन ले रहा था.

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एसीपी अंकिता खतेड़कर ने कहा, इसे पता था कि वेतन आ रहा है, लेकिन न तो विभाग को सूचना दी और न ही कभी ड्यूटी पर आया. इसने अब स्वीकार किया है कि 'हां, मुझसे गलती हुई है. मैं नया-नया भर्ती हुआ था, मुझे पुलिस विभाग की प्रक्रियाओं की जानकारी नहीं थी. मेरा स्वास्थ्य खराब था, मैं मानसिक रूप से भी ठीक नहीं था, इलाज करवा रहा था.' इसने बताया कि जो वेतन मुझे मिल रहा था, उसमें से एक लाख रुपये मैंने जमा कर दिए हैं, बाकी भी धीरे-धीरे चुका दूंगा. इसने 12 साल में विभाग से करीब 35 से 40 लाख रुपये की सैलरी ली होगी. अब जांच चल रही है, तो हम इससे सारे दस्तावेज मांगेंगे कि क्या इसकी मानसिक स्थिति वाकई में खराब थी, क्योंकि अभी तक इसने कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया है.

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मामले की जांच की जाएगी

एसीपी अंकिता खतेड़कर ने कहा अब यह भी जांचा जाएगा कि उस समय के अधिकारी और कर्मचारी कैसे इसकी अनुपस्थिति पर ध्यान नहीं दे पाए. यह चूक कहां हुई और किसकी जिम्मेदारी थी, यह सब देखा जाएगा. यह भी हो सकता है कि ऐसे और लोग हों जो घर बैठे वेतन ले रहे हों. मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकती, लेकिन यह संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता." यह मामला तब सामने आया जब अभिषेक की 10 साल की सेवा पूरी होने पर टाइम स्केल प्रमोशन के लिए सर्विस रिकॉर्ड चेक किया गया.

अभिषेक उपाध्याय ने इस पूरे मामले पर क्या कहा

अभिषेक उपाध्याय ने अपनी गलती मानी है. NDTV से खास बातचीत में उन्होंने कहा, “मुझे सिस्टम की जानकारी नहीं थी. एक्सीडेंट में चोट आई थी, पैर में आज भी रॉड डली है, मुझे भयानक माइग्रेन रहता था और घर में लव मैरिज की वजह से भी तनाव था. मानसिक स्थिति ठीक नहीं थी, इलाज करवा रहा था. मुझसे गलती हो गई.”

28 लाख में से लौटाए 1 लाख

अधिकारियों का मानना है कि उपाध्याय ने अब तक 28 से 35 लाख रुपये तक का वेतन उठा लिया है. उसने अब तक 1 लाख वापस किया है और वादा किया है कि धीरे-धीरे बाकी भी चुकाएंगे. फिलहाल, यह जांच की जा रही है कि उनकी मेडिकल स्थिति को लेकर कोई ठोस सबूत है या नहीं. अब तक कोई दस्तावेज़ नहीं मिला है. साथ ही, यह भी देखा जा रहा है कि आखिर फाइल कैसे स्वीकार की गई और इतने साल तक यह गलती कैसे बनी रही.

एक सिस्टम, दो चरम

NDTV की पिछली रिपोर्ट में बताया गया था कि करीब 50,000 सरकारी कर्मचारी ऐसे हैं जिनका डेटा एंट्री सिस्टम में है, कोड एक्टिव हैं, लेकिन दिसंबर 2024 से वेतन नहीं निकाला है. कुछ रिटायर हो चुके हैं, कुछ की मृत्यु हो चुकी है, लेकिन हजारों ऐसे हैं जो आज भी एक्टिव हैं. बस सिस्टम ने उन्हें हटा दिया. इनका 230 करोड़ रुपये से अधिक वेतन बकाया है. वहीं दूसरी ओर, अभिषेक उपाध्याय जैसे लोग बिना एक दिन काम किए वर्षों तक वेतन उठाते रहे.

NDTV की रिपोर्ट के बाद, राज्य सरकार ने जो जांच रिपोर्ट 15 दिन में देनी थी वो सिर्फ 3 दिन में सौंप दी गई. अब पूरा वेतन प्रबंधन सिस्टम ऑडिट के दायरे में है. जब NDTV ने वित्त मंत्री जगदीश देवड़ा से इस मुद्दे पर सवाल किया, तो उन्होंने जवाब देने से कतराते हुए सिर्फ इतना कहा: “जो भी प्रक्रिया होती है, वो नियमों के अनुसार होती है…” दूसरे सवाल पर उन्होंने दोहराया, “जो होगा, नियमों के अनुसार ही होगा… ओके… फाइन.” इसके बाद मंत्री जी कैमरे से बचते हुए अंदर चले गए.

NDTV की रिपोर्ट ने जो उजागर किया है, वह इस पूरे सिस्टम की कमजोरियों को सामने लाता है. क्योंकि अगर मृत कर्मचारी, रिटायर्ड कर्मचारी, निलंबित कर्मचारी थे तो सभी के कोड अब भी सक्रिय क्यों थे. सरकार कह रही है कि यह प्रक्रिया अब सतत रूप से चलती रहेगी और जल्द ही इस शुद्ध डेटा को IFMIS NextGen में माइग्रेट किया जाएगा.

लेकिन क्या NDTV ने यह रिपोर्ट नहीं की होती, तो क्या किसी ने ध्यान दिया होता? सरकार कह रही है कि अब कोई भूत नहीं है लेकिन परछाईं अब भी सिस्टम पर मंडरा रही है. यह दोनों कहानियां एक ही व्यवस्था की खस्ताहाली का आईना हैं, जहां एक तरफ हजारों कर्मचारी रजिस्टर में मौजूद हैं लेकिन तनख्वाह नहीं ले रहे हैं, वहीं कुछ ' बग़ैर काम  सरकार के खजाने को चूना लगाते रहे. जवाबदेही नदारद है, और करदाताओं के पैसे का इस तरह इस्तेमाल — एक बेहद गंभीर सवाल खड़ा करता है.

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