भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने एक आदेश जारी करते हुए सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में शामिल होने पर लगा प्रतिबंध हटा दिया है. केंद्र सरकार ने 1966, 1970 और 1980 में तत्कालीन सरकारों द्वारा जारी उन आदेशों में संशोधन किया है, जिनमें सरकारी कर्मचारियों के आरएसएस की शाखाओं और उसकी अन्य गतिविधियों में शामिल होने पर रोक लगाई गई थी. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने मोदी सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है.
"सरकार का फैसला स्वागत योग्य": RSS
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने सरकार के फैसले पर कहा, "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ गत 99 वर्षों से सतत राष्ट्र के पुनर्निर्माण एवं समाज की सेवा में संलग्न है. राष्ट्रीय सुरक्षा, एकता-अखंडता एवं प्राकृतिक आपदा के समय में समाज को साथ लेकर संघ के योगदान के चलते समय-समय पर देश के विभिन्न प्रकार के नेतृत्व ने संघ की भूमिका की प्रशंसा भी की है." आंबेकर ने आगे कहा, "अपने राजनीतिक स्वार्थों के चलते तत्कालीन सरकार द्वारा शासकीय कर्मचारियों को संघ जैसे रचनात्मक संगठन की गतिविधियों में भाग लेने के लिए निराधार ही प्रतिबंधित किया गया था. शासन का वर्तमान निर्णय समुचित है और भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था को पुष्ट करने वाला है."
इस फैसले पर मध्य प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा ने कहा, "यह देश के लिए स्वागत योग्य कदम है और कांग्रेस तो हमेशा तुष्टिकरण की राजनीति करती आई है. RSS इस दुनिया का सबसे बड़ा सांस्कृतिक और सामाजिक संगठन है, जिसने देश के लिए हमेशा त्याग और बलिदान किया और अपनी भूमिका निभाई है..."
विपक्ष ने सरकार के फैसले पर उठाए सवाल
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सरकार के इस फैसले को लेकर एक्स पर पोस्ट किया. मल्लिकार्जुन खरगे पोस्ट कर लिखा, 1947 में आज ही के दिन भारत ने अपना राष्ट्रीय ध्वज अपनाया था. RSS ने तिरंगे का विरोध किया था और सरदार पटेल ने उन्हें इसके खिलाफ चेतावनी दी थी. 4 फरवरी 1948 को गांधी जी की हत्या के बाद सरदार पटेल ने RSS पर प्रतिबंध लगा दिया था. मोदी जी ने 58 साल बाद, सरकारी कर्मचारियों पर RSS की गतिविधियों में शामिल होने पर 1966 में लगा प्रतिबंध हटा दिया है. हम जानते हैं कि पिछले 10 वर्षों में भाजपा ने सभी संवैधानिक और स्वायत्त संस्थानों पर संस्थागत रूप से कब्ज़ा करने के लिए RSS का उपयोग किया है. मोदी जी सरकारी कर्मचारियों पर RSS की गतिविधियों में शामिल होने पर लगा प्रतिबंध हटा कर सरकारी दफ़्तरों के कर्मचारियों को विचारधारा के आधार पर विभाजित करना चाहते हैं.
वहीं कांग्रेस सांसद गौरव गोगोई ने इस फैसले पर कहा, "मुझे ये RSS-BJP की जुगल बंदी लगती है. कुछ दिन पहले जो मोहन भागवत ने टिप्पणी कि उसको लेकर उनकी नाराजगी को खत्म करने के लिए आज भाजपा सरकार इस प्रकार का निर्णय ले रही है. आज UPSC , NTA की दुर्दशा इसलिए है क्योंकि RSS के लोग सरकार के हर वर्ग में घुस रहे हैं."
"एनडीए के बाकी संगठन इस बारे में क्या कहेंगे": ओवैसी
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस मामले पर कहा कि देखिए आरएसएस पर महात्मा गांधी के बाद सरदार पटेल और नेहरू की हुकूमत ने बैन लगाया था. आरएसएस खुद कहता है कि भारत के डाइवर्सिटी को नहीं मानता है. वह हिंदू राष्ट्र की बात करता है, तो यह भारतीय संविधान के तो खिलाफ है. मेरा मानना है कि ऐसे सांस्कृतिक संगठन को परमिट नहीं करना चाहिए. कई सांस्कृतिक संगठन है जो कम्युनिस्ट विचारधारा को मानते हैं, क्या उनको भी परमिशन कर देंगे.. एनडीए के जो बाकी संगठन है वह इस बारे में क्या कहेंगे... यह देखने वाली बात होगी. क्या इस फैसले को मानते हैं, उनको खुद बोलना पड़ेगा.
"निर्णय अनुचित है, तुरन्त वापस हो": मायावती
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मुखिया मायावती ने सरकारी कर्मचारियों के सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाए है. बसपा मुखिया मायावती ने सोमवार को सोशल मीडिया मंच एक्स पर लिखा कि सरकारी कर्मचारियों को आरएसएस की शाखाओं में जाने पर 58 वर्ष से जारी प्रतिबंध को हटाने का केन्द्र का निर्णय देशहित से परे, राजनीति से प्रेरित संघ तुष्टीकरण का निर्णय है ताकि सरकारी नीतियों व इनके अहंकारी रवैयों आदि को लेकर लोकसभा चुनाव के बाद दोनों के बीच तीव्र हुई तल्खी दूर हो. सरकारी कर्मचारियों को संविधान व कानून के दायरे में रहकर निष्पक्षता के साथ जनहित व जनकल्याण में कार्य करना जरूरी होता है जबकि कई बार प्रतिबन्धित रहे आरएसएस की गतिविधियां काफी राजनीतिक ही नहीं बल्कि पार्टी विशेष के लिए चुनावी भी रही हैं. ऐसे में यह निर्णय अनुचित है, तुरन्त वापस हो.
Video : NEET Paper Leak Case: ऐसा कोई सबूत नहीं कि लीक पूरे देश में फैल गया था - CJI