महाराष्ट्र में चल रहे सियासी उथल-पुथल के बीच शिवसेना के बागी विधायक दीपक केसरकर ने अपनी बात सबके सामने रखी हैं. उन्होंने कहा कि पिछले पांच दिनों से महाराष्ट्र की राजनीति में उथल-पुथल मची हुई है. हम, आदरणीय शिवसेना प्रमुख बालासाहेब ठाकरे, शिवसेना के शिवसैनिक, जो कुछ समय के लिए निकले, गंदे हो गए, सूअर बन गए.. राज्यसभा में बैठने वाले हम पर भरोसा करते हैं और रोज अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं. अब वे हमारे शवों का इंतजार कर रहे हैं. यह प्रमुख मुद्दा है और यही हमारे लिए असली कारण है, गुवाहाटी में बैठकर शिवसेना की आवाज उठाना, यह सम्मान की इस लड़ाई की पृष्ठभूमि है. यह विद्रोह नहीं बल्कि शिवसेना के स्वाभिमान की लड़ाई है.
उन्होंने आगे कहा कि बेशक आज का नेतृत्व यह भी नहीं समझता, यह भी हमारा बहुत बड़ा दुख है. यह संक्षेप में बताने का एक प्रयास है कि आज हमें किसने बेचा, किसने, कब, कैसे और किसको बेचा! आज जो परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई है वे अप्रचलित हैं. शिवसेना और बीजेपी का गठबंधन बहुत पुराना है. हमने 2014 का लोकसभा चुनाव एक साथ लड़ा था. शिवसेना के पास ताकत थी, लेकिन साथ ही नरेंद्र मोदी के नेतृत्व और उद्धव ठाकरे की मेहनत से शिवसेना के 18 सांसद जीते. हमने साथ में विधानसभा चुनाव लड़ने का भी फैसला किया था. उस समय युवा नेता आदित्य ठाकरे ने मिशन 151+ की घोषणा की थी. ऐसे में बीजेपी ने 140 सीटों का प्रस्ताव रखा था. हालांकि, बातचीत के अंत में यह तय हुआ कि बीजेपी को 127 और शिवसेना को 147 सीटें मिलनी चाहिए. शिवसेना के पास ताकत थी. लेकिन, चार सीटों की जिद नहीं छोड़ी. अंत में वही हुआ. लंबे समय से चला आ रहा गठबंधन टूट गया और हमें अलग-अलग चुनाव लड़ने पड़े. यहां एक बात का जिक्र करना चाहिए, चाहे वह 2014 का चुनाव हो, 2019 के बाद राज्य में जो हालात बने हैं, चाहे वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या केंद्र या राज्य स्तर पर कोई अन्य भाजपा नेता.
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बता दें कि कुछ दिन पहले ही शिवसेना (Shiv Sena) के मुखपत्र सामना के संपादकीय में बागी विधायकों के रवैये पर तीखा तंज कसा गया था. साथ ही बीजेपी को भी आड़े हाथों लिया गया है. संपादकीय में लिखा गया था कि आखिरकार, गुवाहाटी प्रकरण में भाजपा की धोती खुल ही गई. शिवसेना विधायकों की बगावत उनका अंदरूनी मामला है, ऐसा ये लोग दिनदहाड़े कह रहे थे. परंतु, कहा जा रहा है कि वडोदरा में देवेंद्र फडणवीस और एकदास शिंदे की अंधेरे में गुप्त मीटिंग हुई. उस मुलाकात में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह शामिल थे. उसके बाद तुरंत ही 15 बागी विधायकों को केंद्र सरकार द्वारा ‘वाई' श्रेणी की विशेष सुरक्षा प्रदान करने का आदेश जारी किया गया था. ये 15 विधायक मतलब मानो लोकतंत्र, आजादी के रखवाले हैं. इसलिए उनके बालों को भी नुकसान नहीं पहुंचने देंगे, ऐसा केंद्र को लगता है क्या?
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असल में ये लोग 50-50 करोड़ रुपयों में बेचे गए बैल अथवा ‘बिग बुल' हैं. यह लोकतंत्र को लगा कलंक ही है. उस कलंक को सुरक्षित रखने के लिए ये क्या उठापटक है? इन विधायकों को मुंबई-महाराष्ट्र में आने में डर लग रहा है या ये कैदी विधायक मुंबई में उतरते ही फिर से ‘कूदकर' अपने घर भाग जाएंगे, ऐसी चिंता होने के कारण उन्हें सरकारी ‘केंद्रीय' सुरक्षा तंत्र द्वारा बंदी बनाया गया है? यही सवाल है. लेकिन इतना तय है कि महाराष्ट्र के सियासी लोकनाट्य में केंद्र की डफली, तंबूरे वाले कूद पड़े हैं और राज्य के ‘नचनिये' विधायक उनकी ताल पर नाच रहे हैं.