वही तरीका, वही खेल, बस नाम बदला... व्यापम और नर्सिंग के बाद मध्य प्रदेश में पैरामेडिकल घोटाला

MP में व्यापम और नर्सिंग घोटाले के बाद अब पैरामेडिकल की पढ़ाई में बड़ा गड़बड़झाला सामने आया है. एनडीटीवी की ग्राउंड रिपोर्ट में खुलासा हुआ है.

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  • MP में पैरामेडिकल शिक्षा में जर्जर इमारतें और बैकडेट मान्यता से करीब 48 हजार छात्रों का भविष्य संकट में है.
  • कई कॉलेजों में क्लासरूम खाली और लैब बंद पड़े हैं जबकि छात्रों को पुराने सत्रों में दाखिला दिया जा रहा है.
  • पैरामेडिकल काउंसिल के भंग होने के बाद पुरानी काउंसिल को फिर से जीवित कर बैकडेट में मान्यता जारी की गई.
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भोपाल:

मध्यप्रदेश में चिकित्सा शिक्षा का भविष्य अब एक ऐसी 'अंधेरी सुरंग' में फंस गया है, जहां से निकलने वाला हर रास्ता भ्रष्टाचार की ओर जाता है. व्यापम की दागदार विरासत और नर्सिंग घोटाले की कड़वाहट के बाद अब पैरामेडिकल सेक्टर में मचा यह तांडव प्रदेश के माथे पर एक नया कलंक है. एनडीटीवी की ग्राउंड रिपोर्ट महज एक खुलासा नहीं, बल्कि उस 'दीमक' की पहचान है जो मध्य प्रदेश के पूरे हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर को भीतर से खोखला कर रही है.

जर्जर इमारतों, धूल फांकती खाली लैब और 'बैकडेट मान्यता' के इस तिलिस्म ने 48 हजार छात्रों के सपनों को 'डिग्री के कबाड़खाने' में तब्दील कर दिया है. यह सोचना भी भयावह है कि कल जब इन खंडहरनुमा कॉलेजों से निकले छात्र आपके हाथों में ड्रिप लगाएंगे या जांच रिपोर्ट तैयार करेंगे, तो वह इलाज होगा या सीधे तौर पर जान से खिलवाड़? यह कागजों की हेराफेरी नहीं, बल्कि प्रदेश की आने वाली पीढ़ियों के स्वास्थ्य के साथ किया गया एक 'संगठित अपराध' है, जिसने पूरी व्यवस्था की नैतिकता को वेंटिलेटर पर लाकर खड़ा कर दिया है.

NDTV की ग्राउंड रिपोर्ट में क्या खुलासा हुआ?
NDTV की ग्राउंड रिपोर्ट में यह सच सामने आया है कि कैसे दो-तीन कमरों के कॉलेज, जालों से भरी लैब और बंद पड़े क्लासरूम के भरोसे हजारों छात्रों का करियर दांव पर लगा है. सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि मध्यप्रदेश देश का शायद इकलौता ऐसा राज्य बन गया है, जहां छात्र 2025 में 12वीं पास कर रहा है लेकिन उसे बैकडेट में 2023 के सत्र में दाखिला दिया जा रहा है.

क्लासरूम वीरान हैं और लैब में जाले जमे

सबसे पहले हम पहुंचे राजधानी भोपाल के ही सनखेड़ी में स्थित आष्युमान कॉलेज. यहां की तस्वीरें हमें गवाही दे रही थीं कि यहां पढ़ाई नहीं, बल्कि भविष्य की कब्र खोदी जा रही है. बाहर 2022-23 सत्र का बोर्ड लगा है, लेकिन अंदर क्लासरूम वीरान हैं और लैब में जाले जमे हैं. यहां मौजूद एक महिला कर्मचारी खुद दबी जुबान में मानती हैं कि महीनों से कोई छात्र यहां नहीं आया. कॉलेज के चौकीदार सुरेश कहते हैं, "मैं 2-3 महीने से यहां हूं, छात्र सिर्फ परीक्षा के वक्त ही नजर आते हैं." जब हमने सुरेश से और सवाल पूछे तो उन्होंने कॉलेज के शिक्षक गोविंद से हमारी बात कराई. गोविंद ने हमें फोन पर कुछ और ही दावा किया. उनका कहना है कि कोर्स बंद है और सिर्फ फेल हुए छात्रों की परीक्षा कराई जा रही है. लेकिन सवाल यह है कि अगर छात्र 2 साल से क्लास ही नहीं आए, तो वे परीक्षा कैसे दे रहे हैं? राजधानी के श्रीराम कॉलेज, व्यक्सल इंस्टीट्यूट और व्हीआईपी पैरामेडिकल जैसे संस्थानों का भी यही हाल है, जहां ज्यादातर ने 'कोर्स बंद' होने का बोर्ड लटका दिया है.

घोटाले की जड़ें सरकारी फाइलों में दबी!

