किसी व्यक्ति द्वारा पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना या देखना पॉक्सो (POCSO) और आईटी (IT) अधिनियम के तहत अपराध नहीं है. मद्रास हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ दाखिल अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस (CJI) की अध्यक्षता वाली बेंच ने मामले पर सुनवाई के दौरान टिप्पणी की कि, बच्चे का पोर्न देखना अपराध नहीं हो सकता है लेकिन बच्चे का पोर्नोग्राफी में इस्तेमाल किया जाना अपराध होगा.
सीजेआई ने कहा कि किसी से वीडियो का मिलना POSCO धारा 15 का उल्लंघन नहीं है लेकिन अगर आप इसे देखते हैं और दूसरों को भेजते हैं तो यह कानून के उल्लंघन के दायरे में आएगा. सीजेआई ने कहा कि सिर्फ इसलिए वह अपराधी नहीं हो जाता कि उसे वीडियो किसी ने भेज दिया है.
सीजेआई ने कहा पोर्नोग्राफी देखना अपराध नहीं हो सकता है, लेकिन मद्रास हाईकोर्ट ने कहा है कि चाइल्ड पोर्नोग्राफी देखना भी अपराध नहीं है. बच्चों का पोर्न देखना भले ही कोई अपराध न हो, लेकिन बच्चे का पोर्नोग्राफी में इस्तेमाल किया जाना अपराध होगा.
सीजेआई ने कहा कि किसी के द्वारा व्हाट्सऐप पर चाइल्ड पोर्न को रिसीव करना अपराध नहीं है. जस्टिस पारदीवाला ने पूछा कि क्या वीडियो को दो साल तक अपने मोबाइल फोन में रखना अपराध है?
वरिष्ठ वकील एचएस फुल्का ने कहा कि लेकिन अधिनियम कहता है कि यदि कोई वीडियो या फोटो है तो आपको उसे हटाना होगा. जबकि आरोपी लगातार वीडियो देख रहे थे.
जब आरोपी के वकील ने वीडियो के ऑटो डाउनलोड होने की दलील दी तो सीजेआई ने कहा कि आपको कैसे पता नहीं चलेगा कि यह वीडियो आपके फोन में है. आपको पता होना चाहिए कि अधिनियम में संशोधन के बाद यह भी अपराध हो गया है.
वहीं जस्टिस पारदीवाला ने सुनवाई के दौरान पूछा कि क्या इस मामले मे आरोपी ने साइट पर वीडियो अपलोड किया था या उन्हें किसी तीसरे पक्ष ने वीडियो मुहैया कराया था? उन्होंने पूछा कि अगर उन्हें यह वीडियो अपने दोस्त से मिला है तो क्या हम कह सकते हैं कि उसने वीडियो अपलोड किया है?
सवाल यह है कि क्या किसी के द्वारा भेजे गए चाइल्ड पोर्न को डाउनलोड करना POCSO के तहत अपराध है?
कोर्ट ने इस मामले में हस्तक्षेप याचिका दाखिल करने वाले NCPCR को मामले में अपना लिखित जवाब 22 अप्रैल तक दाखिल करने को कहा.
दरअसल मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था कि केवल किसी के व्यक्तिगत इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस पर बाल पोर्नोग्राफी डाउनलोड करना या उसे देखना कोई अपराध नहीं है. यह POCSO अधिनियम और आईटी अधिनियम के तहत अपराध की श्रेणी में नहीं आता. मद्रास हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ NGO जस्ट राइट फॉर चिल्ड्रन एलायंस ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है.