देश में इस बार सामान्य मानसून रहने के आसार, अल नीनो का भी दिख सकता है असर

भारतीय मौसम विभाग की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सोमा सेनरॉय ने एनडीटीवी से कहा, "हमारा पूर्वानुमान है कि अल नीनो रहेगा और हिंद महासागर डिपोल पॉजिटिव रहेगा. यूरेशियन बर्फ की चादर भी हमारे लिए फेवरेबल है. अल नीनो का असर तो जरूर दिखेगा. लेकिन मेरा कहना है सिर्फ एक फैक्टर से मॉनसून प्रभावित नहीं होता है.

Advertisement
Read Time: 11 mins

प्रतीकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली: देश में इस साल मानसून सामान्य रहने का अनुमान है. लेकिन कुछ असर अल नीनो का भी दिख सकता है. हालांकि, अल नीनो का बहुत सख़्त असर पड़ेगा, इसका अंदेशा नहीं है. उपग्रह से आ रही तस्वीरों पर मौसम विज्ञानियों की नज़र है. इस साल जुलाई-अगस्त में अल नीनो की मौजूदगी रह सकती है.

अमूमन अल नीनो की वजह से समुद्र की सतह बेहद गर्म हो जाती है और मॉनसून की दिशा और दशा पर इसका ख़ासा असर पड़ता है. लेकिन भारतीय मौसम विभाग को उम्मीद है कि इस साल अल नीनो उतना सख़्त नहीं होगा. वैसे भी भारतीय मानसून कई वजहों से प्रभावित होता है, अल नीनो से उसका सीधा संबंध नहीं है.

Advertisement

भारतीय मौसम विभाग की वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. सोमा सेनरॉय ने एनडीटीवी से कहा, "हमारा पूर्वानुमान है कि अल नीनो रहेगा और हिंद महासागर डिपोल पॉजिटिव रहेगा. यूरेशियन बर्फ की चादर भी हमारे लिए फेवरेबल है. अल नीनो का असर तो जरूर दिखेगा. लेकिन मेरा कहना है सिर्फ एक फैक्टर से मॉनसून प्रभावित नहीं होता है. हमारे मॉनसून पर दो-तीन वैश्विक कारक है, जो मॉनसून पर असर डालते हैं. उसमें अल नीनो फेवरेबल नहीं है मगर इंडियन महासागर द्विध्रुवीय फेवरेबल है. इन सबको फैक्टर करके हमने कहा है कि मॉनसून नॉर्मल रहने की संभावना है".

मौसम विभाग के मुताबिक पिछले 16 मॉनसून सीजन में जब अल नीनो रहा है, उसमें यह देखा गया है कि 9 बार मॉनसून औसत से कमज़ोर रहा है और बाकी 7 बार मॉनसून नार्मल रहा है. एनडीटीवी से एक्सक्लूसिव बातचीत में पृत्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव डॉ. एम रविचंद्रन ने कहा, "वो सामान्य मॉनसून की उम्मीद कर रहे हैं. अल नीनो एकमात्र कारक नहीं है जो वैश्विक पवन पैटर्न को प्रभावित करता है. अटलांटिक नीनो, हिंद महासागर डिपोल और यूरेशियन स्नो कवर आदि जैसे अन्य कारक भी हैं जो मानसून को प्रभावित कर सकते हैं."

Science journal में छपे एक नए शोध में दावा किया गया है कि अल नीनो की वजह से 1982-83 और 1997-98 में ग्लोबल इनकम में $4.1 ट्रिलियन और $5.7 ट्रिलियन तक का नुकसान हुआ था. शोध में दावा किया गया है कि 21वीं सदी के अंत तक वैश्विक स्तर पर आर्थिक नुकसान $84 ट्रिलियन डॉलर तक हो सकता है.

ये भी पढ़ें:-

INS Vikrant पर पहली बार तेजस की सफल लैंडिंग, भारत के लिए बड़ी कामयाबी

INS विक्रांत पर लैंड करते हुए LCA तेजस की गति सिर्फ 2.5 सेकंड में कैसे हुई 240 kmph से 0 kmph

Advertisement

INS Vikrant ने विदेश के पहले पीएम-ऑस्‍ट्रेलिया के एंथोनी अल्‍बनीज का किया स्‍वागत

Topics mentioned in this article