अफगानिस्‍तान के मसले पर भारत ने अगले माह बुलाई क्षेत्रीय देशों के NSA की बैठक : वेंकटेश वर्मा

राजदूत वेंकटेश वर्मा ने कहा कि भारत और रूस के रिश्ते अपनी ही तरह के हैं और किसी भी तीसरे देश के दबाव के परे हैं.

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वेंकटेश वर्मा ने कहा, भारत और रूस दोनों को अफगानिस्तान के हालात से एक जैसी ही समस्याएं हैं
नई दिल्‍ली:

रूस में भारत के राजदूत डीबी वेंकटेश वर्मा (D Bala Venkatesh Varma)ने वहां के कॉमरसांट (Kommersant) अखबार को एक इंटरव्यू दिया है, इसमें उन्होंने इस बात की पुष्टि की है कि भारत नवंबर में अफगानिस्तान के मसले पर क्षेत्रीय देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की बैठक बुला रहा है.  सूत्रों के मुताबिक इसमें पाकिस्तान के एनएसए को भी न्यौता है.अफगानिस्तान पर एक सवाल के जवाब में भारत के राजदूत ने कहा कि भारत न तो दोहा बातचीत का और न ही ट्रॉइका प्लस बातचीत का हिस्सा था. उनसे जो उम्मीद थी, वैसा हुआ नहीं. हालांकि इस मामले में भारत और रूस का लक्ष्य एक ही है.दोनों को अफगानिस्तान के हालात से एक जैसी ही समस्याएं हैं- अस्थिरता, ड्रग ट्रैफिकिंग, आतंकवाद जो सेंट्रल एशिया की तरफ से भी फैल सकता है. इस पूरे मुद्दे पर राष्ट्रपति पुतिन और प्रधानमंत्री मोदी के बीच भी बातचीत हुई जिसके बाद रूस की सिक्युरिटी काउंसिल के सचिव ने भारत दौरा किया और राष्‍ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA)एनएसए अजित डोवल से इस पर विस्तार से चर्चा की. ये चर्चा इसलिए ही हुई कि दोनों पक्ष समझते हैं कि अफगानिस्तान से उपजने वाले खतरे दोनों देशों के लिए समान हैं, दूसरे देशों से शायद कहीं ज्यादा.

उन्‍होंने कहा कि पिछले कुछ महीनों में हमने देखा है कि अफगानिस्तान की कहानी टूटे वादों की कहानी है. तालिबान अपने वादों पर किस हद तक कार्रवाई करेगा, यह देखने के लिए हम इंतज़ार कर रहे हैं. क्या अमेरिका से भारत के मज़बूत रिश्ते रूस से उसके रिश्ते पर असर डालते हैं, इस सवाल पर राजदूत वर्माने कहा कि भारत और रूस के रिश्ते अपनी ही तरह के हैं और किसी भी तीसरे देश के दबाव के परे हैं. भारत इतना बड़ा देश है कि उसके एक या दूसरी तरफ झुकने का सवाल नहीं. वो अपने हितों के लिए काम करता है. दोनों देश बहुध्रुवीय नीति को मानने वाले हैं. जैसे रूस से रणनीतिक रिश्ते हैं वैसे ही अमेरिका से भी हैं और इसमें कोई विराधाभास नहीं. एक अन्‍य सवाल पर उन्‍होंने कहा कि क्वाड में कुछ विशेष वैश्विक मुद्दों पर सहयोग है जैसे- कोरोना महामारी, नया इंफ्रास्ट्रकचर, नई तकनीक, जलवायु परिवर्तन और युवाओं के बीच सहयोग. इस सबसे ये नहीं लगता कि ये एक गठजोड़ या उसके जैसा कुछ है. भारत ऐसा नहीं समझता..और उसने हमेशा स्वतंत्र तौर पर काम किया है और करता रहेगा.

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