याचिकाकर्ता विशाल बघेल का खुलासा चौंकाने वाला है. दरअसल, पैरामेडिकल काउंसिल को भंग कर 'मप्र एलाइड हेल्थ काउंसिल' बनाने की तैयारी हुई थी. लेकिन भंग होने से पहले ही पुराने सत्रों के आवेदन आ चुके थे. जब सरकार को लगा कि नई काउंसिल के लिए पूरी प्रक्रिया दोबारा करनी होगी, तो आनन-फानन में पुरानी काउंसिल को दोबारा जीवित किया गया. इसी 'लीगल लूपहोल' का फायदा उठाकर कॉलेजों को बैकडेट में मान्यता जारी की गई.जिसकी वजह से आज आलम यह है कि 2025 में पासआउट छात्र का एडमिशन ईयर 2023 लिखा जा रहा है. जब हमने पूरे मसले पर उच्च शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार से बात की तो उन्होंने कहा- "सब समय पर हो जाएगा," लेकिन असलियत यह है कि सरकारी तंत्र अपनी गलतियों को सुधारने के नाम पर नई गलतियां कर रहा है.

छात्रों का दर्द: "MBBS हो जाता, पर पैरामेडिकल पूरा नहीं हो रहा"

बहरहाल हमारी टीम भोपाल से 200 किलोमीटर दूर आगर-मालवा और खंडवा के सरकारी कॉलेजों तक पहुंची. हमें वहां भी यही सन्नाटा मिला. यहां पर छात्रा मदीहा खान और हर्षिता सूर्यवंशी का कहना है कि फर्स्ट ईयर पढ़ते हुए 3 साल बीत चुके हैं. बड़वानी की दीपिका पाटीदार कहती हैं, "साढ़े 4 साल का कोर्स 8 साल में पूरा होने का डर है, घरवाले अब शादी का दबाव बना रहे हैं." खंडवा मेडिकल कॉलेज की खुशी पटेल और मरीन गिनवा का दर्द है कि 2021 में आए सीनियर्स का भी ग्रेजुएशन अब तक पूरा नहीं हुआ. सतना के विंध्य कॉलेज के चेयरमैन डॉ. पंकज सिंह परिहार खुद मानते हैं कि 3 साल का कोर्स 5 साल में खींचने से छात्र और पेरेंट्स दोनों डिप्रेशन में हैं.

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नर्सिंग घोटाला: आदिवासी अंचलों में छात्र बेहाल

जब हम आदिवासी बहुल बैतूल के विज़न कॉलेज आफ़ नर्सिंग में पहुंचे तो वहां की स्थिति ने भी हमें चौंकाया. इस कॉलेज में 300 छात्र का दाखिला दर्ज है, लेकिन मौके पर हमें सिर्फ 10 मिले. यहां भी लेट-लतीफी का आलम साफ दिखाई दिया. 2022-23 बैच की छात्रा मोनिका जाट और अर्पिता झरबड़े बताती हैं कि  थर्ड ईयर तक पहुंचने के बजाय वे अब तक फर्स्ट ईयर के नतीजों का इंतजार कर रही हैं. छात्रा स्वाति पवार और जयश्री झरबड़े का कहना है कि स्कॉलरशिप नहीं आ रही, रूम रेंट देने के पैसे नहीं हैं और भविष्य अंधेरे में है. बड़वानी के नर्सिंग कॉलेजों में भी हालत खराब है.

योगेश्वर नर्सिंग कॉलेज की प्रिंसिपल मंजू जैकब और संजीवनी कॉलेज की निदेशक डॉ. रश्मि पाटीदार बताती हैं कि जिन बच्चों को 12वीं पास करके एडमिशन लेना है उनकी अभी तक काउंसलिंग की प्रक्रिया ही चल रही है. नर्सिंग की छात्राएं रजिस्ट्रेशन होने के बावजूद निकल नहीं पा रही हैं. उनके मुताबिक सरकारी पॉलिसियों की वजह से एडमिशन और रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया इतनी लेट हो गई है कि अस्पताल और जनता दोनों को इसका भारी नुकसान होगा.

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बिना प्रैक्टिकल के सिर्फ 'कागजी डिग्री'
हालात ये हैं कि प्रदेश के 21 सरकारी नर्सिंग कॉलेजों में से केवल 8 को मान्यता मिली है और 38 प्रतिशत सीटें खाली रह गई हैं. मध्यप्रदेश के उपमुख्यमंत्री डॉ. राजेंद्र शुक्ला पैरामेडिकल काउंसिल के पदेन चेयरमैन हैं, फिर भी उनकी नाक के नीचे बैकडेट में मान्यता का खेल चल रहा है. छात्रों की सिर्फ एक मांग है- 3 साल का कोर्स 3 साल में पूरा हो, 5 या 6 साल में नहीं. असल जिंदगी में देखा जाए तो डॉक्टर दो मिनट देखकर चले जाते हैं, लेकिन मरीज की 24 घंटे देखरेख करने वाले ये छात्र आज बिना असल पढ़ाई और बिना प्रैक्टिकल के सिर्फ 'कागजी डिग्री' लेकर निकल रहे हैं. अगर इन्हें समय पर और पूरी शिक्षा के साथ तैयार नहीं किया गया, तो प्रदेश के अस्पतालों में प्रशिक्षित स्टाफ का अकाल पड़ जाएगा, जिसकी कीमत मरीजों को अपनी जान देकर चुकानी होगी.

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