मुंबई लोकल ट्रेन धमाके मामले में सुप्रीम कोर्ट पहुंची महाराष्ट्र सरकार, 24 जुलाई को होगी सुनवाई

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में सुनवाई होगी. अपनी याचिका में महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए हैं. SG तुषार मेहता की अगुवाई में दाखिल याचिका में कहा है कि हाईकोर्ट ने अभियुक्त संख्या 1 से 500 ग्राम RDX की बरामदगी पर इस अति तकनीकी आधार पर अविश्वास जताया है कि जब्त किया गया RDX Lac की सील से सील नहीं किया गया था.

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  • बॉम्बे HC ने मुंबई ट्रेन धमाके मामले में 12 आरोपियों को बरी कर दिया, जिसे महाराष्ट्र सरकार ने SC में चुनौती दी
  • HC ने अभियुक्त संख्या 1 से जब्त किए RDX की जांच में तकनीकी त्रुटि का हवाला देते हुए सबूतों पर अविश्वास जताया
  • अभियुक्त संख्या पांच के इकबालिया बयान को हाईकोर्ट ने बारीक जानकारी न देने के कारण अविश्वास योग्य माना
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नई दिल्ली:

11 जुलाई 2006 मुंबई लोकल ट्रेनों में धमाकों का मामले में बॉम्बे हाईकोर्ट के 12 आरोपियों को बरी करने के फैसले पर सिलसिलेवार सवाल उठाए हैं. RDX और डिटेनोटर की बरामदगी पर अहम सबूतों पर भरोसा ना जताने को त्रुटि बताया गया है. आरोपी के इकबालिया बयानों और UAPA व मकोका प्रावधानों पर भी गौर ना करने की दलील दी है.

गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में सुनवाई होगी. अपनी याचिका में महाराष्ट्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए हैं. SG तुषार मेहता की अगुवाई में दाखिल याचिका में कहा है कि हाईकोर्ट ने अभियुक्त संख्या 1 से 500 ग्राम RDX की बरामदगी पर इस अति तकनीकी आधार पर अविश्वास जताया है कि जब्त किया गया RDX Lac की सील से सील नहीं किया गया था.

यह ध्यान देने योग्य है कि इसे लाख की सील से सील नहीं किया गया था क्योंकि RDX एक ज्वलनशील पदार्थ है. हाईकोर्ट ने दर्ज किया है कि विस्फोटक पदार्थों के लिए मंजूरी देने वाले प्राधिकारी की अभियोजन पक्ष द्वारा जांच की गई. हालांकि,  हाईकोर्ट ने अभियुक्त संख्या 1 से RDX  की जब्ती के लिए विस्फोटक पदार्थ अधिनियम के तहत मंजूरी देने वाला प्राधिकारी के साक्ष्य में कोई कमी नहीं पाई है. इसलिए, हाईकोर्ट ने अभियुक्त संख्या 1 से RDX की बरामदगी पर अविश्वास करने में गलती की है.

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पांचवे अभियुक्त के इकबालिया बयान पर हाईकोर्ट ने अविश्वास करने के लिए एक बहुत ही अजीबोगरीब टिप्पणी दर्ज की है. हाईकोर्ट ने पाया कि अभियुक्त ने पाकिस्तानियों के भारत आगमन की तारीख जैसी बारीक जानकारी नहीं दी है और वह 6 पाकिस्तानियों के विवरण और उनकी जानकारी, जैसे कि वे पाकिस्तान में कहां के हैं और क्या उन्होंने आतंकवादी शिविरों में प्रशिक्षण लिया था, के बारे में भी चुप है. इसलिए, पूरे इकबालिया बयान पर विश्वास नहीं किया गया है, जो एक अस्वीकार्य निष्कर्ष है.

