हेमंत सोरेन को फिलहाल सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं, मामले में कल फिर होगी सुनवाई

कपिल सिब्बल ने अपने मुवक्किल का पक्ष रखते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा कि ईडी के लोगों के पास केवल उन लोगों के बयान दर्ज हैं, जिन्होंने कहा है कि सामान हेमंत सोरेन का है लेकिन उनके पास कोई सबूत नहीं हैं.

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हेमंत सोरेन को 31 जनवरी को गिरफ्तार किया गया था.
नई दिल्ली:

सुप्रीम कोर्ट ने हेमंत सोरेन को अभी अंतरिम जमानत नहीं दी है और मामले की सुनवाई को बुधवार तक के लिए टाल दिया है. साथ ही हेमंत सोरेन के वकील ने भी सुप्रीम कोर्ट से कुछ सवालों का जवाब देने के लिए समय मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने हेमंत सोरेन के वकील से पूछा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा अपराध का संज्ञान लेने के बाद उन्होंने किस तरह से गिरफ्तारी को चुनौती दी? जस्टिस खन्ना ने उनसे पूछा कि "यदि याचिका हाई कोर्ट में लंबित है तो उन्होंने जमानत याचिका क्यों दायर की? साथ ही उन्होंने यह भी पूछा कि हमें संतुष्ट कीजिए कि ऐसा क्या है जो हमें अंतरिम जमानत देनी चाहिए?" 

कपिल सिब्बल ने रखा हेमंत सोरेन का पक्ष

कपिल सिब्बल ने अपने मुवक्किल का पक्ष रखते हुए सुप्रीम कोर्ट में कहा कि ईडी के लोगों के पास केवल उन लोगों के बयान दर्ज हैं, जिन्होंने कहा है कि सामान हेमंत सोरेन का है. अवैध रूप से कब्जा कब, क्या, किस साल में आदि का उनके पास कोई सबूत नहीं है, उनके पास केवल मौखिक सबूत हैं. 

जस्टिस दत्ता ने किए सवाल

जस्टिस दत्ता ने कपिल सिब्बल से पूछा, "आपकी रिट याचिका HC ने 3 मई को खारिज कर दी थी  और फिर आपने 15 अप्रैल को जमानत के लिए आवेदन किया था. क्या आपने हाई कोर्ट से अनुमति ली कि आप फैसला नहीं सुना रहे हैं तो हम जमानत के लिए आगे बढ़ रहे हैं? इस पर सिब्बल ने कहा उन्होंने हाई कोर्ट से इसके लिए नहीं पूछा था." 

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एएसी राजू ने कही ये बात

इस पर एएसजी राजू ने कहा, "आप एक साथ दो घोड़ों की सवारी कर रहे हैं, जिसकी इस अदालत ने कई मौकों पर निंदा की है". उन्होंने कहा,  "15 अप्रैल 2024 को सोरेन ने जमानत याचिका दायर की थी. 13 मई 2024 को इसी आरोपों के आधार पर जमानत याचिका खारिज हो गई थी.  PMLA के तहत सिर्फ कब्ज़ा ही पर्याप्त है. स्वामित्व की आवश्यकता नहीं है".

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कपिल सिब्बल ने कहा जमीन कब्जे में होना अपराध नहीं 

नोटिस जारी होने के बाद, सोरेन ने मूल भूमि मालिकों में से एक से संपर्क किया और स्थिति को पलटने की कोशिश की थी. कई तरह की छेड़छाड़ की गई है. इन सभी बातों पर ट्रायल कोर्ट ने विचार किया है. 2009-10 से ही ये जमीन अवैध कब्जे में है. 8.86 एकड़ जमीन का न तो सोरेन के पास मालिकाना हक है, न ही किसी रिकॉर्ड में उनका नाम दर्ज है लेकिन वह उनके कब्जे में है, जो एक अपराध है.

