चुनावी बांड योजना को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने कहा कि 2019 का अंतरिम आदेश निरंतर जारी रहने वाला आदेश है. इस आदेश में कहा गया है कि चुनावी बांड के माध्यम से पैसा हासिल करने वाले सभी राजनीतिक दल एक सीलबंद कवर में ECI को खुलासा करेंगे. कोर्ट ने चुनाव आयोग को कहा है कि वो 2019 का सीलबंद ब्यौरा अपने पास रखें, उचित समय आने पर अदालत इस ब्यौरे को देख सकती है.
चुनाव आयोग ने कोर्ट को बताया कि उनके पास केवल वो सीलबंद कवर है, जो 2019 में जमा किया गया था. सुप्रीम कोर्ट बुधवार को भी इस पर सुनवाई जारी रखेगा.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता जया ठाकुर की तरफ से कपिल सिब्बल ने कहा कि देश के नागरिक मतदाता हैं ना कि कॉरपोरेट, वो किसको कितना चंदा दे रहे हैं, ये देश के नागरिकों को जानने का अधिकार है. जब कॉरपोरेट किसी पार्टी को चंदा देते हैं, तो इसके पीछे उनकी फायदा उठाने की मंशा होती है. चुनावी बांड योजना से ये पता ही नहीं चलेगा कि ये पैसा कहां से आया या किस तरह का है.
आयकर अधिनियम में एक आवश्यकता थी कि प्रत्येक राजनीतिक दल को ये हिसाब रखना चाहिए कि उन्हें कहां से चंदा मिला और किसने दिया. अब इसमें कहा गया है कि चुनावी बांड के लिए रिकॉर्ड रखने की आवश्यकता को हटा दिया गया है. चुनावी बांड लोगों के सूचना पाने के अधिकार को ख़त्म कर देता है.
सत्तारूढ़ दल को मिलते हैं अधिक बांड
प्रशांत भूषण ने कहा कि ये अपारदर्शी गुमनाम साधन (चुनावी बांड) देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देता है. रिश्वत के तौर पर बांड दिए जा रहे हैं. केंद्र और राज्य में सत्तारूढ़ दल को अधिक बांड मिलते हैं. विपक्षी दल को केवल एक प्रतिशत ही प्राप्त हुआ. कोई भी कंपनी अर्ध-गुमनाम चुनावी ट्रस्ट स्थापित कर सकती है. कंपनी के लोग ट्रस्ट को दान देते हैं. वो ट्रस्ट राजनीतिक पार्टियों को चंदा देता है.
कोर्ट में कहा गया कि एक तरह से सरकार ने चुनावी बांड के रूप में रिश्वत को वैध कर दिया है. बांड इस तरह से तैयार किए जाते हैं कि पैसा गुप्त रूप से कई हाथों से गुजरते हुए अंतिम लाभार्थी राजनीतिक दल तक पहुंच सके, जिससे अपारदर्शिता की और परतें बन जाएं और मनी लॉन्ड्रिंग की संभावना हो.
वहीं CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि दान देने वाले व्यक्तियों के लिए गुमनामी का कारण ये हो सकता है कि मान लीजिए कि कोई व्यवसाय चलाने वाला व्यक्ति अपने राज्य की सत्ताधारी पार्टी से अलग किसी पार्टी को राशि दान करता है तो इसके परिणाम हो सकते हैं.
गौरतलब है कि CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है. याचिकाओं में चुनावी बांड योजना को असंवैधानिक बताते हुए रद्द करने की मांग की गई है.