किसान आंदोलन के आज 6 महीने पूरे, सिंघु बॉर्डर पर डटे हैं 15 हजार से ज्यादा अन्नदाता

सरकार और किसानों के बीच 22 जनवरी तक 11 राउंड की बातचीत हो चुकी है लेकिन कोई हल नहीं निकल सका है. फिलहाल अब भी सिंघु बॉर्डर पर 15 हजार से ज्यादा किसान सड़क पर बैठे हैं.

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किसान आंदोलन 26 नवंबर, 2020 को शुरू हुआ था. (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:

किसान आंदोलन (Farmers Protest) को आज दिल्ली के बॉर्डर पर 6 महीने का वक्त हो चुका है. कृषि कानूनों (Farm Laws) के खिलाफ चलने वाले यह आंदोलन मौसम की मार, सरकार की बेरुखी सहने के अलावा कोरोनावायरस (Coronavirus) की आपदा भी झेल रहा है. किसान नेता बिना शर्त बात करने को तैयार हैं लेकिन फिलहाल सरकार ने 22 जनवरी के बाद किसानों से कोई बातचीत नहीं की है. 6 महीने बाद किसान आंदोलन की तस्वीर क्या है और लोग क्या सोच रहे हैं, NDTV ने यह जानने की कोशिश की.

26 नवंबर, 2020 से दिल्ली के बॉर्डर पर कड़कड़ाती ठंड से शुरु हुआ किसान आंदोलन, अब चिलचिलाती गर्मी में भी चल रहा है, उसी जज्बे और गुस्से के साथ. कोरोना महामारी के दूसरे लॉकडाउन में आज (बुधवार) किसानों ने देशभर में अलग-अलग जगह 'काला दिवस' मनाया. कोरोना महामारी से लाखों की मौत के बावजूद बॉर्डर पर कृषि कानूनों के खिलाफ धरने पर बैठे किसानों के बीच कोरोना से ज्यादा कृषि कानून का डर है. यही वजह है कि ज्यादातर के चेहरे पर मास्क गायब है.

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पंजाक के किसान नेता हरनाम सिंह ने कहा कि कोरोना का डर दिखाकर सरकार किसानों को हटाना चाहती है, जैसे पहले के आंदोलनों को दबा दिया गया. मौसम और हालात भले ही बदले हो पर किसान संगठनों की तीन कृषि कानून को रद्द करने की मांग नहीं बदली. यही वजह है कि अब GT रोड पर कच्चे-पक्के सैकड़ों तंबू दूर-दूर तक दिखाई पड़ रहे हैं हालांकि सिंघु बॉर्डर पर कभी टेंट सिटी के नाम से पहचानी जाने वाली ये जगह आज वीरान है. जगजीत सिंह हमें दिखाते हैं कि 25 जनवरी को यहां 10 हजार लोग रुके थे लेकिन अब इक्का-दुक्का लोग ही है, पर आंदोलन के मद्देनजर मौसम बदलेगा, लिहाजा हजारों कंबल और गद्दे रखे हैं.

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लंबे खिंचते आंदोलन के चलते दिल्ली के सिंघु, टीकरी और गाजीपुर बॉर्डर पर किसानों की तादाद कम हुई लेकिन क्या मनोबल भी कम हुआ, ये जानने के लिए हम 6 महीने से लगातार लंगर चलाने वाले कुछ कबड्डी के खिलाड़ियों के पास पहुंचे. पंजाब के नवांशहर के खानखाना गांव से आए कुलदीप सिंह और उनके दोस्तों के ऊपर सिंघु बॉर्डर पर चल रहे लंगर सेवा और लोगों के रहने का इंतजाम करने का जिम्मा है. लंगर में पहले करीब दो लाख रुपये रोज का राशन आता था लेकिन अब घटकर 25 हजार रह गया है, पर उसके बावजूद उनका मनोबल टूटा नहीं है. वो कहते हैं कि सरकार को तुरंत बातचीत करनी चाहिए.

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किसान कुलदीप सिंह ने कहा, 'हम सोचते यही है कि सरकार अगर कानून वापस नहीं करेगी, तब तक हम नहीं जाएंगे. महामारी तो चल रही है तो हमारे पल्ले कुछ नहीं पड़ेगा. हम तो पहले ही मरे हैं, महामारी क्या मारेगी हमें.' सरकार और किसानों के बीच 22 जनवरी तक 11 राउंड की बातचीत हो चुकी है लेकिन कोई हल नहीं निकल सका है. फिलहाल अब भी सिंघु बॉर्डर पर 15 हजार से ज्यादा किसान सड़क पर बैठे हैं.

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