वाराणसी में बीजेपी ने पुराने चेहरों पर जताया भरोसा, विपक्ष बोला- इनके पास अच्छे और मजबूत उम्मीदवार नहीं

बीजेपी ने अपने 6 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं जबकि कांग्रेस ने अभी सिर्फ एक सीट पिंडरा में अजय राय को उम्मीदवार बनाया है. अजय राय अपने विधानसभा में प्रचार भी कर रहे हैं.

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2017 के चुनाव में बनारस की 8 सीटें बीजेपी और उसके गठबंधन वाले दलों के पास थीं
वाराणसी:

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सातवें चरण में चुनाव है. बीजेपी ने बनारस की 8 सीटों में से 6 सीटों पर अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए हैं. जिनमें नए चेहरे नहीं, बल्कि पुराने चेहरों पर ही भरोसा जताया गया है और पार्टी ने अपने पुराने विधायकों को ही फिर से टिकट दिया है. अभी कांग्रेस ने एक सीट और समाजवादी सुभाषसपा गठबंधन ने एक सीट पर अपने प्रत्याशी घोषित किए हैं, बाकी पर अभी प्रत्याशियों की घोषणा होनी बाकि है. लेकिन बीजेपी के उन्हीं चेहरों को फिर से मैदान में उतारने को लेकर राजनीति दिलचस्प हो गई है. 

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बीजेपी कार्यकर्ता डॉ अरुण चौबे ने बताया कि कार्यकर्ताओं में उमंग है, उत्साह है और जोश की लहर है. क्योंकि कार्यकर्ता को टिकट भारतीय जनता पार्टी ने दिया है. यह भारतीय जनता पार्टी का अपने कार्यकर्ताओं पर विश्वास है. उनका विश्वास है कि हमारे कार्यकर्ता जहां रहेंगे, जिस क्षेत्र में रहेंगे, कार्य करेंगे. उसको जो प्रतिनिधित्व मिलेगा, उस क्षेत्र का विकास अभूतपूर्व होगा. इसलिए बीजेपी ने अपने कार्यकर्ताओं को दोबारा टिकट दिया है. पिछले बार की तुलना में ज्यादा मतों से चुनाव जीतेंगे.

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बीजेपी ने अपने 6 सीटों पर उम्मीदवार घोषित किए हैं जबकि कांग्रेस ने अभी सिर्फ एक सीट पिंडरा में अजय राय को उम्मीदवार बनाया है. अजय राय अपने विधानसभा में प्रचार भी कर रहे हैं. वह 2017 में  हार गए थे, लेकिन इस सीट पर वह 2012 में कांग्रेस से जीते थे जबकि उससे पहले 3 बार बीजेपी और 1 बार निर्दल प्रत्याशी के रूप में जीत दर्ज कर चुके हैं. इस दफे वह न सिर्फ अपनी सीट बल्कि बनारस की दूसरी सीटों पर भी कांग्रेस के जीत की बात कह रहे हैं.

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पिंडारा से कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय ने बताया कि पूरी तरीके से भारतीय जनता पार्टी ने जो पुराने लोगों पर दांव लगाया है, उस में कहीं भी इनके पास अच्छे और मजबूत केंडिडेट नहीं थे, जो जनता के बीच में उनकी सेवा कर पाए. इसलिए मजबूरी है जो पुराने घिसे पीटे चेहरे थे, उन्हीं को अपनी जगह पर लाकर लड़ाया. चाहे बनारस में नीलकंठ तिवारी हो, सौरभ श्रीवास्तव, प्रवीण जयसवाल हो, यह लोग अपने इलाके में जाएंगे तो जनता इनसे हिसाब मांगेगी कि आपने क्या काम किया. कितने बेरोजगारों को नौकरी दीं, कितने लोगों को अपने घरों में मदद की. इनके पास जवाब नहीं है. उन्हें अपने क्षेत्र से भागना पड़ेगा. गांव में यह अपने लोगों को जवाब नहीं दे पाएंगे. यह अपने वर्कर को जवाब नहीं दे पाएंगे, बाकी जनता की तो बात छोड़ दीजिए. जनता को जवाब नहीं दे पाएंगे.

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बती दें कि 2017 के चुनाव में बनारस की 8 सीटें बीजेपी और उसके गठबंधन वाले दलों के पास थीं. जिनमें रोहनिया अपना दल के पास और अजगरा सुभासपा के पास थी. इस बार सुभासपा का गठबंधन समाजवादी पार्टी से है और उसने अपना एक प्रत्याशी शिवपुर में घोषित कर दिया है. भाजपा ने भी अभी रोहनिया और सेवापुरी की सीट घोषित नहीं की है, पिछले दिनों यह कयास लगाए जा रहे थे कि बीजेपी शहर की भी कई सीटों पर बदलाव कर सकती है, लेकिन ऐसा नहीं किया गया, जिसको चुनाव विश्लेषक अपने मायने बता रहे हैं.

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वरिष्ठ पत्रकार और चुनाव विश्लेषक का कहना है कि पहले मीडिया रिपोर्ट और अलग-अलग जगह यह सारी बातें सामने आ रही थीं कि कम से कम 30 से 40 फ़ीसदी टिकटों का बदलाव होगा. बीजेपी ने अपनी तरफ से हर विधानसभा का सर्वे कराया था. बनारस को लेकर ढ़ेर सारी अटकलबाजी थीं कि कई सीटों पर बदलाव हो सकता है. लेकिन जब नहीं हुआ तो यह भी चौंकाने वाला मामला था. अब यह लगता है कि कहीं ना कहीं यह स्वामी फैक्टर का दबाव है. जिसने बीजेपी को इस तरह के बहुत ज्यादा बदलाव करने से रोका है और फिर पुराने चेहरों पर ही बीजेपी ने अपना विश्वास जताया है.

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