जज कैश केस: तीन जजों के पैनल ने CJI संजीव खन्ना को सौंपी रिपोर्ट, उठाए गए कई सवाल

CJI खन्ना ने जस्टिस वर्मा को जांच रिपोर्ट भेजकर उनसे जवाब मांगा था और सुझाव दिया था कि उन्हें जज का पद छोड़ देना चाहिए. जस्टिस वर्मा ने पद छोड़ने से इनकार कर दिया, जिसके कारण सीजेआई को जस्टिस वर्मा के जवाब के साथ जांच रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजने के लिए मजबूर होना पड़ा, ताकि उनके खिलाफ निष्कासन प्रस्ताव की औपचारिक शुरुआत की जा सके.

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जस्टिस यशवंत वर्मा के घर कैश मिलने के मामले में CJI संजीव खन्ना को सौंपी रिपोर्ट में कई सवाल उठाए गए हैं.  जज के निजी स्टाफ पर संदेह जताया गया है. रिपोर्ट में कहा गया कि बिना जले और अधजले कैश का किसने गायब किया, ये जांच का विषय है.

दरअसल पंजाब और हरियाणा के मुख्य न्यायाधीश शील नागु, हिमाचल प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश  जी एस संधावालिया और कर्नाटक हाईकोर्ट की जस्टिस अनु शिवरामन के जांच पैनल ने 14 मार्च को दिल्ली हाईकोर्ट के तत्कालीन जज वर्मा के आधिकारिक आवास तुगलक क्रिसेंट बंगले में लगी आग की घटना के बारे में जज के निजी सचिव और स्टाफ, उनके आवास पर तैनात सुरक्षा कर्मियों और अग्निशमन और पुलिस कर्मियों के बयान दर्ज किए थे.

घटना की सूचना देने वाले पहले कर्मियों में से हर एक ने एकमत होकर कहा है कि उन्होंने जज के आवासीय परिसर में स्टोररूम में लगी आग की लपटों से कैश और जली हुई बोरियों का वीडियो बनाया. बिना जली या बिना जली हुई नकदी जब्त किए वहां से चले गए.

दिल्ली पुलिस आयुक्त द्वारा 15 मार्च को शाम 4.50 बजे घटना की जानकारी दिए जाने पर दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डी के उपाध्याय ने अपने रजिस्ट्रार-सह-सचिव को जस्टिस वर्मा के आवास पर जाकर आग लगने वाली जगह का निरीक्षण करने का निर्देश दिया था.

आवास पर पहुंचने पर जस्टिस वर्मा के निजी सचिव उन्हें जस्टिस वर्मा के पास ले गए. जस्टिस वर्मा मुख्य न्यायाधीश के सचिव को उस कमरे में ले गए, जो जस्टिस वर्मा के आधिकारिक आवास से सटा हुआ था. उन्होंने पाया कि कमरे में जले हुए सामान/मलबा तो था, लेकिन वहां जली हुई या बिना जली हुई नकदी का कोई निशान नहीं था.

जांच पैनल ने रिपोर्ट में कहा है  कि पुलिस ने अग्निशमन सेवा को सूचित किया, जिसे 14 मार्च को रात 11.35 बजे न्यायाधीश के आवास पर आग लगने की घटना के बारे में पहली कॉल मिली थी. वे रात 11.43 बजे मौके पर पहुंचे, आग बुझाई और 15 मार्च को सुबह 1.56 बजे घटनास्थल से चले गए.

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पैनल ने यह भी पाया कि इसके तुरंत बाद घटना का वीडियोग्राफी करने वाले पुलिसकर्मी भी कमरे में नकदी छोड़कर घर से चले गए. जज के आवास पर तैनात सुरक्षा कर्मियों ने पैनल को बताया कि जस्टिस वर्मा के निजी सचिव और निजी कर्मचारी वहीं रुके थे.

पैनल ने कहा है कि प्रथम दृष्टया यह राय है कि 15 मार्च की सुबह तक कमरे से नकदी गायब हो गई थी और आग लगने की जगह से सभी जले और बिना जले नोट हटा दिए गए थे जो जज के निजी सचिव और निजी कर्मचारियों की जानकारी और भागीदारी के बिना नहीं किया जा सकता था . हालांकि, पैनल ने कहा कि गवाहों को बुलाने और उनके बयान दर्ज करने के लिए औपचारिक जांच की आवश्यकता होगी, जो अनौपचारिक जांच पैनल द्वारा नहीं किया जा सकता क्योंकि इसे आपराधिक प्रक्रिया संहिता के अनुसार जांच करने के अधिकार नहीं दिए गए हैं.

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यह देखा जाना है कि दिल्ली हाईकोर्ट जांच पैनल के प्रथम दृष्टया निष्कर्षों के आधार पर जस्टिस वर्मा के निजी सचिव के खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्यवाही शुरू करता है या नहीं. CJI खन्ना ने जस्टिस वर्मा को जांच रिपोर्ट भेजकर उनसे जवाब मांगा था और सुझाव दिया था कि उन्हें जज का पद छोड़ देना चाहिए. जस्टिस वर्मा ने पद छोड़ने से इनकार कर दिया, जिसके कारण सीजेआई को जस्टिस वर्मा के जवाब के साथ जांच रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजने के लिए मजबूर होना पड़ा, ताकि उनके खिलाफ निष्कासन प्रस्ताव की औपचारिक शुरुआत की जा सके. जांच पैनल के गठन के तुरंत बाद जस्टिस वर्मा को दिल्ली हाईकोर्ट से उनके मूल हाईकोर्ट इलाहाबाद हाईकोर्ट में वापस भेज दिया गया और उनसे न्यायिक कार्य छीन लिए गए.

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