ब्रिटेन की जगह भारत को मिलनी चाहिए सीट : संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधारों पर बोले सिंगापुर के पूर्व राजनयिक

प्रोफेसर किशोर महबुबानी ने कहा कि ब्रिटेन ने प्रतिक्रिया के डर से दशकों से अपनी वीटो पावर का उपयोग नहीं किया है. इसलिए ब्रिटेन के लिए तार्किक बात ये है कि वो अपनी सीट भारत के लिए छोड़ दे.

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नई दिल्ली:

सिंगापुर के पूर्व राजनयिक प्रोफेसर किशोर महबुबानी ने भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता दिए जाने की वकालत की है. उन्होंने कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में तत्काल सुधार की जरूरत है. साथ ही भारत को संयुक्त राष्ट्र के शीर्ष निकाय के स्थायी सदस्य के रूप में अपना उचित स्थान मिलना चाहिए.

एनडीटीवी की सोनिया सिंह को दिए एक विशेष इंटरव्यू में महबुबानी ने संयुक्त राष्ट्र में बहुत जरूरी सुधारों के बारे में बात की और कहा कि उनका मानना ​​है कि यूनाइटेड किंगडम को भारत के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में अपनी स्थायी सीट छोड़ देनी चाहिए.

प्रोफेसर किशोर महबुबानी ने कहा, "इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारत आज संयुक्त राज्य अमेरिका और चीन के बाद दुनिया का तीसरा सबसे शक्तिशाली देश है और ग्रेट ब्रिटेन अब 'महान' नहीं है."

ब्रिटेन को छोड़ देनी चाहिए अपनी सीट - पूर्व राजनयिक

प्रोफेसर किशोर महबुबानी ने तर्क दिया कि ब्रिटेन को अपनी सीट क्यों छोड़नी चाहिए. उन्होंने कहा कि ब्रिटेन ने प्रतिक्रिया के डर से दशकों से अपनी वीटो पावर का उपयोग नहीं किया है. उन्होंने कहा, "इसलिए ब्रिटेन के लिए तार्किक बात ये है कि वो अपनी सीट भारत के लिए छोड़ दे."

संयुक्त राष्ट्र सुधारों पर बोलते हुए सिंगापुर के पूर्व राजनयिक ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र के संस्थापकों ने ये सुनिश्चित किया कि संगठन को कार्यान्वित करने के लिए उस समय की सभी महान शक्तियों के इसमें निहित स्वार्थ हों.

पूर्व राजनयिक ने कहा, "20वीं सदी की शुरुआत में राष्ट्र संघ के पतन से (संयुक्त राष्ट्र के संस्थापकों) ने जो सबक सीखा, वो ये है कि यदि कोई महान शक्ति चली जाती है, तो संगठन ध्वस्त हो जाता है."

महबुबानी ने कहा, "लेकिन उनका ये भी मानना ​​था कि आपके पास आज की महान शक्तियां होनी चाहिए, कल की महान शक्तियां नहीं. दुर्भाग्य से, उन्होंने सीटें बदलने के लिए कोई तंत्र नहीं बनाया."

उन्होंने कहा, "यूके द्वारा अपनी सीट छोड़ने का एक और कारण ये भी है कि इससे उन्हें स्वतंत्र रूप से काम करने की आजादी मिलेगी."

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