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सिब्बल ने कहा मैं अंतरिम जमानत की मांग कर रहा हूं

सिब्बल ने कहा कि मैं रेगुलर बेल नहीं मांग रहा मैं तो अंतरिम जमानत की मांग कर रहा हूं. अगर मैं अपनी गिरफ्तारी को HC में चुनौती देता हूं और यह 2.5 महीने तक लंबित रहती है, तो मैं कभी भी जमानत के लिए आवेदन नहीं कर सकता. इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "आप हाई कोर्ट को यह क्यों नहीं बता सके कि चूंकि फैसला नहीं सुनाया गया है इसलिए मैं जमानत मांग रहा हूं तो अदालत यह ध्यान देगी कि यह बिना किसी पूर्वाग्रह के हो". 

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कपिल सिब्बल ने पुरकायस्थ मामले का दिया उदाहरण

कपिल सिब्बल ने कहा, "कोर्ट ने इन बयानों को प्रथम दृष्टया महत्व पर लिया है. उदाहरण के लिए उन्होंने कोर्ट में प्रबीर पुरकायस्थ मामला और न्यूजक्लिक मामले का जिक्र किया और कहा मैंने गिरफ्तारी को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, यह 2 से 2.5 महीने तक लंबित रहा, ऐसे में मैं जमानत नहीं मांग सकता था. इस पर जस्टिस द ने कहा, यहां, कुछ तथ्यात्मक असमानताएं हैं. संज्ञान ले लिया गया है, इसलिए कोर्ट प्रथम दृष्टया पर संतुष्ट है". 

31 जनवरी को किया गया था सोरेन को गिरफ्तार

कपिल सिब्बल ने कहा, "मेरे मुवक्किल को 31 जनवरी को गिरफ्तार किया गया और उन पर धारा 19 लगाई गई है. उक्त तिथि पर, उनके पास पीएमएलए लागू करने के लिए कुछ भी नहीं था. इस पर जस्टिस दत्ता ने कहा, क्या कोर्ट को खुद को गिरफ्तारी की तारीख की स्थिति तक ही सीमित रखना है?"

सुप्रीम कोर्ट के जवाब में कपिल सिब्बल ने कही ये बात

सुप्रीम कोर्ट के सवाल के जवाब में सिब्बल ने कहा, "हां". सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, "जब एक न्यायिक मंच प्रथम दृष्टया निष्कर्ष पर आ गया है और इसे चुनौती नहीं दी गई है तो क्या एक रिट अदालत अभी भी गिरफ्तारी की वैधता पर गौर करेगी?" सिब्बल ने कहा, "अगर उनकी हर बात मान ली जाए तो भी कोई अपराध नहीं बनता. जमीन पर अवैध कब्जा कोई अनुसूचित अपराध नहीं है. इसे विजय मदनलाल फैसले ने कवर किया है. हमें तथ्यों में जाने की भी जरूरत नहीं है. धारा 19 के तहत, एक बार गिरफ्तार होने के बाद मैं कभी जमानत के लिए आवेदन नहीं कर सकता. अगर मैं जमानत के लिए आवेदन करता हूं, तो धारा 19 के तहत मेरी चुनौती चली जाएगी. यह तो अदालत को निर्णय लेना होगा. विजय मदनलाल चौधरी फैसले का कहना है कि अपराध की आय एक अनुसूचित अपराध से आनी चाहिए. कोई भी व्यक्ति मौखिक बयान लेकर 15 साल बाद एफआईआर दर्ज करा सकता है."

जस्टिस दीपांकर ने कहा - हमें संतुष्ट करें गिरफ्तारी जरूरी थी कि नहीं

जस्टिस दीपांकर दत्ता से सिब्बल से पूछा, "आपको हमें संतुष्ट करना होगा कि दस्तावेजों और सामग्री के आधार पर गिरफ्तारी जरूरी थी या नहीं. सिब्बल ने कहा, मजिस्ट्रेट द्वारा लिया गया संज्ञान अलग है. हम कह रहे हैं कि गिरफ्तारी ही अवैध है. हालांकि, ASG और SG मेहता ने इस दलील पर ऐतराज जताया है". जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा कि "हमें इस बात से संतुष्ट होना चाहिए कि मामले में संज्ञान लेने के आदेश के बाद, गिरफ़्तारी का आधार बना रहेगा. पुरकायस्थ मामला तथ्यात्मक रूप से अलग था. वहां, आधार नहीं दिए गए थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ED के पास मेरिट पर अच्छा केस है लेकिन हमे इस पर विचार करना है."

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