झारखंड हाईकोर्ट से 10 दोषी पहुंचे सुप्रीम कोर्ट, याचिका पर नोटिस जारी

दोषियों ने रांची स्थित झारखंड उच्च न्यायालय में अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए आपराधिक अपील दायर की थी. 2022-23 में फ़ैसले सुरक्षित रखे गए थे, लेकिन आज तक उच्च न्यायालय ने फ़ैसले नहीं सुनाए हैं.

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  • झारखंड हाईकोर्ट ने आपराधिक अपीलों पर फैसला सुरक्षित रखने के बावजूद दो से तीन साल तक फैसला नहीं सुनाया, जिससे सुप्रीम कोर्ट में शिकायत पहुंची.
  • दोषी जिनमें से अधिकांश को मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा मिली है, उनकी अपीलें 2018-19 से झारखंड हाईकोर्ट में लंबित हैं.
  • याचिकाकर्ताओं का कहना है कि फैसले न सुनाए जाने से उनके संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन हुआ है.
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झारखंड हाईकोर्ट की शिकायत सुप्रीम कोर्ट पहुंची है. झारखंड हाईकोर्ट के फैसला सुरक्षित रखने के बावजूद सालों तक फैसला ना सुनाने की शिकायत सुप्रीम कोर्ट तक पहुंची है. सुप्रीम कोर्ट मामले का परीक्षण करने को तैयार हो गया है. दोषियों की याचिका पर नोटिस जारी किया गया है. याचिका में आरोप लगाया गया है कि उनकी आपराधिक अपीलों पर फैसला सुरक्षित होने के बावजूद, झारखंड हाईकोर्ट ने 2-3 साल बीत जाने के बावजूद फैसला नहीं सुनाया है. 

ये दोषी मृत्युदंड या कठोर आजीवन कारावास की सजा का सामना कर रहे हैं. 10 में से छह को मृत्युदंड की सजा सुनाई गई थी. उनकी अपीलें 2018-19 से उच्च न्यायालय में लंबित हैं. एक दोषी 16 साल से अधिक समय से जेल में है, जबकि अन्य ने भी 6 से 16+ साल की वास्तविक हिरासत अवधि काटी है. 

सभी मामलों में एक ही जज

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने वकील फौजिया शकील की सुनवाई के बाद यह आदेश पारित किया. पीठ ने सजा निलंबन के लिए दोषियों की याचिकाओं पर भी नोटिस जारी किया. खास बात यह है कि पीठ ने पाया कि सभी 10 सुरक्षित मामलों में, उच्च न्यायालय के एक ही जज रहे. याचिका  के अनुसार, 10 में से 9 दोषी बिरसा मुंडा केंद्रीय कारागार, होटवार, रांची में बंद हैं. 10वां दोषी दुमका केंद्रीय कारागार में बंद था, लेकिन अपील लंबित रहने के दौरान उसकी ज़मानत याचिका उच्च न्यायालय द्वारा स्वीकार किए जाने के बाद उसे इस साल मई में रिहा कर दिया गया.

याचिकाकर्ताओं की दलील

दोषियों ने रांची स्थित झारखंड उच्च न्यायालय में अपनी दोषसिद्धि को चुनौती देते हुए आपराधिक अपील दायर की थी. 2022-23 में फ़ैसले सुरक्षित रखे गए थे, लेकिन आज तक उच्च न्यायालय ने फ़ैसले नहीं सुनाए हैं. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि फ़ैसले न सुनाए जाने से संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत उनके जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन होता है, जिसका एक पहलू 'शीघ्र सुनवाई का अधिकार' है.

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