कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा है कि जब किसी नियोक्ता और कर्मचारी के बीच आपसी विश्वास नहीं रहता तो कर्मी को नौकरी वापस दिलाना सही नहीं है. अदालत ने एक डिजिटल सेवा कंपनी को यह आदेश भी दिया कि कर्मचारी को 10 लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए जिसे नौकरी से निकाल दिया गया था लेकिन बहाल नहीं किया गया. अदालत ने केएसआरटीसी के एक कर्मचारी के मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले का उल्लेख करते हुए कहा कि सॉफ्टवेयर इंजीनियर और कंपनी के बीच आपसी विश्वास नहीं रहा है.
अदालत ने कहा कि यह बात साबित हो गयी है क्योंकि कर्मचारी ने प्रबंधन को एक ईमेल भेजकर यह धमकी देने की बात कबूल की है कि उसके पास आठ बम, एक बंदूक और दो तलवार हैं और उसके पिता वकील, वहीं एक रिश्तेदार विधायक हैं जिनके माध्यम से वह दूसरे कर्मचारियों को नुकसान पहुंचा सकता है. न्यायमूर्ति के एस मुद्गल की एकल पीठ ने अमेरिका में मुख्यालय वाली कंपनी की याचिका पर सुनवाई की जिसका कामकाज बेंगलुरु से भी होता है.
आशीष कुमार नाथ को 2015 में कंपनी में 24,75,000 रुपये प्रति वर्ष के पैकेज पर सीनियर क्वालिटी इंजीनियर नियुक्त किया गया था. उसे एक कार्य प्रदर्शन सुधार कार्यक्रम में शामिल होने को कहा गया, लेकिन उसने इनकार कर दिया क्योंकि उसे लगा कि यह उसे निकालने की योजना है. उसी साल उसे प्रशिक्षण कार्यक्रम में भाग नहीं लेने के कारण केवल 10 महीने की सेवा के बाद कंपनी से निकाल दिया गया. नाथ ने श्रम अदालत का रुख किया जिसने कंपनी को 2018 में उसे नौकरी पर बहाल करने का आदेश दिया और वेतन भी देने को कहा.
कंपनी ने इस फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जिसने कहा कि श्रम अदालत का निर्णय गलत था. अदालत ने कहा कि हालांकि नाथ को बिना जांच पड़ताल के नौकरी से निकाल दिया गया, इसलिए उसे मुआवजा दिया जाना चाहिए.
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