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हाईकोर्ट ने अभियुक्त नंबर 13 के घर से मिले दानों और डेटोनेटरों की बरामदगी को नज़रअंदाज़ नहीं किया है.. इसके अलावा, इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि अभियुक्त सं. 13 के घर से रेक्सिन बैग जब्त करने पर उसमें काले तेल के नमूने थे (FSL रिपोर्ट) 
हालाँकि,  हाईकोर्ट ने अभियुक्त सं. 13 के कहने पर उसके घर से हुई पूरी बरामदगी को ग़लती से सिर्फ़ इसलिए खारिज कर दिया क्योंकि वह लाख की सील के नीचे ज़ब्त नहीं किया गया था.

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इस बात पर कोई विवाद नहीं हो सकता कि उपरोक्त वस्तुएं खुले बाज़ार में नहीं मिल सकतीं. इस प्रकार, हाईकोर्ट ने अभियुक्त संख्या 13 से बरामद किए गए दानों और डेटोनेटरों को खारिज करने के निष्कर्ष पर पहुंचने में त्रुटि की है. अभियुक्तों पर UAPA की धारा 13(1), 16, 19 और 20 के तहत अपराध के लिए मुकदमा चलाया गया और उन्हें दोषी ठहराया गया.  हाईकोर्ट  ने ट्रायल कोर्ट द्वारा आरोपियों को सजा देने के लिए दी गई दलीलों को ना मानकर एक गंभीर त्रुटि की है.

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हाईकोर्ट ने अभियुक्तों को UAPA सहित सभी आरोपों से बरी कर गलती की है. इसी प्रकार, हाईकोर्ट ने विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 1908 की धारा 3(बी), 6 के साथ धारा 4 के तहत आरोपों पर विचार न करके गंभीर भूल की है. हालांकि हाईकोर्ट ने विस्फोटक पदार्थ अधिनियम, 1908 के तहत प्रतिबंधों की वैधता पर कोई विवाद नहीं किया है.

मकोका अधिनियम की धारा 23(1) के प्रावधानों और न ही अधिनियम के तहत बनाए गए नियमों में ऐसा कोई प्रारूप दिया गया है जिसमें पूर्वानुमति दी जानी हो. यह देखना आवश्यक है कि अभियुक्त लगातार कानून द्वारा निषिद्ध गतिविधियों में लिप्त हैं, जो संज्ञेय अपराध हैं और 3 वर्ष या उससे अधिक के कारावास से दंडनीय हैं और जिनके संबंध में 10 वर्ष की पूर्ववर्ती अवधि के भीतर सक्षम न्यायालय में एक से अधिक आरोप पत्र दायर किए जाने चाहिए और जिनका सक्षम न्यायालय ने संज्ञान लिया हो. 

वर्तमान मामले में ही एक प्रतिवादी ने जमीर अहमद लतीफुर रहमान शेख बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य में इस सुप्रीम कोर्ट के समक्ष मकोका के कुछ प्रावधानों की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी और अदालत इस निष्कर्ष पर पहुंचने के बावजूद कि मकोका के तहत गैरकानूनी गतिविधियां UAPA के तहत गैरकानूनी गतिविधियों के अर्थ से बिल्कुल अलग हैं, मकोका के साथ-साथ  UAPA के तहत अभियुक्तों के अभियोजन को बनाए रखा है. बॉम्बे हाईकोर्ट इस बारे में चर्चा करने में भी पूरी तरह विफल रहा है कि UAPAके तहत दोषसिद्धि कैसे टिकाऊ नहीं है.

मकोका के प्रावधान वर्तमान मामले में लागू नहीं होते क्योंकि 'निरंतर गैरकानूनी गतिविधि' की परिभाषा लागू होती है. इसके अलावा बचाव पक्ष का तर्क है कि मकोका अधिनियम के प्रावधान वर्तमान मामले में लागू नहीं होते क्योंकि निरंतर गैरकानूनी गतिविधि की परिभाषा के अनुसार जिन संज्ञेय अपराधों पर विचार किया जाता है, वे 3 वर्ष से अधिक के कारावास से दंडनीय होने चाहिए, जबकि पिछले आरोपपत्र से संबंधित अपराध धारा 153(ए) पर आधारित थे जो 3 वर्ष तक के कारावास से दंडनीय हैं.

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