क्या बार-बार चक्रवाती तूफान आने की वजह क्लाइमेट चेंज है?

Cyclone Mocha: अरब सागर में 1990 के बाद 165 किलोमीटर प्रति घंटे तक की तीव्रता वाले अत्यंत प्रचंड चक्रवाती तूफानों की संख्या में बढ़ोतरी हुई

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साइक्लॉन मोचा 14 मई को बांग्लादेश और म्यांमार के तटों से टकराएगा.
नई दिल्ली:

साइक्लॉन मोचा (Cyclone Mocha) एक "अत्यंत प्रचंड चक्रवाती तूफान" में परिवर्तित होने के बाद जब 14 मई को बांग्लादेश के कॉक्स बाजार और म्यांमार के क्यौकप्यू के बीच दक्षिण-पूर्व बांग्लादेश और उत्तरी म्यांमार के तटों से टकराएगा तो समुद्री हवाओं की रफ़्तार 110 से 120 किलोमीटर प्रति घंटे से लेकर 130 किलोमीटर प्रति घंटे तक बढ़ने की संभावना है. Cyclone Mocha ने एक बार फिर प्राकृतिक आपदा से बढ़ते खतरे पर एक बड़ी बहस छेड़ दी है कि क्या इसकी वजह क्लाइमेट चेंज है?  

बंगाल की खाड़ी के मध्य में उठा Cyclone Mocha शुक्रवार को "अत्यंत प्रचंड चक्रवाती तूफान" का रूप ले लेगा. भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक सीजन का पहला चक्रवाती तूफ़ान रविवार को जब बांग्लादेश के कॉक्स बाजार और म्यांमार के क्यौकप्यू के बीच तटों से टकराएगा तो समुद्री हवा की रफ़्तार 130 किलोमीटर प्रति घंटे तक बढ़ने की आशंका है.

देश में चरम मौसम (extreme weather) की घटनाओं को लेकर बढ़ती चिंता के बीच मौसम विभाग के डायरेक्टर जनरल ने बुधवार को एनडीटीवी से कहा - अरब सागर में 1990 के बाद 165 किलोमीटर प्रति घंटे तक की तीव्रता वाले चरम चक्रवाती तूफान या "अत्यंत प्रचंड चक्रवाती तूफान" की संख्या में बढ़ोतरी हुई है...हालांकि बंगाल की खाड़ी में ऐसा कोई ट्रेंड रिकॉर्ड नहीं किया गया है.

मौसम विभाग के डायरेक्टर जनरल डॉ एम महापात्रा ने NDTV से कहा, "मैंने विश्व मौसम विज्ञान संगठन (World Meteorological Organisation- UN) के वैज्ञानिकों के साथ ग्लोबल स्टडी की है. हमने यह पाया कि हमारा हाई कॉन्फिडेंस नहीं है यह बोलने के लिए कि अधिक तीव्रता वाले साइक्लॉन की संख्या में बढ़ोतरी क्लाइमेट चेंज की वजह से है. लेकिन कुछ कॉन्फिडेंस है. हमने अपने बयान में कहा - इस बात का कम विश्वास है कि जलवायु परिवर्तन के कारण अरब सागर के ऊपर उच्च तीव्रता वाले चक्रवातों की आवृत्ति बढ़ रही है."

औसतन हर साल बंगाल की खाड़ी और अरब सागर में औसतन पांच साइक्लॉन रिकॉर्ड किए जाते हैं.
एक साल ऐसा रहा जब 10 साइक्लॉन दर्ज किए गए, जबकि एक साल ऐसा भी गया जब सिर्फ एक साइक्लॉन रिकॉर्ड हुआ. मौसम विभाग के वैज्ञानिक इसे इंटर-एनुअल वेरिएशन मानते हैं.  

उधर इस बढ़ती चिंता के बीच रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया ने अपनी रिपोर्ट ऑन करेंसी एंड फाइनेंस में कहा है कि भारत में जलवायु परिवर्तन को अपनाने के लिए साल 2030 तक कुल अनुमानित 85.6 लाख करोड़ रुपये की ज़रूरत होगी.  

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मौसम विभाग के पूर्व डीजी केजे रमेश ने NDTV से कहा, "यह बेहद महत्वपूर्ण है कि क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिए भारत ने जो फंड्स और टारगेट निर्धारित किए हैं उन्हें सही तरीके से इम्प्लीमेंट किया जाए." जाहिर है, जलवायु परिवर्तन के असर से निपटने की चुनौती बहुत बड़ी है.

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